पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का सम्मान करते नगरीय विकास मंत्री झाबरसिंह खर्रा, पूर्व सांसद सुमेधानंद सरस्वती, केंद्रीय संस्कृत विद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी एवं प्रो. मदनमोहन झा (फोटो: पत्रिका)
55th Foundation Day And Sahitya Utsav of Central Sanskrit University: पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा कि, संस्कृत को डिग्री का माध्यम नहीं बनाएं। संस्कृत सीखने का उद्देश्य सिर्फ नौकरी करना या आचार्य बनना नहीं है। इसे पेट भरने का जरिया न बनाएं। संस्कृत को जीना सीखें, क्योंकि संस्कृत विश्व के निर्माण का मानचित्र है। अगर संस्कृत को समझ जाएंगे तो सृष्टि का निर्माण समझ जाएंगे।
कोठारी बुधवार को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के 55वें स्थापना दिवस व साहित्योत्सव के मंथन सत्र को संबोधित कर रहे थे। कोठारी समारोह में सारस्वत अतिथि के रूप में शामिल हुए। समारोह का आयोजन विश्वविद्यालय के त्रिवेणी नगर में स्थित परिसर में किया गया। समारोह में कोठारी ने कहा कि कोई भी शास्त्र हो, उसे अपने जीवन में कैसे लागू करें, इस बारे में सोचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम संस्कृत और संस्कृति की चर्चा करते हैं। लेकिन देखा जाए तो हमें आजाद हुए करीब 80 साल हो गए हैं। हमने अंग्रेजों को भगाया था लेकिन बेड़ियों को आज तक नहीं खोल पाए। उन्होंने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालयों में अलग से वेद-विज्ञान का विभाग होना चाहिए, ताकि समझाया जा सके कि श्लोक और मंत्र जीवन में किस तरह काम आते हैं। इससे पहले उद्घाटन सत्र के दौरान समारोह में कोठारी का विशिष्ट सम्मान और अभिनंदन भी किया गया।
गीता की वैज्ञानिकता को विश्व पटल पर नहीं रख पाएः कोठारी ने कहा कि गीता को आज दर्शन शास्त्र मान रखा है। गीता उपदेशक ग्रंथ हम दर्शन की भाषा में पढ़ रहे है। हम आज तक गीता की वैज्ञानिकता को विश्व पटल पर नहीं रख पाए है। देश में इतने विश्वविद्यालय होने के बाद भी एक भी विज्ञान भाव का शोध भारतीय मनीषा से नहीं निकला, जिसने वैज्ञानिकों को चुनौती दी हो, जबकि गीता के सारे श्लोक विज्ञान भाव में लिखे गए है। उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में गीता क्या काम आई, इसको समझाना जरूरी है।
कोठारी ने कहा कि आज हम सौ साल भी जीते हैं, तो आत्मा की बात नहीं करते। उन्होंने बताया कि शरीर में जड़ है, चेतना नहीं है। लक्ष्मी में भी चेतना नहीं है। पृथ्वी, प्रकृति को लक्ष्मी कहते हैं लेकिन चेतना सरस्वती से आती है। उन्होंने कहा कि अक्षर सृष्टि ही संस्कृत का स्वरूप है। इसी बात को हम नहीं समझ पाए। उन्होंने कहा कि संस्कृत को हम भाषा, व्याकरण मानकर पढ़ रहे हैं। यही गलती की जा रही है।
कोठारी ने कहा कि, मां जानती है कि उसके गर्भ में आया जीव पिछला कौन सा शरीर छोड़कर आया है, कौन से संस्कार लेकर आया है। वह उसे मानवता के संस्कार देती है। पशु का शरीर छोड़कर आने वाले जीव को भी मां इंसान बनाती है। उन्होंने कहा कि यह ताकत केवल स्त्री के पास ही है। मां के पास सिर्फ भावना का माध्यम है। भावना स्पंदन है, जिसे समय और काल भी नहीं बांध पाता।
Updated on:
16 Oct 2025 07:45 am
Published on:
16 Oct 2025 07:36 am
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग