<strong>ये एकमात्र ऐसे देव, जो इत्र नहीं...राख लपेटते हैं शरीर पर</strong>उज्जैन. भगवान महाकालेश्वर एकमात्र ऐसे देव हैं, जो अपने शरीर पर सुगंधित इत्र नहीं, बल्कि राख लपेटते हैं। समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला, तो देव-दानव घबरा गए, एकमात्र शिव ही थे, जिन्होंने ब्रह्मांड की रक्षा की खातिर विषपान किया था।
भगवान महाकालेश्वर का मंदिर उज्जैन में स्थित है। यहां शिप्रा नदी के पावन तट पर रामघाट है, जहां भगवान श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। महाकाल की नगरी में रहने वाले लोग अपने आपको धन्य मानते हैं, कि उन्हें यहां रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। राजाधिराज भगवान महाकालेश्वर देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। ये स्वयं-भू होने के साथ-साथ दक्षिणमुखी भी हैं। इनके दर्शन मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो जाता है। अन्य बारह ज्योतिर्लिंगों में यह मंदिर तीसरे क्रम पर आता है।
हनुमानजी भी आए थे महाकाल के मंदिरऐसी मान्यता है कि जब प्रभु श्रीराम का अयोध्या में राजतिलक होने जा रहा था, तब हनुमानजी पवित्र तीर्थ स्थलों व पावन नदियों का जल लेने निकले। इधर-उधर घूमते हुए वे समस्त तीर्थों का जल एक पात्र में एकत्र कर रहे थे। कहा जाता है, कि महाकालेश्वर मंदिर में जो कोटितीर्थ कुंड है, उसका जल भी उन्होंने राजतिलक के लिए लिया था।
मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है।
सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया।