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सरकार की बिग स्ट्रेटजी… जंगलों से लौट रहे नक्सली, सरेंडर के लिए बनाया गया सेफ कॉरिडोर

Safe Corridor Policy: बस्तर से लेकर गरियाबंद तक सरकार की शांति पहल का असर दिखने लगा है। नक्सलियों के सरेंडर के लिए सेफ कॉरिडोर बनाए जाने के बाद ऑपरेशन रोक दिए गए हैं।

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Safe Corridor Policy (Photo source- Patrika)

Safe Corridor Policy (Photo source- Patrika)

Safe Corridor Policy: नक्सलियों को सरेंडर के लिए सरकार सेफ कॉरिडोर दे रही है। गृहमंत्री विजय शर्मा ने इसी महीने की 1 तारीख को कहा था कि हम सरेंडर करने वालों को सेफ कॉरिडोर देंगे किसी को कोई खतरा नहीं है। बेखौफ होकर वापस आएं। गृहमंत्री के 20 दिन पुराने बयान के मायने अब स्पष्ट हो रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार शांति स्थापना के तमाम प्रयास कर रही है।

Safe Corridor Policy: बस्तर से लेकर गरियाबंद तक सरेंडर का माहौल

सरेंडर करने वाले नक्सली अपने-अपने अलग-अलग पर्चों में शांति की मांग कर चुके थे। उनका कहना यही था कि जब तक सरकार ऑपरेशन रोकेगी नहीं हम सरेंडर का माहौल तैयार नहीं कर पाएंगे। अब जबकि सरकार ने ऑपरेशन रोक दिए हैं तो बस्तर से लेकर गरियाबंद तक सरेंडर का माहौल बन रहा है। नक्सलियों के बीच इस पर तेजी से काम हो रहा है।

नक्सलियों के केंद्रीय नेतृत्व के कुछ ही लोग इसके विरोध में हैं और बयान जारी कर रहे हैं। फोर्स जंगल में दाखिल नहीं हो रही है इसलिए अब नक्सलियों को अपने साथियों के साथ निर्णय लेने में सहूलियत हो रही है। इस बीच सूत्र बता रहे हैं कि सरकार ने नक्सलियों के लिए एक टाइम लिमिट तय करके उन्हें आपसी चर्चा के लिए कुछ वक्त दिया है।

20 महीने में ऐतिहासिक एनकाउंटर

बस्तर में पिछले दो दशकों से चले आ रहे नक्सल संघर्ष में यह दौर निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। पुलिस-नक्सल मुठभेड़ों का गढ़ माने जाने वाले बस्तर में अब एक शांति स्थापना के लिए कई तरह से पहल की जा रही है। सरकार ने पहले स्पष्ट किया था कि वह किसी तरह हिंसा को बर्दाश्त नहीं करेगी, लेकिन जमीनी हालात बता रहे हैं कि अब सब कुछ पहले जैसा नहीं है।

पहले 20 महीने में जहां रेकॉर्ड एनकाउंटर हुए। नक्सलियों के सुप्रीम लीडर बसव राजू को भी उसी दौर में मारा गया। अब नई परिस्थिति में भूपति उर्फ सोनू जैसे नंबर 2 रैंक के बड़े नक्सली ने सरेंडर किया है। बस्तर में 210 नक्सलियों का सरेंडर भी इसी बड़े डेवलपमेंट का परिणाम है।

ऑपरेशन कम, संवाद ज्यादा की कवायद

विश्लेषकों का मानना है कि यह दौर नक्सल आंदोलन के अंत की शुरुआत हो सकता है। नक्सल संगठन के भीतर वैचारिक मतभेद, संसाधनों की कमी और लगातार जारी सुरक्षा बलों के दबाव ने उनकी पकड़ कमजोर कर दी है। वहीं सरकार की नई रणनीति ऑपरेशन से ज्यादा संवाद अब असर दिखाने लगी है।

शाह के नेतृत्व वाली सेंट्रल नक्सल डेस्क ने इस रणनीति पर मुहर लगाई

Safe Corridor Policy: नक्सलवाद की सतत मॉनिटरिंग करने वाली सेंट्रल नक्सल डेस्क ने इस रणनीति पर मुहर लगाई है। सूत्र बता रहे हैं कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की निगरानी में काम करने वाले इस डेस्क ने ही सब कुछ तय किया है और अब उसका बड़ा असर होता दिख रहा है।

सरकार ने भले ही औपचारिक रूप से युद्धविराम की घोषणा नहीं की हो, लेकिन बस्तर के जंगलों में करीब दो साल बाद गोलियों की आवाज़ थमी है। लगातार चल रहे एनकाउंटरों के बीच यह पहली बार है जब ऐसी खामोशी के बीच सरेंडर के रिकॉर्ड बन रहे हैं।