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अव्यवस्थित सोने का समय आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है

लगभग सात साल चले अध्ययन में यह सामने आया कि 23% बीमारियों का कारण अनियमित नींद रही। खराब नींद की गुणवत्ता और बार-बार नींद का टूटना भी एक वजह बना, लेकिन सबसे बड़ा कारण यह था कि लोगों का सोने-जागने का कोई तय समय नहीं था।


जयपुर। लोगों को दशकों से कहा जा रहा है कि वे रोज़ाना कम से कम आठ घंटे की नींद लें, लेकिन अब एक नया शोध कहता है कि आप कब सोते हैं, यह बात कितनी देर सोते हैं उससे भी ज़्यादा अहम हो सकती है। अमेरिका में हर तीन में से एक वयस्क रोज़ सात घंटे से भी कम सोता है।

88,000 से ज्यादा लोगों पर अध्ययन
पेइचिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शेंगफेंग वांग और उनकी टीम ने 88,461 लोगों पर रिसर्च किया। ये सभी लोग ऐसे सेंसर पहने हुए थे जो उनकी नींद का पैटर्न रिकॉर्ड करते थे। उन्होंने पाया कि अनियमित सोने का समय 172 बीमारियों से जुड़ा हुआ है।

लगभग सात साल चले इस अध्ययन में यह सामने आया कि 23% बीमारियों का कारण अनियमित नींद रही। खराब नींद की गुणवत्ता और बार-बार नींद का टूटना भी एक वजह बना, लेकिन सबसे बड़ा कारण यह था कि लोगों का सोने-जागने का कोई तय समय नहीं था।

नींद की नियमितता ज़रूरी है
‘स्लीप रेगुलैरिटी इंडेक्स’ नामक एक मीट्रिक बताता है कि आपकी हर दिन की नींद कितनी एक जैसी है। शोध में यह इंडेक्स मौत की आशंका को नींद की अवधि से बेहतर तरीके से बताता है।

Vanderbilt University के शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों की नींद सबसे ज्यादा अनियमित थी, उनकी मृत्यु का जोखिम आठ सालों में 53% तक बढ़ गया।

रात 12:30 बजे के बाद सोने वाले लोगों में लिवर सिरोसिस (यकृत रोग) का खतरा 2.5 गुना ज़्यादा पाया गया। वहीं, अनियमित नींद-जागने के चक्र से गैंगरीन जैसी बीमारी का खतरा भी दोगुना हो गया।

कई बीमारियों से संबंध
नींद से जुड़ी आदतें 172 में से 92 बीमारियों के 20% से ज़्यादा मामलों की वजह थीं। इनमें पार्किंसन के 37% और टाइप 2 डायबिटीज के 36% मामले शामिल हैं।

जैसे धूम्रपान को अमेरिका में 30% दिल की बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है, वैसे ही शोधकर्ता कह रहे हैं कि सही नींद के ज़रिए भी कई बीमारियों को टाला जा सकता है।

सिर्फ “ज्यादा सोने” से बात नहीं बनेगी
अक्सर माना जाता है कि ज्यादा सोने से भी नुकसान हो सकता है, लेकिन इस शोध में पाया गया कि नौ घंटे सोने वाले अधिकतर लोग दरअसल बिस्तर पर तो नौ घंटे रहे, लेकिन सोए केवल छह घंटे। जब गलत आंकड़ों को हटाया गया तो ‘लंबी नींद’ और दिल की बीमारी के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया।

हमारा शरीर घड़ी की तरह चलता है
हमारा शरीर एक 24 घंटे की आंतरिक घड़ी (सर्कैडियन रिद्म) के अनुसार चलता है, जो हार्मोन, पाचन और इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करती है।

कम ‘रिलेटिव एम्प्लिट्यूड’ – यानी दिन और रात की गतिविधियों का अंतर कम होना – सीओपीडी और किडनी फेलियर जैसी बीमारियों से जुड़ा मिला।

सुधर सकती है सेहत, घट सकता है खर्च
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर लोग रात में तेज रोशनी, देर से कैफीन और देर रात मोबाइल के उपयोग से बचें तो उनकी नींद की नियमितता सुधर सकती है – और इसके साथ ही गंभीर बीमारियों का खतरा भी घट सकता है।

तो क्या करें?
न्यूरोसाइंटिस्ट मैट वॉकर के अनुसार –

  • रोज़ एक ही समय पर उठने की आदत बनाएं
  • सोने से एक घंटा पहले लाइट्स धीमी कर दें
  • बेडरूम को केवल सोने के लिए इस्तेमाल करें

अलार्म घड़ी हो सकती है सबसे सस्ती दवा
अभी नींद के ट्रैकर दिमाग की गतिविधि नहीं माप सकते, और इस अध्ययन में अधिकतर बुजुर्ग शामिल थे। आगे और विस्तृत शोध की ज़रूरत है।

फिर भी, यह साफ है कि एक नियमित सोने का समय तय करना आपकी सेहत के लिए उतना ही जरूरी है जितना अच्छा खाना और व्यायाम।

यह अध्ययन Health Data Science नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।