
गीतकार लालजी पांडेय की फोटो (इमेज सोर्स: एक्स)
Lalji Pandey Birthday Anniversary: बनारस की गलियों से निकलकर बॉलीवुड के सुरों की दुनिया में अपना जादू बिखेरने वाले लालजी पांडेय, जिन्हें दुनिया ‘अनजान’ के नाम से जानती है। वास्तव में वो सिर्फ एक गीतकार नहीं, बल्कि शब्दों के उस जादूगर थे जिन्होंने आम लफ्जों को अमर बना दिया।
लेकिन उनकी ये चमकदार पहचान रातों-रात नहीं बनी। बनारस के तंग मोहल्लों में जन्मे लालजी का सफर संघर्षों से भरा हुआ था। कभी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर उन्होंने अपने परिवार का गुजारा किया। वही इंसान आगे चलकर ऐसी कविताएं और गीत लिखे, जिन पर पूरा देश झूम उठा।
28 अक्टूबर 1930 को उत्तर प्रदेश के बनारस में जन्मे लालजी पांडेय का घराना खुद कला और साहित्य की खुशबू से भरा था। उनके परदादा राजाराम शास्त्री विद्वान थे, और शायद वही शब्दों की संवेदना लालजी के खून में उतर आई थी। बचपन से ही उन्हें कविता और लेखनी से गहरा लगाव हो गया। उन्होंने बनारस के प्रसिद्ध कवि रुद्र काशिकेय से शिक्षा ली और जल्द ही बनारस की पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं छपने लगीं।
स्थानीय कवि सम्मेलनों में जब ‘अनजान’ अपनी सुरीली आवाज में कविता सुनाते, तो लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहते। उस दौर में जब हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ हर जुबान पर थी, तब युवा अनजान ने उसकी एक शानदार पैरोडी ‘मधुबाला’ लिखी जो बनारस के नौजवानों के बीच धूम मचा गई।
मुंबई आने का फैसला उनके लिए स्वास्थ्य और करियर दोनों कारणों से जरूरी था। उन्हें अस्थमा की गंभीर बीमारी थी और डॉक्टरों ने कहा कि अगर वह शुष्क वातावरण में रहेंगे तो जिंदा नहीं रह सकते। इसलिए उन्होंने समुद्र के किनारे कहीं बसने का निर्णय लिया और मुंबई का रुख किया। मुंबई आने के बाद अनजान को एक लंबा संघर्ष शुरू करना पड़ा। उनके बनारस के दोस्त शशि बाबू ने उन्हें गायक मुकेश से मिलवाया, जिन्होंने उनकी कविताओं को सुना और उन्हें फिल्मों में गीत लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
मुकेश की मदद से उन्हें प्रेमनाथ की फिल्म 'प्रिजनर ऑफ गोलकुंडा' में काम मिला। इस फिल्म के गाने अनजान ने लिखे, लेकिन यह फिल्म फ्लॉप रही, पर दर्शकों को गाने पसंद आए। यही वह दौर था जब अनजान को जीविका चलाने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना पड़ता था। ट्यूशन पढ़ाना उनके लिए सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं था, बल्कि यह उनके संघर्ष और मेहनत की कहानी का अहम हिस्सा भी था।
उनकी मेहनत और लगन रंग लाई और 17 साल के लंबे संघर्ष के बाद उन्हें फिल्म 'गोदान' में मौका मिला। इस फिल्म के गीतों ने उन्हें पहचान दिलाई और उनके काम में स्थिरता आई। इसके बाद उन्हें राजेश खन्ना और मुमताज की फिल्म 'बंधन' में गाने लिखने का अवसर मिला, जिसमें उनका गीत 'बिना बदरा के बिजुरिया' बहुत मशहूर हुआ। इसके बाद उन्होंने कल्याणजी-आनंदजी, बप्पी लहरी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आर.डी. बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया। उन्होंने बॉलीवुड को 'खइके पान बनारस वाला', 'पिपरा के पतवा सरीखा डोले मनवा' और 'बिना बदरा के बिजुरिया' जैसे हिट गाने दिए। उनके गीतों में भोजपुरी और पूर्वांचल की मिठास झलकती थी और उनकी लेखनी लोगों के दिलों को छूती थी।
अनजान का निधन 3 सितंबर 1997 को 67 वर्ष की उम्र में हुआ। उनकी विरासत सिर्फ उनके गाने ही नहीं, बल्कि उनका संघर्ष और मेहनत भी है।
Published on:
27 Oct 2025 08:24 pm
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