Mutual Fund SIP: कई निवेशक सोचते हैं कि एसआइपी की सही टाइमिंग चुनना बहुत जरूरी है। वे बाजार के गिरने का इंतजार करते हैं, ताकि कम पैसे में अधिक यूनिट मिल सके। लेकिन मोतीलाल ओसवाल की स्टडी बताती है कि लॉन्ग टर्म में एसआइपी की टाइमिंग का असर काफी कम हो जाता है। हालांकि, शॉर्ट टर्म के निवेश में सही टाइमिंग से मिलने वाले रिटर्न पर 11% तक का फर्क पड़ा है। उदाहरण के लिए एक साल पहले जिन लोगों ने महीने के निचले स्तर पर निफ्टी 500 इंडेक्स में एसआइपी किया, उन्हें 1.2% रिटर्न मिला। वहीं, महीने के हाई लेवल पर निवेश करने वालों को 9.9% का घाटा हुआ। लेकिन 5-7 साल या उससे ज्यादा की अवधि में मिलने वाले रिटर्न का अंतर न के बराबर हो जाता है।
कई निवेशकों को यही लगता है कि महीने की उस तारीख पर एसआइपी कटे, जब मार्केट सबसे नीचे हो, ताकि ज्यादा यूनिट मिलें और मुनाफा भी ज्यादा हो। लेकिन रिपोर्ट बताती है कि यह 'परफेक्ट टाइमिंग' जरूरी नहीं है। अगर कोई निवेशक हर महीने निफ्टी 500 इंडेक्स में सबसे ऊंचे स्तर पर एसआइपी करता है और दूसरा सबसे निचले स्तर पर, तब भी 10 साल में दोनों के रिटर्न में फर्क सिर्फ 1.13% का ही देखा गया है। इसी तरह 15 से 25 साल की अवधि में मिलने वाले रिटर्न का अंतर सिर्फ 0.6% रह गया। यानी गेम 'टाइमिंग' का नहीं, 'टिके रहने' का है। मनी मंत्र के वायरल भट्ट ने कहा कि मार्केट की टाइमिंग करना आम लोगों के लिए मुश्किल है, इसलिए जरूरी है कि आप मार्केट में बने रहें और धैर्य रखें।
मोतीलाल ओसवाल के प्रतीक ओसवाल ने कहा कि हर महीने मार्केट के सबसे नीचे वाले पॉइंट पर निवेश करना लगभग नामुमकिन है। ये बस किस्मत की बात हो सकती है, लेकिन ऐसा लगातार करना मुमकिन नहीं है। वहीं, प्लान रुपी के अमोल जोशी ने कहा कि निवेशकों को एसआइपी को कम से कम 5 से 7 साल का समय देना चाहिए, ताकि मार्केट के उतार-चढ़ाव का असर खत्म हो सके। जैसे-जैसे निवेश की अवधि लंबी होती है, सही टाइमिंग का फर्क कम होता जाता है। अगर आप 5 साल तक एसआईपी करते हैं, तो निवेश के शुरूआत के दिन का रिटर्न पर असर सिर्फ 3% के आसपास होता है। 15, 20 या 25 साल तक निवेश करते रहें, तो यह फर्क और भी कम हो जाता है।
Published on:
16 Jul 2025 09:26 am