सुनीता राजवर, एक ऐसी अभिनेत्री जिन्होंने अपनी मेहनत, बहुमुखी प्रतिभा और जुनून से भारतीय मनोरंजन जगत में अपनी खास जगह बनाई है। वेब सीरीज पंचायत में क्रांतिदेवी के किरदार से दर्शकों का दिल जीतने वाली सुनीता की फिल्म ‘संतोष’ को ऑस्कर में एंट्री मिली है। बरेली से शुरू हुआ उनका सफर, हल्द्वानी, नैनीताल, एनएसडी और फिर मुंबई तक पहुंचा। यह कहानी है एक ऐसी महिला की, जो न केवल एक्टिंग में माहिर है, बल्कि राइटिंग, डायरेक्शन, कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग और ज्वेलरी मेकिंग जैसी कई कला में भी निपुण है। उनकी जिंदगी की कहानी प्रेरणा देती है कि अगर आप अपने जुनून के साथ मेहनत करें और किस्मत पर भरोसा रखें, तो रास्ते खुद-ब-खुद बनते चले जाते हैं। पत्रिका संवाददाता राखी हजेला से हुई बातचीत में अपने सफर को उन्होंंने कुछ इस अंदाज में किया बयां
सपना था आर्मी में जाने का
मेरा जन्म बरेली में हुआ, लेकिन हम जल्दी ही हल्द्वानी आ गए। मेरी पढ़ाई वहीं हुई। बचपन में एक्टिंग का कोई खास शौक नहीं था। हां, डांस जरूर करती थी और स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। सपना था आर्मी में जाने का, कुछ अलग करने का। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कॉलेज के बाद पीजी के लिए नैनीताल गई, जहां युगमंच संस्थान के जरिए निर्मल पांडे का नाटक देखने का मौका मिला। उन्होंने अपने नाटक के लिए फीमेल किरदारों की तलाश में ऑडिशन लिया और मैंने भी कोशिश कर ली। बस, यहीं से मेरी एक्टिंग की शुरुआत हो गई। निर्मल जी ने मेरी रुचि देखकर मुझे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे माता-पिता ने भी पूरा साथ दिया। हल्द्वानी जैसे छोटे शहर में इस तरह की गतिविधियां कम होती थीं, लेकिन उन्हें गर्व था कि उनकी बेटी कुछ अलग कर रही है। मै कभी कभी लिखती हूं,
विफलता का डर नहीं पाला
फिर मैं मुंबई आ गई। मैं कोई बड़ा उद्देश्य लेकर नहीं आई थी, बस अपनी दोस्त जया के साथ कुछ समय रही। मुंबई पहुंचते ही मैंने काम शुरू कर दिया—आहट, सीआईडी, शगुन, ये रिश्ता क्या कहलाता है जैसे सीरियल्स में छोटे-छोटे रोल किए। 8-10 साल तक ऐसे ही काम किया, लेकिन एक समय बाद मुझे लगा कि छोटे रोल्स से कितना आगे बढ़ पाऊंगी? एनएसडी में हमें सिर्फ एक्टिंग ही नहीं, बल्कि राइटिंग, डायरेक्शन, कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग जैसे कई हुनर सिखाए गए थे। इसलिए मैंने कभी यह नहीं सोचा कि मुझे सिर्फ एक्टिंग ही करनी है। मैंने चंदन अरोड़ा को उनकी फिल्म मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं में असिस्ट किया। नीना गुप्ता के प्रोडक्शन में क्रिएटिव असिस्टेंट के तौर पर काम किया। एक बार जब कॉस्ट्यूम डिजाइनर नहीं आ पाईं, तो मैंने कॉस्ट्यूम की समस्या हल की। मसाबा गुप्ता के साथ भी दो साल काम किया। मैंने कभी विफलता का डर नहीं पाला। मेरा मानना है कि अगर कोई एक काम कर सकता है, तो कोई भी कर सकता है।
हर किरदार कुछ सिखाता है
