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Success Story: मिट्टी के कुल्हड़ से गढ़ी किस्मत: शालिनी बनीं गाँव की महिलाओं की ताकत

Success Story Shalini Singh: अमेठी की शालिनी सिंह ने मिट्टी के कुल्हड़ बनाकर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर उन्होंने न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारी, बल्कि गाँव की अन्य महिलाओं को भी रोजगार का अवसर देकर सशक्त बनाया। अब पूरा गांव शालिनी पर गर्व करता है।

4 min read

अमेठी

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Ritesh Singh

Oct 18, 2025

प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका मिशन के सहारे अमेठी की महिलाएं कर रहीं हैं सशक्तिकरण की मिसाल (फोटो सोर्स : Ritesh Singh )

प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका मिशन के सहारे अमेठी की महिलाएं कर रहीं हैं सशक्तिकरण की मिसाल (फोटो सोर्स : Ritesh Singh )

Success Story From Clay Cups to Courage: मिट्टी के कुल्हड़ से गढ़ी किस्मत: शालिनी बनीं गाँव की महिलाओं की ताकत कहते हैं कि अगर संकल्प सच्चा हो तो परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, मंज़िल मिल ही जाती है। अमेठी जनपद के ग्राम पंचायत खरगपुर भादर की निवासी शालिनी सिंह ने इस बात को सच साबित किया है। कभी आर्थिक तंगी से जूझने वाली शालिनी आज न केवल आत्मनिर्भर हैं, बल्कि अपने गाँव की कई महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने की राह दिखा रही हैं। मिट्टी के कुल्हड़, प्लेट और गिलास बनाकर उन्होंने न सिर्फ अपनी आजीविका का साधन तैयार किया, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को संगठित कर महिला सशक्तिकरण का नया अध्याय भी रचा।

संघर्ष से सफलता तक की कहानी

करीब ढाई हजार की आबादी वाले इस छोटे से गांव खरगपुर में पहले कोई भी महिला समूह से जुड़ी नहीं थी। अधिकतर महिलाएं घरेलू कार्यों तक सीमित थीं और घर की आर्थिक स्थिति में उनका कोई योगदान नहीं था। लेकिन जब शालिनी ने प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत संचालित शारदा स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के माध्यम से जुड़ाव शुरू किया, तो उनकी सोच और जीवन दोनों बदल गए।

शालिनी बताती हैं कि समूह में जुड़ने से पहले परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। बच्चों की पढ़ाई और घर की बुनियादी जरूरतें पूरी करना कठिन था। समाज में ताने मिलते थे और आत्मविश्वास टूटने लगा था। लेकिन समूह से जुड़ने के बाद परिस्थितियों ने करवट ली। उन्होंने मिट्टी के बर्तनों,खासकर कुल्हड़, प्लेट और गिलास का निर्माण शुरू किया और धीरे-धीरे इस कार्य को व्यवसाय का रूप दे दिया।

“कुल्हड़ ने बदली जिंदगी”

शालिनी कहती हैं, “जब मैंने पहली बार मिट्टी के कुल्हड़ बनाने का विचार रखा, तो कई लोगों ने मजाक उड़ाया। लेकिन मैंने ठान लिया था कि इस परंपरागत कला को आधुनिक जरूरतों के साथ जोड़कर कुछ नया करना है। उनके अनुसार, कुल्हड़ न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि अब इनकी मांग शहरों और कस्बों तक बढ़ती जा रही है। चाय, ठंडाई और लस्सी के लिए मिट्टी के कुल्हड़ों की डिमांड ने उन्हें स्थायी ग्राहक दिलाए। धीरे-धीरे उन्होंने अपने कार्य का विस्तार किया और गाँव की अन्य महिलाओं को भी साथ जोड़ा।

महिलाओं को मिला आत्मनिर्भरता का सूत्र

आज शालिनी के नेतृत्व में गांव की लगभग 20 महिलाएं   “शारदा स्वयं सहायता समूह” के माध्यम से रोजगार से जुड़ी हैं। कोई मिट्टी गूंथने का कार्य करती है, कोई कुल्हड़ पकाने का, तो कोई बाजार में बिक्री का जिम्मा संभालती है। इससे न केवल महिलाओं की आय में वृद्धि हुई है, बल्कि उनके अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ा है। समूह की एक अन्य सदस्य सविता देवी बताती हैं, “पहले हम घर की चारदीवारी में सीमित थीं। अब हम अपने काम के लिए गांव से बाहर भी जाती हैं, मेलों और प्रदर्शनों में अपने उत्पाद बेचती हैं। लोगों से बात करने और सौदे करने का आत्मविश्वास अब हमारे भीतर है।”

