सूरजपुर। कलेक्टर एस. जयवर्धन के निर्देश पर जिला कार्यक्रम अधिकारी शुभम बंसल के मार्गदर्शन में जिला बाल संरक्षण इकाई बाल श्रमिकों (Child labor) पर कार्रवाई कर रही है। जिला बाल संरक्षण अधिकारी मनोज जायसवाल को ग्रामीणों द्वारा सूचना दी गई कि रामानुजनगर के दूरस्थ ग्राम के छोटे-छोटे बच्चों को रोपा लगाने के लिए गाडिय़ों में भरकर दूसरे गांव ले जाया जाता है और इससे गांव में स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति नगण्य है। इसकी जानकारी जिला कार्यक्रम अधिकारी शुभम बंसल को दी गई। सूचना मिलते ही उन्होंने तत्काल रेस्क्यू टीम बनाई और सुबह दबिश देकर अभियान चलाने के निर्देश दिए।
इस पर जिला बाल बाल संरक्षण इकाई के संरक्षण अधिकारी अखिलेश सिंह, चाइल्ड हेल्प लाइन समन्वयक जनार्दन यादव के साथ श्रम विभाग, पुलिस, महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संयुक्त कार्यवाही की गई। इसमें एक पिकअप, 2 ऑटो एवं एक कार में 30 बच्चे एवं 30 बड़े सवार होकर दूसरे गांव रोपा लगाने (Child labor) जा रहे थे।
इसमें 12 प्राइमरी स्कूल, 10 मिडिल स्कूल एवं 5 हाईस्कूल के बच्चे तथा 3 बच्चे जिनका किसी भी स्कूल में नाम दर्ज नही है, शामिल थे। इन्हें बाल कल्याण समिति सूरजपुर में प्रस्तुत किया गया, जहां सभी की काउंसिलिंग की गई। साथ ही समझाइश दी गई कि सभी बच्चे पढ़ाई करें।
सभी समस्या के निराकरण की चाबी केवल एक शिक्षा है और इसे ग्रहण करना अति जरूरी है। रेस्क्यू (Child labor) की जानकारी पूरे गांव में फैल जाने के कारण सभी गाड़ी वालों बच्चों को वाहन से उतार दिया। अन्यथा गांव से लगभग 100 बच्चे दूसरे गांव काम करने जाने की जानकारी प्राप्त हुई थी।
रेस्क्यू अभियान में जिला बाल संरक्षण इकाई से अखिलेश सिंह, श्रम विभाग से रमेश साहू, डोला मणि मांझाी, फरिश्वर विश्वकर्मा, जनार्दन यादव, रमेश साहू, प्रकाश राजवाड़े, ममता पास्ते, पुलिस से एएसआई मनोज पोर्ते, आरक्षक बिरन सिंह, अमलेश्वर सिंह, दीपक यादव व राजेश नायक शामिल रहे।
वहीं प्रकरण पंजीबद्ध कर बच्चों (Child labor) को सुपुर्द करने वाले में बाल कल्याण समिति के किरण बघेल, संजय सोनी, नंदिता सिंह, अमृता राजवाड़े, रूद्र प्रताप राजवाड़े, प्रियंका सिंह, जैनेन्द्र दुबे, अंजनी साहू, विनिता सिन्हा, साबरिन फातिमा, चंदा, शारदा सिंह, पार्वती व चाइल्ड लाइन से दिनेश यादव, नंदिनी खटीक उपस्थित थे।
जिला कार्यक्रम अधिकारी शुभम बंसल ने उपस्थित परिजनों को सख्त लहजे में समझाइश दी और कहा कि इतने छोटे बच्चों से श्रम (Child labor) कराना बिल्कुल चिन्ताजनक है। किसी भी स्थिति में जो इस काम मे संलिप्त हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।
पूछताछ में पता चला कि छोटे बच्चों को रोपा लगाने पारिश्रमिक 300 या 350 रुपए दिया जाता है, जबकि गाड़ी वाले किसानों से 500 रुपए लेते हैं। गांव से इन बच्चों को सुबह खेतों मे छोड़ देते हैं और शाम को लेने के लिए आते हैं।
दिन भर बच्चों से काम (Child labor) लिया जाता है। दोपहर एक बजे बिस्किट दे दिया जाता है और शाम 5 बजे तक काम लिया जाता है। काम के बाद शाम 7 बजे तक बच्चे अपने घर पहुंच पाते हैं।
Published on:
20 Jul 2025 07:14 pm