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‘मुझे बेटे ने नहीं पहचना, 50 बीघा जमीन पर कब्जा और…’ जो मर्डर किया ही नहीं उसके लिए 11 साल तक जेल में बिताए, पीड़ित का छलका दर्द

UP News: 'मुझे बेटे ने नहीं पहचना, 50 बीघा जमीन पर कब्जा और...' जो मर्डर किया ही नहीं उसके लिए 11 साल तक शख्स को जेल में रहना पड़ा। जानिए पूरा मामला क्या है?

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elderly man who couldnt afford lawyer acquitted of murder and released from jail

जो मर्डर किया ही नहीं उसके लिए 11 साल तक जेल में बिताए, पीड़ित का छलका दर्द। फोटो सोर्स-पत्रिका न्यूज

UP News: तीन दशकों से भी ज्यादा समय तक शख्स ने अपनी जिंदगी जेल में गुजारी। शख्स को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वकील करने में असमर्थ संजय कुमार जेल से रिहा हो गए हैं।

11 साल जेल में बिताए

दरअसल, वकील रखने में असमर्थ, बुलंदशहर के 60 साल के किसान संजय कुमार ने 11 साल जेल में बिताए। न्याय का इंतजार करते हुए जो आखिरकार उन्हें इस हफ्ते मिल ही गया। कोर्ट ने संजय कुमार को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है।

LADCS को सौंप दिया गया था मामला

1993 के एक हत्या के मामले में आरोपी संजय कुमार को बुधवार को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) मोहम्मद नसीम की अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया। निजी कानूनी मदद पाने में सालों तक नाकाम रहने के बाद 2024 में उनका मामला लीगल एड डिफेंस काउंसिल सिस्टम (LADCS) को सौंप दिया गया।

कोर्ट ने कहा-पर्याप्त सबूत नहीं

मामले को लेकर बुलंदशहर के DLSA के अध्यक्ष ADJ शहजाद अली ने कहा,'' संजय कुमार वकील का खर्च नहीं उठा सकते थे और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) जिसके अधीन LADCS काम करता है के हस्तक्षेप तक जेल में रहे। उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक मुख्य वकील नियुक्त किया गया। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुनाया कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं और उन्हें बरी कर दिया।"

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अली ने कहा कि कानूनी सहायता प्रणाली के तहत प्रतिनिधित्व का खर्च वहन करने में असमर्थ कैदियों को एक प्रमुख, उप-प्रमुख और दो सहायकों वाले 4 सदस्यीय पैनल से वकील नियुक्त किए जाते हैं। उन्होंने कहा, "कुछ मामलों में, अदालत एक न्यायमित्र भी नियुक्त करती है।"

क्या है पूरा मामला

यह मामला 1993 का है, जब जहांगीराबाद के सांखनी गांव के निवासी शकील अहमद को संजय के खेत से गन्ना चुराते हुए पकड़े जाने पर पीट-पीटकर मार डाला गया था। चूंकि घटना उसके खेत में हुई थी, इसलिए संजय उन पांच लोगों में शामिल था जिन पर हत्या का मामला दर्ज किया गया था।

अपराध के समय गांव में ही नहीं था शख्स

LADCS बुलंदशहर के मुख्य वकील राजीव कुमार ने कहा, "कोर्ट ने पाया कि अपराध के समय संजय गांव में था ही नहीं। पर्याप्त सबूतों ने उसकी बेगुनाही साबित कर दी।" 2007 में संजय के पिता और चाचा सहित 4 अन्य लोगों को दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। हालांकि संजय का मुकदमा, एक न्यायमित्र की देखरेख में अलग से चलता रहा। उसे 2014 में गिरफ्तार किया गया था और इस हफ्ते बरी होने तक वह जेल में रहा।

पीड़ित का छलका दर्द

रिहा होने के बाद संजय ने कहा, "एक ऐसे अपराध के लिए जो मैंने किया ही नहीं था, 11 साल जेल में बिताने के बाद, मैं आखिरकार आजाद हूं। 1993 से मेरी जिंदगी एक निरंतर संघर्ष रही है। सालों तक छिपता रहा, और चुपके से ही घर लौटता रहा। मेरे लिए एक न्यायमित्र नियुक्त किया गया, लेकिन मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई। जब मैं 2014 में अपनी बेटी की शादी के लिए वापस आया तो मेरे अपने बेटे ने मुझे पहचाना ही नहीं। तब तक हमारी 50 बीघा जमीन पर कब्जा हो चुका था। हमारे पास कानूनी मदद के लिए पैसे नहीं बचे थे।"