एनएसडी में ढाई साल तक नाटक किए, नुक्कड़़ नाटक किए और तीन साल रेपेटरी में काम किया। हर नया किरदार और प्रोजेक्ट मुझे कुछ नया सिखाता गया। अलग-अलग किरदार निभाने से एक कलाकार का दृष्टिकोण अपने आप खुलता है। इससे किरदार को समझने और उसे जीने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है।
देखा है गांव का माहौल
पंचायत में क्रांतिदेवी का किरदार निभाते वक्त मुझे राइटर और डायरेक्टर की सोच को समझना था। एक एक्टर के तौर पर अगर आप यह समझ लें कि राइटर और डायरेक्टर क्या चाहते हैं, तो किरदार को जीना आसान हो जाता है। हर एक्टर अपने व्यक्तित्व का कुछ अंश किरदार में लाता है। मैंने क्रांतिदेवी को अपने तरीके से निभाया, जो शायद किसी और के निभाने से अलग होता। मैंने छोटे शहर और गांव का माहौल देखा है, इसलिए मेरे लिए यह किरदार नया नहीं था। यह स्वाभाविक लगता है, और दर्शकों को भी यह नैचुरल लगा।
हर किरदार देता है नया अनुभव
वेबसीरीज गुल्लक के लिए मुझे कास्टिंग टीम ने अप्रोच किया था। मैं मंजू देवी के किरदार के लिए शॉर्टलिस्ट हुई थी, लेकिन वह रोल नीना गुप्ता जी को मिला। बाद में पंचायत में क्रांतिदेवी का किरदार मेरे पास आया। पंचायत में क्रांतिदेवी को गुल्लक की बिट्टू की मम्मी से अलग करना एक चुनौती थी। मुझे लगता है कि मैं इसमें सफल रही। दीपक मिश्रा (पंचायत के डायरेक्टर) और संध्या सूरी (संतोष की डायरेक्टर) ने मेरे किरदारों को अलग-अलग ऊंचाइयों तक पहुंचाया। संतोष में मेरा किरदार गंभीर और संजीदा था, जो मेरे बेबाक व्यक्तित्व से काफी अलग था। यह मेरे लिए एक नया अनुभव था। संध्या भारत से बाहर पली बढ़ी है। उनके काम करने का तरीका अलग है। संतोष में मेरा किरदार बेहद संजीदा, गंभीर था जबकि मैं बेहद बेबाक हूं। ऐसे में काफी कुछ सीखने को मिला।
ओटीटी ने बदला कहानी कहने का तरीका
ओटीटी ने कहानी कहने का तरीका बदल दिया है। यह शो बिजनेस है—जो बिकता है, वही बनता है। ओटीटी जिस प्रभाव से आई इसलिए हमें शुरुआत में हमें बोल्ड कंटेंट देखने को मिला और उसे भी काफी सराहना मिली फिर जब पंचायत और गुल्लक जैसे शोज ने दिखाया कि पारिवारिक कहानियां भी उतनी ही पसंद की जाती हैं। ये शोज हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं, जिन्हें परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है।
मानवता सबसे ऊपर
मेरी फिल्म ‘संतोष’ को ग्लोबल स्तर पर सराहना मिली, लेकिन भारत में इसे बैन कर दिया गया। प्रोड्यूसर और डायरेक्टर विदेशी थे और मुझे नहीं पता कि इसे भारत में क्यों पसंद नहीं किया गया। मेरे लिए यह किरदार एक मौका था, जिसने मेरी क्षमता को दिखाया। फिल्में समाज का दर्पण होती हैं। जैसे-जैसे समाज में बदलाव आता है, वैसे ही फिल्मों में महिलाओं के सशक्त किरदार दिखने लगे हैं। हमारे देश में सोशल मुद्दे बहुत हैं और मेरा मानना है कि मानवता को सबसे ऊपर रखना चाहिए।
अवॉर्ड रखता है मायने
