शिक्षाविदों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के लर्निंग आउटकम-बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (एलओसीएफ) के मसौदे के शिक्षा प्रणाली पर पडऩे वाले गंभीर प्रभावों पर चर्चा की।
अखिल भारतीय शिक्षा बचाओ समिति (एआइएसइसी) की कर्नाटक शाखा की ओर से कर्नाटक के पूर्व कुलपतियों के फोरम हॉल में आयोजित इस गोलमेज सम्मेलन में विभिन्न शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों और छात्रों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।एआइएसइसी, कर्नाटक के उपाध्यक्ष वी. एन. राजशेखर कहा, पाठ्यक्रम तैयार करना यूजीसी का काम नहीं है, यह संबंधित विश्वविद्यालयों और निकायों का विशेषाधिकार है।
उन्होंने यूजीसी पर पूरे देश में एकतरफा तौर पर एलओसीएफ पाठ्यक्रम लागू करके विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के उल्लंघन का आरोप लगाया। उनके अनुसार वर्तमान स्वरूप में एलओसीएफ के लागू होने से अवैज्ञानिक मानसिकता को बढ़ावा मिलेगा। देश सदियों पीछे चला जाएगा। इन्हीं कारणों से, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने इस एलओसीएफ पाठ्यक्रम को निरस्त करने की मांग की है।
हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. ए. मुरीगेप्पा ने एआइ के युग में श्लोकों, पंचांगों, वास्तु आदि को शामिल करने के उद्देश्य और उपयोगिता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम वस्तुनिष्ठ होने चाहिए, व्यक्तिपरक नहीं। उन्हें किसी राजनीतिक दल का हुक्म नहीं बनना चाहिए।अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, के गणितज्ञ प्रोफेसर आर. रामानुजम ने कहा, एलओसीएफ पाठ्यक्रम का बड़ा हिस्सा पुराना और अवैज्ञानिक है तथा हमारी सभ्यता को सदियों पीछे ले जाएगा। इसलिए इसे पूरी तरह से खारिज कर देना चाहिए।
भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर डॉ. मंजूनाथ कृष्णपुर ने कहा, ऐसा लगता है कि यह एलओसीएफ चैटजीपीटी द्वारा तैयार किया गया है क्योंकि यह बहुत ही यादृच्छिक है और इसमें दिए गए कई संदर्भ मौजूद नहीं हैं।
भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, कोलकाता के पूर्व निदेशक प्रो. सौमित्रो बनर्जी ने कहा, इस एलओसीएफ के साथ कोई भी छात्र गणितज्ञ नहीं बन सकता। इसने बीजगणित, ज्यामिति, अंकगणित आदि जैसे गणित के मूल सिद्धांतों की उपेक्षा की है और भारतीय ज्ञान प्रणाली के नाम पर पाठ्यक्रम के अधिकांश भाग को अप्रासंगिक और पुराने विषयों से भर दिया है।
Published on:
17 Oct 2025 06:30 pm
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