सरकारी योजनाओं का मिला सहारा

प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत बनाए गए उमंग संकुल संघ ने इन महिलाओं को प्रशिक्षण, ऋण सुविधा और विपणन सहायता उपलब्ध कराई। इस सहयोग से समूह के कार्यों में स्थिरता आई और उत्पादन क्षमता बढ़ी। स्थानीय प्रशासन ने भी इनकी पहल की सराहना की है। जिलाधिकारी संजय चौहान ने कहा, “प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत अमेठी की  महिलाएं  आत्मनिर्भरता की दिशा में सराहनीय कार्य कर रही हैं। शालिनी और उनका समूह एक प्रेरक उदाहरण हैं। अन्य  महिलाएं   भी इनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन में बदलाव ला सकती हैं।”

परिवार में भी आई खुशहाली

शालिनी के अनुसार, समूह से जुड़ने के दो साल के भीतर ही उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार हुआ। अब बच्चों की पढ़ाई निर्बाध रूप से चल रही है, घर की जरूरतें पूरी हो रही हैं और समाज में उनका सम्मान भी बढ़ा है। वे कहती हैं, “पहले लोग कहते थे कि महिलाएं   बाहर काम नहीं कर सकतीं। लेकिन अब वही लोग हमारे उत्पाद खरीदने आते हैं। यह सबसे बड़ी खुशी की बात है।”

गाँव में फैली नई सोच

शालिनी की पहल से आज खरगपुर भादर की  महिलाएं   संगठित होकर छोटे-छोटे व्यवसायों की ओर अग्रसर हैं। कोई अगरबत्ती बना रही है, कोई पापड़ और अचार तैयार कर रही है, तो कोई सिलाई-कढ़ाई का काम कर रही है। इन सभी के पीछे प्रेरणा का स्रोत हैं- शालिनी सिंह, जिनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और सकारात्मक सोच ने पूरे गाँव की दिशा बदल दी। गाँव के प्रधान रामनरेश यादव कहते हैं, “शालिनी ने जो काम किया है, वह पूरे गाँव के लिए गर्व की बात है। उन्होंने यह साबित किया कि अगर महिलाएं  संगठित होकर आगे बढ़ें, तो गाँव में ही रोजगार के नए अवसर सृजित किए जा सकते हैं।”

स्थानीय उत्पादों को मिली पहचान

शालिनी के समूह द्वारा बनाए गए कुल्हड़ और मिट्टी के उत्पाद अब आस-पास के कस्बों जैसे भादर, तिलोई और अमेठी नगर में भी बिकने लगे हैं। स्थानीय मेलों और हाट-बाजारों में इनके उत्पादों की अच्छी मांग रहती है। शालिनी का कहना है कि अब वे अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेचने की दिशा में भी कदम बढ़ा रही हैं। इसके लिए समूह की कुछ युवा  महिलाएं  डिजिटल मार्केटिंग का प्रशिक्षण ले रही हैं, ताकि उत्पादों की पहुँच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो सके।

 महिलाएं  संगठित हों, तो बदलाव निश्चित है

शालिनी का मानना है कि अगर महिलाएं संगठित होकर कार्य करें, तो गाँव में ही रोजगार के नए अवसर सृजित किए जा सकते हैं। वे कहती हैं, “हमारे पास हुनर की कोई कमी नहीं है, बस उसे दिशा देने की जरूरत होती है। जब सरकार और समाज का साथ मिले, तो महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रह सकतीं।

आत्मनिर्भर भारत की राह पर अमेठी की महिलाएं

प्रधानमंत्री ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत अमेठी जनपद की सैकड़ों  महिलाएं   आज अलग-अलग समूहों के माध्यम से स्वरोजगार की दिशा में कार्य कर रही हैं। इनमें शालिनी सिंह जैसी महिलाओं की भूमिका अग्रणी है, जो दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। इन महिलाओं की मेहनत से यह साबित होता है कि “आत्मनिर्भर भारत” का सपना गांवों से ही साकार होगा। जब ग्रामीण  महिलाएं   आर्थिक रूप से सशक्त होंगी, तभी सच्चे अर्थों में समाज प्रगतिशील बन सकेगा।