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कोर्ट रूम ड्रामा ‘टेकिंग साइड्स’ में दिखी राजनीतिक एजेंडे पर कलाकार की उलझन

-जेकेके के रंगायन सभागार में हुआ नाटक का मंचन, एक्टर अतुल कुमार ने किया निर्देशित

2 min read

जयपुर

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Mohmad Imran

Sep 05, 2023

कोर्ट रूम ड्रामा 'टेकिंग साइड्स' में दिखी राजनीतिक एजेंडे पर कलाकार की उलझन

कोर्ट रूम ड्रामा 'टेकिंग साइड्स' में दिखी राजनीतिक एजेंडे पर कलाकार की उलझन

जयपुर। किसी की विचारधारा से प्रभावित हुए बिना क्या कोई कलाकार अपनी मर्जी से राजनीतिक परिवेश में अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र नहीं है। कुछ ऐसी ही पशोपेश की स्थिति देखने को मिली जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में एक्टर-निर्देशक अतुल कुमार निर्देशित नाटक 'टेकिंग साइड्स' में। नाटक राजनीतिक रुख पर कलाकार की दुविधा पर सवाल उठाता है। नाटककार रोनाल्ड हॉरवुड के लिखे इस कोर्टरूम ड्रामा में सरकार और कलाकार के बीच की नैतिक खाई को पाटने की कोशिश की गई है। नाटक सवाल उठाता है कि देश में अगर कुछ गलत हो रहा है, तो क्या ऐसे समय में कलाकार को चुप बैठ जाना चाहिए या आवाज उठानी चाहिए?

हिटलर, नाजीवाद और कलाकार
1995 में हॉरवुड का लिलखा यह नाटक दिखाता है कि समाज, संगीत और कला पर राजनीति कैसे हावी हो जाती है। कहानी 1946 में जर्मनी के हारने के बाद एक अमरीकी अदालत में जर्मनी के संगीतकार विल्हेम फर्टवांग्लर नामक एक कलाकार पर चल रहे मुकद्दमे के बारे में है। विश्वयुद्ध के बाद नाजी नरसंहार की जांच के रूप में अमरीकी सेना अधिकारी मेजर स्टीव अर्नोल्ड विल्हेम को हिटलर के शासन में उसे एक सहयोगी के रूप में पेश करता है। सवाल यह है कि क्या कोई संगीतकार एक लोकप्रिय लेकिन बेहद खतरनाक विचारधारा के प्रतिरोध के रूप में कार्य कर सकता है या नहीं? यदि विल्हेम नाजी शासन का समर्थक नहीं था, तो उसने अन्य कलाकारों की तरह जर्मनी क्यों नहीं छोड़ा? उन्हें नैतिक रुख अपनाने और सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने में झिझक क्यों हुई? जर्मनी से न भागने पर विल्हेम कहता है कि वह अपनी मातृभूमि से प्यार करता था। हालात चाहे जैसे भी रहे हों, कला की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका कठिन परिस्थितियों में लोगों को राहत और उम्मीद की किरण देना है। उसके अनुसार, कला और संगीत राजनीति और इससे होने वाली उथल-पुथल से ऊपर है।

हंगेरियन फिल्म को देखकर आया नाटक का आईडिया
अतुल का कहना है कि आज जब हम खुद को ऐसे चौराहे पर पाते हैं जहां हम यह तय नहीं कर पाते कि हमारा राजनीतिक रुझान क्या होना चाहिए, क्या हमें आवाज उठानी चाहिए या चुप रहना चाहिए। नाटक बार-बार यही सवाल उठाता है कि हम पहले कलाकार हैं या इंसान? क्या कलाकार की भूमिका नाटक के जरिये मानवीय भावना को मंच पर साकार करने भर की है या एक सीमा के बाद उन्हें विनाशकारी ताकतों के खिलाफ उठ खड़े होना चाहिए? प्लस से बातचीत में अतुल ने बताया कि उन्होंने कुछ साल पहले इस नाटक पर बेस्ड एक हंगेरियन फिल्म देखी थी और उससे गहराई से प्रभावित हुए थे। तब से वह इस कहानी पर प्ले करना चाहते थे।