गुल्लक के लिए फिल्म फेयर ओटीटी अवॉर्ड और पंचायत के लिए आइकॉनिक गोल्ड अवार्ड जीतना मेरे लिए बहुत मायने रखता है। मुंबई में मेरे जैसे कई कलाकार हैं जो सालों से दिन रात काम कर रहे हैं लेकिन सभी को अवॉर्ड नहीं मिल पाता। अवॉर्ड या नॉमिनेशन किसी कलाकार के लिए बहुत बड़ा सम्मान है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इतना प्यार मिलेगा, क्योंकि मैं तो बस अपने काम में डूबी रहती थी। ऐसे में ये अवार्ड मेरे लिए बेहद खास है। रही बात पंचायत के पांचवें सीजन को तो अगला सीजन आएगा लेकिन उसमें क्या होगा यह कहना अभी मेरे लिए मुश्किल है।
थियेटर का अलग है मजा
लोग अकसर पूछते हैं कि थियेटर पसंद हैं या फिल्में तो मेरा कहना है कि दोनों में काम करने का अपना मजा है। थिएटर में गलती की गुंजाइश नहीं होती, लेकिन उसका नयापन और जोखिम मुझे पसंद है। फिल्मों में गलतियों को ठीक करने का मौका मिलता है, लेकिन थिएटर की बात ही अलग है। रही बात मेरे बचपन की तो मैं बचपन से ही मुंहफट रही हूं मम्मी से इसके लिए डांट भी खाई है। पंचायत में क्रांतिदेवी का बेबाक और हास्यपूर्ण किरदार मेरे व्यक्तित्व से मिलता-जुलता था। नीना जी के साथ सेट पर लड़ाई के सीन करने के बाद हम साथ खाना खाते और सैर करते थे। यह प्रोफेशनल और व्यक्तिगत रिश्तों का संतुलन था।
माइंडसेट के साथ आएं
इंडस्ट्री में जगह बनाने की कोशिश करने वालों को मेरी सलाह है कि इस फील्ड में धैर्य चाहिए। यहां कोई डिग्री या कोर्स आपको सफलता की गारंटी नहीं देता। एनएसडी या इंडस्ट्री में जगह बनाने की कोशिश करने वालों को मेरी सलाह है कि बाकी जॉब में पढ़ाई जरूरी होती है वकील बनने के लिए लॉ करना जरूरी है। डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल की पढ़ाई करनी होती है। लेकिन इस इंडस्ट्री में ऐसा होता है कि यहां बहुत सारे लोग दौड़ में है। अगर आपको लगता है कि अगर आपको एक्टर बनना है कि तो आपको थियेटर करना चाहिए लेकिन अगर आपको ग्लैमर world में जाना है तो आप इस माइंड सेट के साथ आओ कि अपना पूरा जीवन लगाने के लिए तैयार हो जिससे अगर सफल हो गए तो बेहद अच्छा है और यदि नहीं हो पाए तो निराश नहीं होना चाहिए। अपनी आर्थिक स्थिति का ध्यान रखना भी जरूरी है। आप अपने शहर में भी परफॉर्म कर सकते हैं। जिंदगी को बर्बाद करने की जरूरत नहीं। एक बड़ी फिल्म मिलने के बाद भी आप यह नहीं कह सकते हैं कि आपकी जिंदगी बदल जाएगी। कोई एक काम अपनी लाइफ नहीं बदलता उसमें समय लगता है। छोटी सी जिंदगी है खुश रहें और दूसरों को भी खुश रखें। मैं अपने कपड़े और ज्वेलरी डिजाइन करती हूं घर का इंटीरियर सजाती हूं। ये सब मुझे संतुष्टि देता है। मैं अपने पति के साथ दोस्त की तरह रहती हूँ। हम दोनों को जानवरों से प्यार है। किताबें पढऩा, ट्रैवलिंग और शॉपिंग मेरा शौक है। मैं जो दिल में होता है, उसे बोल देती हूं। मेरे लिए परिवार और दोस्त सबसे जरूरी हैं। पहले अपनी जिंदगी और परिवार को प्रायोरिटी देना जरूरी है। मेरा मानना है कि जो आपके पास है उसमें खुश रहें। खुद के प्रति रहें ईमानदार। परिवार और दोस्तों को प्रायोरिटी पर रखें क्यों कि जीवन के कठिन समय में वहीं आपके सपोर्ट सिस्टम हैं और आप कुछ भी झेल सकते हैं। बहाव के साथ बहिए।
Updated on:
03 Aug 2025 12:53 pm
Published on:
03 Aug 2025 12:41 pm