‘सिंधी ने कभी भी भीख नहीं मांगी’ दोस्तों की मदद से घर से भागे मुंबई: जानें असरानी का जयुपर के 5 बत्ती से बॉलीवुड तक का सफर
Asrani Struggle Story: कॉमेडी के जादूगर गोवर्धन असरानी ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। दिग्गज अभिनेता के निधन से सभी दुखी हैं। अभिनेता से लेकर राजनेता तक, उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दे रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गोवर्धन असरानी को श्रद्धांजलि अर्पित की है। पीएम नरेंद्र मोदी गोवर्धन असरानी के निधन से बहुत दुखी हैं। चलिए, अब आपको एक्टर से जुड़ी दिलचस्प किस्सा के बारे मने बताते हैं।
असरानी का जन्म गुलाबी नगरी जयपुर में हुआ था। पूरा नाम था गोवर्धन असरानी, लेकिन आगे चलकर यही नाम हिंदी सिनेमा में हंसी का पर्याय बन गया। उनके पिता ठाकुरदास जेठानंद असरानी का जयपुर में कालीन और साड़ियों का व्यवसाय था, और उनकी दुकान पांच बत्ती के पास स्थित थी।
देश के बंटवारे के बाद असरानी का परिवार कराची से जयपुर आकर बस गया था। हालांकि घरवालों को उम्मीद थी कि असरानी पारिवारिक व्यापार संभालेंगे, मगर उनका दिल तो कुछ और ही चाहता था।
एक मध्यमवर्गीय सिंधी परिवार से आने वाले असरानी ने जयपुर के सेंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ाई की और फिर राजस्थान कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान खर्च चलाने के लिए उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो, जयपुर में बतौर वॉइस आर्टिस्ट काम किया। वहीं से उनकी आवाज और अदायगी ने सबका ध्यान खींचना शुरू किया।
असरानी का एक किस्सा आज भी बड़े चाव से सुनाया जाता है। कहानी है उन दिनों की, जब असरानी अपने एक दोस्त के साथ एमआई रोड पर साइकिल की सवारी कर रहे थे। असरानी साइकिल के डंडे पर आगे बैठकर, हैंडल के ऊपर से एक पैर लटकाए, पूरे मिजाज में बातें करते जा रहे थे। तभी रास्ते में पहुंचे सरकारी मोटर गैराज के पास, जहां आज गणपति प्लाजा है। असरानी ने अचानक इशारा करके दोस्त से कहा, “रोक साइकिल!” साइकिल रुकी, और असरानी सीधे सामने लगी फिल्म ‘मेहरबान’ की होर्डिंग के पास चले गए। पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए मुस्कुराए और बोले- “देख रहे हो इसे? एक दिन यहां मेरी भी फिल्म का पोस्टर लगेगा।” दोस्त ने भी हंसकर कहा, “हां भाई, जरूर लगेगा” और किस्मत भी देखिए- कुछ ही महीनों बाद, उसी जगह, उसी दीवार पर फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ का पोस्टर लगा। उस पोस्टर में विश्वजीत, नैना साहू, हेलन और राजेंद्र नाथ जैसे सितारों के साथ, एक कोने में असरानी का चेहरा भी चमक रहा था। वो पल सिर्फ असरानी का नहीं था। वो हर सपने देखने वाले कलाकार की जीत थी, जिसने साबित कर दिया कि सपने अगर सच्चे हों, तो दीवारें भी उन्हें सलाम करती हैं। इस दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं है।
आज से ठीक 11 महीने पहले, यानी 23 नवंबर 2024 को अजमेर (राजस्थान) में एक कार्यक्रम के दौरान असरानी ने ऐसा बयान दिया था, जिसने वहां मौजूद हर शख्स को गर्व से भर दिया था। मंच पर खड़े असरानी ने मुस्कुराते हुए कहा था कि आपने कभी किसी देश में सिंधी भिखारी देखा है? नहीं ना! क्योंकि सिंधी ने कभी भीख नहीं मांगी। हमने गोलियां बेचीं, कपड़ों का व्यापार किया, पकौड़े बेचे, लेकिन कभी हाथ फैलाया नहीं। यह हमारे समाज की सबसे बड़ी पहचान है।
भीड़ ताली बजा रही थी, लेकिन असरानी यहीं नहीं रुके। आगे उन्होंने कहा, “आपको कोई सिंधी डाकू, आतंकवादी, नक्सली या खूनी नहीं मिलेगा… लेकिन एक व्यापारी जरूर मिलेगा। हमने दुनिया का कोई देश नहीं छोड़ा। जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, हर जगह सिंधियों ने कपड़े बेचे, पकौड़े बनाए, पकवान परोसे… और मैंने खुद भी बेचे हैं! मेरे पिता और मां ने भी यही किया। कपड़े सिले, मेहनत की, लेकिन भीख नहीं मांगी। यही सबसे बड़ी बात है।”
उनकी यह बात सुनकर सभागार तालियों से गूंज उठा। उस दिन असरानी ने न सिर्फ अपनी सिंधी जड़ों पर गर्व जताया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि असली सम्मान मेहनत करने वालों को ही मिलता है, चाहे वो पकौड़े बेचने वाला हो या पर्दे पर लोगों को हंसाने वाला कलाकार।
Published on:
21 Oct 2025 02:39 pm
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