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जिम्मेदार बेखबर…शहर में बढ़ता श्वान और बंदरों का कहर

मानसून के आगमन के साथ शहर में डॉग बाइट के मामलों में बेतहाशा वृद्धि देखी जा रही है। बीते जुलाई माह में 1490 मामले डॉग बाइट के सामने आए। यानी देखा जाए तो प्रतिदिन50 लोग आवारा श्वानों का शिकार बन रहे हैं। बीते 24 घंटे में 55 लोगों को श्वानों ने अपनी चपेट में लिया। उसके बावजूद भी नगर परिषद श्वान और जगह-जगह उछल कूंद मारते बंदरों को पकडऩे के लिए कोई अभियान नहीं चला रही।

जिम्मेदार बेखबर...शहर में बढ़ता श्वान और बंदरों का कहर The responsible are unaware...the menace of dogs and monkeys is increasing in the city

-पिछले तीन माह के दौरान शहर में4481 लोग हुए श्वानों का शिकार

-मानसून आने के साथ हुए आक्रामक, जुलाई माह में 1490 मामले

-तीन माह में बंदरों ने भी 46 लोगों को बनाया अपना शिकार

- सिर्फ दावे और वादे तक ही सीमित नगर परिषद की कार्रवाई

धौलपुर. मानसून के आगमन के साथ शहर में डॉग बाइट के मामलों में बेतहाशा वृद्धि देखी जा रही है। बीते जुलाई माह में 1490 मामले डॉग बाइट के सामने आए। यानी देखा जाए तो प्रतिदिन50 लोग आवारा श्वानों का शिकार बन रहे हैं। बीते 24 घंटे में 55 लोगों को श्वानों ने अपनी चपेट में लिया। उसके बावजूद भी नगर परिषद श्वान और जगह-जगह उछल कूंद मारते बंदरों को पकडऩे के लिए कोई अभियान नहीं चला रही।

शहर में आवारा श्वानों की जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। गली मोहल्लों से लेकर बाजारों तक में इन श्वानों का खौफ लोगों में रहता है। शहर सहित जिला भर में न जाने कितने ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं जिनमें श्वानों का शिकार बने मासूम बच्चे मौत के मुंह में जाते-जाते बचे। मगर फिर भी प्रशासन का ध्यान इस ओर कतई नहीं है। जिला अस्पताल में बीते तीन माह के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां मई, जून और जुलाई में 4481लोगों को श्वानों ने अपना शिकार बनाया। इसके अलावा जिला अस्पताल में मंकी के शिकार पीडि़तों के मामले भी लगातार आ रहे हैं। तीन माह के दौरान जिला अस्पताल में ४६ लोग बंदरों के काटे जाने का भी शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा 22 लोग अन्य जानवरों का शिकार हुए हैं, जो जिला अस्पताल में अपना इलाज कराने पहुंचे। डॉग बाइट के मामलों में वृद्धि के साथ ही एंटी रैबीज वैक्सीन की खपत भी बढ़ गई है। जबकि फिलहाल अस्पतालों में इनका स्टॉक सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है।

गली-मोहल्ले उछल कूंद मचाते बंदर बने सिरदर्द

एक ओर जहां लोगों के लिए श्वान सिरदर्द बने हैं तो वहीं शहर में बंदरों का टोल भी डंगासे मारते रहते हैं। शहर से लेकर देहातों तक बंदरों का इतना खौफ है कि लोग छतों पर जाने से कतराने लगे हैं। डरे और सहमे लोगों ने घरों के आगे जालियां लगा रखी है कि बंदर घर के अंदर न आ जाए। लेकिन बंदर तो बंदर हैं। शहर ऐसी कोई जगह नहीं जहां बंदरों का आतंक नहीं इन बंदरों के कारण कई लोग काल तक के गाल में समा चुके हैं। जिला अस्पताल में भी हर दूसरे दिन बंदर के कटो जाने का मामला सामने आ रहा है। तीन माह के दौरान 46 लोग इन बंदरों का शिकार बन चुके हैं। मई में14, जून में 18 और जुलाई में14 केस मंकी बाइट के आ चुके हैं। फिर भी नगर परिषद अभी तक इन बंदरों को पकडऩे के लिए कोई अभियान नहीं चलाता, जब परिषद से इन बंदरों को पकडऩे के बारे मेें बात की जाती है तो उनका एक ही रटा-रटाया जवाब होता है कि बंदरों को पकडऩे के लिए जल्द ही टेंडर निकालेंगे। लेकिन न तो आज तक टेंडर निकाला गया और न ही बंदर पकड़े गए...लेकिन मासूम लोग जरूर इन बंदरों को शिकार दिन प्रतिदिन बन रहे हैं।

आंकड़े दर्शा रहे परिषद की नाकामी

देखने का मिल रहा है कि लावारिस श्वान के साथ पालतू श्वान भी लोगों पर हमला कर रहे हैं। यही कारण है कि जिला अस्पताल में एंटी रेबीज कक्ष के बाहर श्वान के काटने के मरीजों की लंबी कतार देखने को मिल रही है। इन दिनों शहर से लेकर गांवों तक में आवारा श्वान झुंड में दिखाई देते हैं। प्रदेश सरकार की ओर से श्वान की नसबंदी पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन अधिकारी जिम्मेदारी से कतरा रहे हैं। तीन माह में 4481लोगों को श्वानों ने अपना शिकार बनाया। श्वानों का शिकार बने लोगों का यह आंकड़ा अपने आप में डरावना है, जो कि शहर प्रशासन सहित नगर परिषद की नाकामी को दर्शाता है।

बारिश में क्यों बढ़ जाते हैं डॉग बाइट के माले

मानसून में श्वानों के काटे जाने के मामलों में वृद्धि के बार में विशेषज्ञों से जानना चाहा तो राजकीय बहुउद्देश्यी पशु चिकित्सालय के सीनियर डॉक्टर रामअवतार सिंघल ने बताया कि बारिश के समय श्वानों को न तो पर्याप्त भोजन मिल पाता है और न ही रहने की सुरक्षित जगह। ऊपर से यह फीडिंग सीजन भी होता है। जिसके चलते श्वान अधिक आक्रामक हो जाते हैं और लोगों पर हमला कर बैठते हैं। इसी वजह से इन दिनों जिला अस्पताल में डॉग बाइट के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है।

पशु प्रेम भी बना कारण

शहर में बड़ी संख्या में ऐसे पशु प्रेमी हैं जो रोजाना लावारिश कुत्तों को रोटी, बिस्किट आदि खिलाते हैं। इससे एक तरफ तो कुत्तों की भूख कुछ हद तक शांत होती है, लेकिन दूसरी ओर ये झुंड में रहने लगते हैं और जब भोजन नहीं मिलता तो आक्रामक हो जाते हैं। संख्या बढऩे और झुंड बनने की इस प्रवृत्ति ने डाग बाइट के मामलों को और बढ़ा दिया है। स्वास्थ्य विभाग ने नागरिकों से सतर्क रहने और सावधानी बरतने की अपील की है।