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पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात: हमें क्या मिला, क्या नहीं और आगे की रणनीति

PM Modi And Trump Meeting: पीएम नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से हुई उनकी मीटिंग में कई अहम विषयों पर बातचीत हुई। आइए नज़र डालते हैं जोधपुर के एमबीएम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मिलिंद कुमार शर्मा की इस मीटिंग के विषय में राय।

भारत

Tanay Mishra

Feb 15, 2025

PM Narendra Modi and Donald Trump meeting: Takeaway in 7 points
PM Narendra Modi and Donald Trump meeting: Takeaway in 7 points

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Of India Narendra Modi) अपने दो दिवसीय अमेरिका (United States Of America) से वापस लौट चुके हैं। पीएम मोदी का अमेरिका दौरा काफी अहम था और यह सफल भी रहा। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) से हुई उनकी मीटिंग के दौरान दोनों के बीच कई अहम विषयों पर बातचीत हुई। दोनों ग्लोबल लीडर्स ने कई बड़ी डील्स पर हस्ताक्षार भी किए। पीएम मोदी और ट्रंप की इस मुलाकात से भारत और अमेरिका के संबंधों में और मज़बूती आएगी। इस बारे में जोधपुर के एमबीएम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मिलिंद कुमार शर्मा की क्या राय है, आइए इस बारे में जानते हैं।

हमें क्या मिला, क्या नहीं और आगे की रणनीति - समझें 7 पॉइंट्स में


1. उत्साहवर्द्धक संकेत

    दोनों देशों ने भविष्य में अपना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स करने का लक्ष्य रखा है जो कि उसके वर्तमान लक्ष्य से डबल है। निस्संदेह भारत के उद्योग-धंधों के लिए यह उत्साहवर्द्धक संकेत है।


    2. मोलभाव जरूरी

      अमेरिका ने दूसरे राष्ट्रों की तरह भारत पर भी 'रेसिप्रोकोल ट्रेड टैरिफ' (पारस्परिक टैक्स) लगाने की घोषणा की है जो भारतीय निर्यात के लिए निराशाजनक है। भारत से अपेक्षा थी कि इसकी औद्योगिक विकास की गति और दशकों से भारत में स्थाई सरकार, प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं और पूर्व के रिकॉर्ड को देखते हुए अमेरिका, भारत को कंसेशन देगा। यह संभव नहीं हो पाया। अब भारत को भविष्य में ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान इस विषय पर स्थानीय उद्योग के विकास को 'मेक इन इंडिया' और 'मेक फॉर द वर्ड' की भावना के अनुरूप गति देने के लिए गंभीर मोलभाव (नेगोशिएशन) करने होंगे।


      3. रुपये पर रखें नजर

        भारत, ऊर्जा के क्षेत्र में अमेरिकी आयात को बढ़ावा देगा। इससे खाड़ी देशों से ऊर्जा आयात के मामले में भारत को एक और विकल्प मिल सकेगा। यद्यपि यह भारत-अमेरिकी 'ट्रेड डेफिसिट' को कम करने में सहायक होगा, लेकिन इस निर्णय को रुपये के अमेरिकी डॉलर की अपेक्षा अधिक अवमूल्यन के आलोक में भी देखना होगा।


        4. विनिर्माण के लिए बेहतर

          रक्षा के क्षेत्र में 'रिसिप्रोकल डिफेंस प्रोक्योरमेंट', 'को-डिज़ाइन' और 'को- प्रोडक्शन' उत्साहवर्द्धक कदम है। निजी क्षेत्र में भारत की मैन्युफैक्चरिंग के लिए यह हितकर निर्णय है।


          5. चतुराई की अपेक्षा

            स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर के निर्माण के लिए अमेरिकी कंपनियों का भारत के 'लार्ज स्केल लोकलाइजेशन' एवं टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से स्थानीय उद्योगों को लाभ होगा। यह भारत की दृष्टि से एक सकारात्मक निर्णय है। यद्यपि अमेरिका, भारत से सिविल न्यूक्लियर रिएक्टर एवं लायबिलिटी एक्ट में कंसेशन की अपेक्षा करेगा, किंतु भारत को चतुराई से अपने हित साधते हुए इस विषय को डिप्लोमेटिक रूप से हैंडल करना होगा।


            6. एआई पर विरोधाभास

              एआई के क्षेत्र में भी दोनों राष्ट्रों ने साथ-साथ काम करने का संकल्प दोहराया है। हालांकि जहाँ अमेरिकी कंपनियाँ एआई को क्लोज़्ड सोर्स एप्लीकेशन के रूप में रखना चाहती हैं, वहीं भारत इसको ओपन सोर्स रखना चाहता है। इस विरोधाभास को भी रणनीतिक रूप से हैंडल करना होगा।


              7. आपूर्ति श्रृंखला में सहायक

                सेमीकंडक्टर चिप्स, क्रिटिकल मिनरल्स, फार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में समझौते दोनों ही राष्ट्रों की आपूर्ति श्रृंखला को सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध होंगे।

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