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Human Angle- जरूरतमंदों का ‘दिलराज’, परित्यक्त-विमंदित लोगों की करता है सेवा

-छोटी उम्र में बड़ा काम, विमंदित बुजुर्गों की तिमारदारी की निभा रहा जिम्मेदारी -सावर के पार काला खेत गांव में एक युवा की पहल

3 min read

अजमेर

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Manish Singh

Sep 16, 2025

जरूरतमंदों का ‘दिलराज’, परित्यक्त-विमंदित लोगों की करता है सेवा

सावर के निकट काला खेत निवासी राज मीणा अपने आश्रम में प्रभूजी व अपने साथियों के साथ। पत्रिका

मनीष कुमार सिंहअजमेर(Ajmer News) . जिस उम्र में युवा पढ़ लिखकर अपना जीवन संवारने का सपना देखते हैं। उस उम्र में राज अपने से दो से तीन गुना बड़ी उम्र के उपेक्षित बुजुर्गों व विमंदितों का ‘दिलराज’ बना हुआ है। वह ना केवल उन्हें रेस्क्यू कर आश्रम तक लेकर आता है बल्कि उनकी तिमारदारी के बाद सोशल मीडिया के जरिए अपनों से मिलवाने का भी बड़ा काम कर रहा है। खास बात यह है कि यह सबकुछ बिना सरकारी मदद के आमजन के सहयोग से चल रहा है।

सावर से देवली मार्ग पर छोटा-सा गांव कालाखेत अब किसी पहचान का मोहताज नहीं है। यहां का 24 वर्षीय राज मीणा ‘राजभाई’ अपने 46 सदस्यों के परिवार के साथ खुले आसमान और छप्पर के नीचे अपने प्रभूजी की सेवा में दिनरात लगा रहता है। प्रभूजी बढ़े तो सोशल मीडिया से फंडिंग भी जुटाना शुरू कर दिया। लोगों ने दिल खोलकर मदद की लेकिन किराए का आशियाना अचानक छिन गया। जिनका विषम परिस्थिति में भी राज ने ना तो हौसला छोड़ा ना साथ।

झोंपड़े लेने लगे आश्रम का आकार

राज मीणा ने बताया कि आश्रम की सरकारी जमीन के लिए प्रयास किए लेकिन किसी ने मदद नहीं की। फिर काश्तकार पिता ने अपनी काश्त की 2 बीघा जमीन पर राज के प्रभूजी के लिए छप्पर बनाए। तिरपाल-लकड़ी से बने छोटे डोम ‘झोंपड़े’ अब टिनशेड का आकार ले चुके हैं। आर्थिक मदद से यहां लगातार निर्माण चल रहा है। अभी भी उसके आश्रम में 30 पुरूष और 16 महिला प्रभूजी हैं। उसकी सारी मदद सोशल मीडिया के फंड से होती है। ऐसे में उसने अपने आश्रम का नाम बदलकर सोशल मीडिया आश्रम कर दिया है।

यों हुई शुरूआत

राज ने बताया कि पारिवारिक हालात के चलते 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद वह उदयपुर में होटल में काम करने चला गया। वहां गुजरात के पोपट भाई के आश्रम के वीडियो देखे तो लगा प्रदेश में भी विमंदित व बेसहारा बुजुर्गों का दर्द कोई नहीं समझता। उसने सोशल मीडिया पर राजभाई रेस्क्यू नाम से पेज बनाया। डेढ़ साल तक खाना, खिलाने, नहलाने के साथ रेस्क्यू कर जयपुर, कोटा और अजमेर के आश्रम में छोड़ देता था। फिर नवम्बर 2024 में पिता की आर्थिक मदद से राजभाई सेवा संस्थान की नींव रख किराए की इमारत में आश्रम शुरू किया।

अब तक 16 को पहुंचाया घर

राज ने बताया कि अधिकांश विमंदित भटक कर इधर-उधर पहुंच जाते हैं। वह अब तक 16 से ज्यादा प्रभूजी को सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से उनके घर पहुंचा चुका है। राजस्थान के अलावा बिहार, केरल तक के लोग शामिल हैं। अब तक 6 प्रभूजी का वह अंतिम संस्कार कर चुका है। इसके आश्रम में 40 से 90 साल तक के विमंदित प्रभूजी है। जिनका सुबह से शाम तक नित्य कर्म के साथ नहलाने, खिलाने और दवाई देने तक का ध्यान रखा जाता है। हालांकि अपनी मदद के लिए उसने सात वॉलेंटियर्स भी रखे है। उन्हें 8 से 12 हजार रुपए तक मासिक वेतन भी दिया जाता है।