Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

10 हजार वर्ष पुराने शैल चित्रों की खोज… इस गुफाओं में लाल रंग से बनी चित्रकारी ने जताई प्राचीन मानव सभ्यता की मौजूदगी, देखें

Surajpur News: ग्राम पंचायत खोहिर के आश्रित ग्राम बैजनपाठ में मध्य पाषाण कालीन युग (लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व ) के शैल चित्र मिलने से क्षेत्र का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व सामने आया है।

2 min read
Google source verification
मध्य पाषाण कालीन युग (लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व ) के शैल (फोटो सोर्स- पत्रिका)

मध्य पाषाण कालीन युग (लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व ) के शैल (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Chhattisgarh News: सूरजपुर जिले का सुदूर वनांचल क्षेत्र बैजनपाठ एक बार फिर सुर्खियों में है। दरअसल ग्राम पंचायत खोहिर के आश्रित ग्राम बैजनपाठ में मध्य पाषाण कालीन युग (लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व ) के शैल चित्र मिलने से क्षेत्र का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व सामने आया है। यह खोज न केवल स्थानीय इतिहास को नई पहचान देती है बल्कि पुरातत्व के शोधार्थियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण विषय बन सकती है।

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार बैजनपाठ के अंधियारी छानी गुफा, चोंगो पहाड़ी गुफा, निफार माड़ा गुफा और बघोर गुफा में लाल रंग से बनाई गई चित्रकारी मिली है। इन चित्रों में मनुष्य, जानवर, शिकार के दृश्य तथा अन्य प्रतीकात्मक आकृतियां शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कला उस युग के आदिम मनुष्य की जीवनशैली, सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक विश्वासों को दर्शाती है। इतिहासकारों का कहना है कि यह इलाका पूर्व से ही रामगढ़, सीता लेखनी और अन्य पुरातात्विक स्थलों की खोजों के लिए प्रसिद्ध रहा है।

प्राचीन कंगन का मिला अवशेष

निफार माड़ा गुफा में खुदाई के दौरान एक पुराना कंगन भी मिला है, जो उस समय की धातुकला और आभूषण निर्माण की समझ का संकेत देता है। ग्रामीणों का कहना है कि यह कंगन संभवत: किसी महिला का रहा होगा जो गुफा में निवास करती थी या जंगली जानवर का शिकार बनी होगी। यह खोज उस समय के मानव जीवन की एक झलक प्रस्तुत करती है जब लोग प्राकृतिक खतरों से बचने के लिए गुफाओं को अपना आश्रय बनाते थे।

सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की उठी मांग

स्थानीय बुद्धिजीवियों और जनप्रतिनिधियों ने राज्य सरकार एवं पुरातत्व विभाग से आग्रह किया है कि इस क्षेत्र का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराया जाए ताकि यहां मिले शैल चित्रों और अवशेषों का संरक्षण हो सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसे संरक्षित कर विकसित किया जाए तो बैजनपाठ छत्तीसगढ़ का अगला ऐतिहासिक पर्यटन स्थल बन सकता है।