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भारतीय वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार तैयार की खास DNA चिप, इस तरह करेगी मदद

Bikaner News: नई विकसित इस चिप से स्वदेशी नस्ल के घोड़ों के बारे में ज्यादा गहनता से अध्ययन किया जा सकेगा।

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प्रतीकात्मक फोटो

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बृजमोहन आचार्य. राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने राष्ट्रीय पशु संसाधन ब्यूरो करनाल के वैज्ञानिकों के साथ दो साल मेहनत कर एक चिप विकसित की है। इससे स्वदेशी नस्ल के घोड़ों की ताकत और इतिहास सामने आ जाएगा। केंद्र के वैज्ञानिकों का दावा है कि स्वदेशी घोड़ों की डीएनए बेस्ड एक्सिओ अश्व एसएनपी चिप देश में पहली बार तैयार की गई है। नई विकसित इस चिप से स्वदेशी नस्ल के घोड़ों के बारे में ज्यादा गहनता से अध्ययन किया जा सकेगा। अब तक विदेशी घोड़ों की डीएनए जांच चिप से ही आनुवांशिक अध्ययन करते थे।

100 से अधिक घोड़ों के डीएनए पर किया अध्ययन

इस चिप को तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने 100 से अधिक घोड़ों के डीएनए पर अनुसंधान किया। इसमें मारवाड़ी, काठियावाड़ी, मणिपुरी झांसकारी, स्पीति तथा भुटिया नस्ल के घोड़े शामिल रहे। एक विदेशी नस्ल थोरब्रेडस के घोड़े को भी शामिल किया गया। सभी की डीएनए जांच कर चिप तैयार की गई। इसके लिए 6 लाख 13 हजार 950 डीएनए मार्कर डाले गए। इससे 94.4% तक सफल परिणाम सामने आए है। डीएनए चिप से घोड़ों की नस्लों का वर्गीकरण के साथ उनके उत्पादन एवं खासियत का पता लगेगा।

इन वैज्ञानिकों ने तैयार की चिप

इस चिप को तैयार करने में दो साल का समय लगा। टीम में राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एससी मेहता के साथ सोनिका अहलावत, साकेत कुमार निरंजन, रीना अरोड़ा, रमेश कुमार विज, अमोद कुमार, उपासना शर्मा, मिनल रहेजा, कनिका पोपली, सीमा यादव शामिल रहे।

टॉपिक एक्सपर्टः विदेशी चिप पर नहीं रहना होगा निर्भर

अब तक स्वदेशी घोड़ों की डीएनए जांच के लिए विदेशी घोड़ों के लिए तैयार चिप ही काम में ली जाती थी। इससे सार्थक परिणाम सामने नहीं आते थे। दोनों का रहन- सहन और कदकाठी, अनुवांशिक हिस्ट्री अलग-अलग होती है। इसे देखते हुए स्वदेशी घोड़ों की डीएनए चिप तैयार की गई। इसके लिए वैज्ञानिकों ने काम किया।

इस चिप से स्वदेशी घोड़ों की डीएनए जांच कारगर साबित होगी। इससे घोड़ों के दौड़ने की गति, कार्य क्षमता, घोड़ों की चाल, ताकत नस्लों की कुंडली का पता चल सकेगा। साथ ही मजबूत एवं ताकतवर घोड़ों का चयन करना भी आसान हो जाएगा। अब विदेशी चिप पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। - डॉ एससी मेहता, प्रभागाध्यक्ष राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर

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