
white gold। सफेद सोना कहे जाने वाली कपास उपज पर ग्रहण लग गया। भारतीय कपास निगम (सीसीआई) द्वारा किसानों से समर्थन मूल्य पर कपास की खरीदी नहीं करने से जिले के कपास उत्पादक किसान परेशान हैं। एक निजी जिनिंग फैक्ट्री कपास खरीदी कर रही है, वह भी उसकी क्षमता अनुसार। 13 हजार हेक्टेयर में कपास की बोवनी होने के बाद भी कपास की यहां खरीदी न होने से मंडी को भी 70 से 75 लाख के टैक्स का नुकसान हो रहा है।
करीब 6 साल से जिले में सीसीआई की खरीदी नहीं होने एवं कपास की जिनिंग फैक्ट्रियां बंद होने के कारण रकबा भी तेजी से गिर रहा है। बेमौसम बारिश के कारण कपास खराब होने के साथ भाव नहीं मिलने से किसान अब दूसरी फसलें लगा रहे हैं। शहर में केवल एक निजी जिनिंग संचालक खरीदी कर रहे हैं। वह भी 6500 से 7000 रुपए तक भाव दे रहे हैं, जबकि अन्य शहरों में 7500 रुपए भाव मिल रहा है। किसान खंडवा, खरगोन और महाराष्ट्र की कपास मंडियों में उपज बेचने के लिए जा रहे है।
मंडी के मुताबिक सीसीआई ने 2019 से खरीदी नहीं की है। इससे रकबा 25 हजार से घटते हुए 13 हजार हेक्टेयर पर आ गया। रकबा क्या घटा मंडी को भी सालाना 1 करोड़ के करीब टैक्स की चपत लग रही है। निजी व्यापारी की जितनी क्षमता है वह उतना ही माल खरीद रहे हैं। इसलिए किसान अन्य शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। यही हाल केला का भी रहा, भाव गिरने से मंडी को इस पर भी एक करोड़ के टैक्स का नुकसान हुआ।
मंडी के मुताबिक सीसीआई ने 2019 से खरीदी नहीं की है। इससे रकबा 25 हजार से घटते हुए 13 हजार हेक्टेयर पर आ गया। रकबा क्या घटा मंडी को भी सालाना 1 करोड़ के करीब टैक्स की चपत लग रही है। निजी व्यापारी की जितनी क्षमता है वह उतना ही माल खरीद रहे हैं। इसलिए किसान अन्य शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। यही हाल केला का भी रहा, भाव गिरने से मंडी को इस पर भी एक करोड़ के टैक्स का नुकसान हुआ।
Updated on:
27 Oct 2025 10:36 pm
Published on:
27 Oct 2025 10:34 pm
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