बरेली। भ्रष्टाचार पकड़ने वाली टीम ही जब भ्रष्टाचार के जाल में फंस जाए तो यह केवल तंज नहीं, कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह होता है। बिल्कुल ऐसा ही मामला दारोगा दीपचंद के साथ हुआ, जिन्हें एंटी करप्शन टीम ने बिना सत्यापन, बगैर रासायनिक परीक्षण और गवाहों के आधी रात में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लेकिन अब पुलिस जांच रिपोर्ट ने पूरी कहानी पलट दी है।
छह जनवरी की रात, भुड़िया पुलिस चौकी में एंटी करप्शन के सीओ यशपाल सिंह के नेतृत्व में टीम ने धावा बोला। सीधे दारोगा दीपचंद की मेज खोली गई और पैसे बरामद कर उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में गिरफ्तार कर लिया गया। ना नोट पकड़वाए गए, ना हाथ धुलवाए गए, जबकि नियमानुसार गुलाबी रंग की पुष्टि के लिए रासायनिक परीक्षण अनिवार्य होता है।
एसएसपी अनुराग आर्य के आदेश पर आइपीएस अंशिका वर्मा के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित हुई। जांच में सामने आया।
छापे से पहले टीम ने चौकी के एक सिपाही को जबरन कार में बैठाकर उत्तराखंड सीमा तक ले जाकर दबाव बनाया।
सिपाही की लोकेशन एंटी करप्शन टीम की लोकेशन से मैच हुई।
इसी सिपाही से दारोगा की मेज में 50 हजार रुपये रखवाए गए, फिर टीम ने औपचारिक छापेमारी दिखाई।
चौकी में मौजूद 10-12 लोगों में से किसी को भी गवाह नहीं बनाया गया, जबकि यह प्रक्रिया अनिवार्य है।
पुलिस रिपोर्ट में इन तथ्यों को ‘पूर्वाग्रह से प्रेरित कार्रवाई’ बताया गया है।
दारोगा दीपचंद की पत्नी गुंजन ने मार्च में एसएसपी को पत्र देकर कहा था कि शिकायतकर्ता जीशान और एंटी करप्शन टीम की मिलीभगत से पूरा खेल रचा गया। उनके अनुसार, एक महिला आरोपित को जेल भेजने के कारण एंटी करप्शन अधिकारी नाराज़ थे, इसलिए बदले की कार्रवाई की गई।
एसएसपी अनुराग आर्य ने बताया कि जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है, आगे की कार्रवाई वहीं से तय होगी।”
दारोगा दीपचंद के हाथों पर नोटों का कैमिकल कलर नहीं मिला, गवाह नहीं लिए गए, प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ और लोकेशन डेटा ने साजिश की पुष्टि की। अब पूरा मामला शासन के पटल पर है, जहाँ से यह देखा जाएगा कि भ्रष्टाचार पकड़ने वाली टीम ही भ्रष्ट घोषित होती है या नहीं।
Published on:
17 Oct 2025 09:30 am
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