
संसार का सबसे बड़ा दुख अज्ञान का दुख है। मिथ्यात्व ही बंधन का मूल कारण है। जिस क्षण हम आत्मा को पहचान लेते हैं, आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार कर लेते हैं, उसी क्षण से मोक्ष की यात्रा प्रारंभ होती है। आत्मबोध ही मोक्ष की पहली सीढ़ी है और वीतराग वाणी उसका मार्गदर्शक दीपक।यह बातें वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, राजाजीनगर के तत्वावधान में साध्वी निर्मला के सान्निध्य में साध्वी नंदिनी ने कही। उन्होंने कहा कि भव्य जीवों को पार लगाने में वीतराग वाणी अति सहायक है। इस वाणी में वह सब कुछ समाहित है जो बाहरी संसार में नहीं पाया जा सकता। वही तत्व, वही सत्य, जिसके सहारे जीव संसार से पार होकर अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है, जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकता है। वीतराग वाणी आज भी उसी दिव्य शक्ति के साथ विद्यमान है जैसी तीर्थंकरों के काल में थी। इसका श्रेय उन अनगिनत महापुरुषों और दिव्यात्माओं को जाता है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर जिनवाणी को सुरक्षित रखा।
साध्वी ने कहा कि किताबों का ज्ञान क्षणिक है, परंतु आत्मा का ज्ञान ,सम्यक ज्ञान है जो शाश्वत है। केवल वही ज्ञान जीव को मुक्ति के द्वार तक पहुंचाता है। पूर्व में साध्वी उपमा ने स्तवन की प्रस्तुति दी। सीमा दिनेश मुणोत ने 6 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। मंगलवार को जैन दिवाकर संत चौथमल की 148वीं जयंती तप-त्याग और गुणगान से मनाई जाएगी। 5 नवंबर को वीर लोकाशाह जयंती और कृतज्ञता दिवस के साथ चातुर्मास समापन होगा। साध्वी निर्मला ने मंगलपाठ किया। कोषाध्यक्ष प्रसन्न भलगट ने आभार ज्ञापित किया एवं संचालन मंत्री नेमीचंद दलाल ने किया।
Published on:
04 Nov 2025 07:02 pm
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