
अरुण कुमार
Abandoned Children : जयपुर। राजस्थान में हर माह औसतन 20 मासूम बेटियों को झाडिय़ों, अस्पतालों या फिर सर्द सन्नाटे में सडक़ पर फेक दिया जाता है। आगे उनका नसीब...! बचेंगी, शिशुगृह जाएंगी या किसी परिवार का हिस्सा बनेेंगी। चाइल्ड लाइन इंडिया और यूनिसेफ की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में पिछले पांच वर्षों (2020-2024) में 1,332 मासूमों को इधर-उधर छोड़ दिया गया। खास बात है कि इनमें 90% (1,199) बच्चियां हैं। इसमें भी 60% मामले अवैध संतानों या पारिवारिक विवादों से जुड़े हैं। माता-पिता खासकर मां, सामाजिक दबाव या आर्थिक तंगी के चलते बच्चियों को छोड़ देती हैं। जयपुर, उदयपुर और बीकानेर जिलों में ये मामले सबसे अधिक दर्ज हुए।
पांच वर्षों में 1,332 परित्यक्त बच्चों में से केवल 376 (28%) के माता-पिता का पता लगा। इनमें से 200 मामलों में बच्चे का परित्याग और जुविनायल जस्टिस एक्ट, 2015 की धारा 75 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। 150 माता-पिता को 1-3 साल की सजा और 10,000-25,000 रुपए जुर्माना हुआ।
जयपुर में 450 मामले (34%) दर्ज हुए। खासकर वैशाली नगर, टोंक रोड और शास्त्री नगर में, जहां बच्चियां अस्पतालों और मंदिरों के पास छोड़ी गईं। उदयपुर में 300 मामले (23%), खासकर डबोक और हिरण मगरी, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और सामाजिक दबाव के कारण प्रमुख हैं। बीकानेर में 250 मामले (19%) और कोटा में 150 मामले (11%) दर्ज हुए। बाड़मेर और जोधपुर में क्रमश: 100 और 80 मामले थे, जहां अवैध संतानों की संख्या अधिक थी।
रिपोर्ट बताती हैं कि 60% मामले अवैध संतानों से जुड़े हैं, जबकि 30% में पारिवारिक विवाद (लिंग भेद, कई बेटियां) कारण रहे। गरीबी (81% मामले अनौपचारिक क्षेत्र से), सामाजिक कलंक और लिंग आधारित भेदभाव (लड़कियों की संख्या 90%) प्रमुख कारण हैं। आश्रय पालना योजना के तहत 67 क्रैडल्स (आश्रय पालना) लगाए गए, लेकिन केवल 20% प्रभावी हैं।
राजस्थान सरकार ने 2024 में 50 करोड़ के बजट से 20 नए क्रैडल्स और 10 गोद लेने वाली एजेंसियां स्थापित कीं। नमो ड्रोन दीदी योजना की तर्ज पर स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) को बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। चाइल्डलाइन इंडिया ने जयपुर और उदयपुर में 500 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया। फिर भी, 70% बच्चों के माता-पिता अज्ञात रहते हैं, और गोद लेने की प्रक्रिया में देरी (2-3 साल) बाधक है।
जागरूकता : पूरे राज्य में लिंग समानता अभियान चलाया जाए।
डीएनए डेटाबेस : आधार और डीएनए डेटाबेस से माता-पिता की हो।
आसान प्रक्रिया : गोद लेने की अवधि 6 महीने की जाए।
सख्ती : परित्याग पर 7 साल की सजा को सख्ती से लागू करें।
हमें सोचना होगा कि एक तरफ हम रक्षाबंधन मना रहे हैं। दूसरी तरफ बेटियों को सडक़ों पर फेंक रहे हैं। यह दोहरा चरित्र रिश्तों को खोखला कर रहा है। लडक़ों से उम्मीद, लेकिन खरी उतर रही बेटियां... ऐसा क्यों? लड़कियां अपनी चुप्पी को ताकत बनाकर आगे बढ़ रही हैं। समय सबसे बड़ा सबक है, इसे हर माता-पिता को समझना चाहिए।
- मनन चतुर्वेदी, सामाजिक कार्यकर्ता, सुरमन संस्थान
| वर्ष | परित्यक्त बच्चे (कुल संख्या) | लड़कियां (%) | माता-पिता का पता चला | गोद लिए गए बच्चे |
|---|---|---|---|---|
| 2020 | 250 | 90% (225) | 75 (30%) | 100 (40%) |
| 2021 | 280 | 92% (258) | 78 (28%) | 110 (39%) |
| 2022 | 270 | 89% (240) | 80 (30%) | 120 (44%) |
| 2023 | 260 | 90% (234) | 70 (27%) | 115 (44%) |
| 2024 | 272 | 91% (247) | 73 (27%) | 125 (46%) |
Published on:
11 Sept 2025 03:04 pm
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