
फोटो सोर्स: पत्रिका
MP News: वैवाहिक रिश्ते में आपसी विश्वास एक सुनहरे धागे की तरह है, जो तब कमजोर पड़ जाता है, जब पति या पत्नी एक दूसरे के खिलाफ निराधार और अपमानजनक आरोप लगाते हैं। जस्टिस विशाल धगट और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक पति द्वारा पत्नी पर परित्याग और क्रूरता के आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की दायर याचिका को स्वीकार करते हुए की और तलाक को मंजूरी दे दी।
हाल ही पारित फैसले से अलग हुए इस जोड़े का विवाह 2008 में हुआ था। इसके डेढ़ महीने बाद ही पत्नी अपने मायके प्रतापगढ़ उप्र चली गई। फिर दो साल बाद वह फिर ससुराल आई और फिर आठ माह तक रही। पत्नी का आरोप था कि मई 2012 में उसने जब बच्ची को जन्म दिया तो पति अपनी बेटी को देखने तक नहीं आए।
इसके बाद, पत्नी ने रखरखाव के लिए मामला दायर किया, जिसे मजिस्ट्रेट कोर्ट ने अनुमति दे दी। पति ने फिर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया और तलाक के लिए दायर किया। इसके चलते वर्तमान याचिका दायर की गई।
पति ने दावा किया कि पत्नी का व्यवहार अच्छा नहीं था और उसने अपने नियोक्ताओं को वैवाहिक विवादों के बारे में गलत जानकारी दी थी, जिसके कारण उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, जिससे वह बेरोजगार हो गया। पत्नी के वकील ने दावा किया कि उसे इस हद तक परेशान किया जा रहा था उसने आगे दावा किया कि उसके ससुराल वालों ने अपर्याप्त दहेज पर असंतोष व्यक्त किया और अतिरिक्त दहेज की मांग की।
उसने यह भी तर्क दिया कि इस बीच, उसका पति ऑस्ट्रेलिया चला गया, जहां उसने दूसरी शादी कर ली। कोर्ट ने पाया कि दहेज की मांग, इसके लिए उत्पीड़न और जबरन ससुराल से निकाले जाने के संबंध में पत्नी द्वारा कोई पुलिस रिपोर्ट नहीं कराई थी। हालांकि पत्नी ने वैवाहिक संबंधों बचाने के लिए ऐसा करना बताया।
न्यायालय ने जोर देकर कहा, हम इस तथ्य से अवगत हैं कि झूठे आरोप लगाने पर, दूसरे पति या पत्नी को शर्मिंदगी, उपहास, उत्पीड़न और दंडात्मक दायित्व का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, पति या पत्नी पर दूसरे पति या पत्नी के खिलाफ ऐसे कोई भी आरोप लगाते समय संवेदनशील और सावधान रहने की जिम्मेदारी है, लेकिन निचली अदालत के समक्ष दर्ज बयानों से यह पता चलता है कि प्रतिवादी/पत्नी ये आरोप बहुत ही लापरवाही से लगा रही थी। पीठ ने कहा कि पत्नी दहेज उत्पीडऩ को दर्शाने वाली परिस्थितियों का विवरण देने में विफल रही।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्टीकरण मामले की परिस्थितियों के अनुकूल नहीं था। न्यायालय ने कहा कि भरण-पोषण याचिका दायर करने में पत्नी का आचरण, जबकि दहेज उत्पीडऩ के लिए पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कराना, यह स्पष्ट नहीं करता कि इन याचिकाओं ने वैवाहिक संबंधों को कैसे मज़बूत किया। अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी को उम्मीद थी कि उसका पति उसके घर आएगा और वैवाहिक संबंध बहाल करने के लिए उसे मनाएगा, जबकि वह इस तथ्य को नजरअंदाज कर रही थी कि वह स्वयं ही ससुराल छोडकऱ जा चुकी थी।
Updated on:
05 Nov 2025 05:18 pm
Published on:
05 Nov 2025 04:52 pm
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