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प्राचीन रोमन कंक्रीट से मिल सकते हैं पर्यावरण अनुकूल निर्माण के सबक

लेकिन रोमन काल में बिल्डरों ने चूना-पत्थर, ज्वालामुखी की राख (जिसे पॉज़ोलान कहा जाता है), और पुराने ढांचों का मलबा मिलाकर कंक्रीट बनाया था।

जयपुर। कंक्रीट हर जगह है — हमारे पैरों के नीचे, इमारतों में और पूरे शहरों में। यह दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री है, लेकिन यह प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण भी है।

अब जब निर्माण क्षेत्र कार्बन उत्सर्जन को घटाने की कोशिश कर रहा है, तो कुछ वैज्ञानिक हजारों साल पुराने इतिहास की ओर देख रहे हैं।

क्या है रोमन कंक्रीट में खास?
आज का कंक्रीट सीमेंट, रेत, बजरी और पानी मिलाकर बनाया जाता है। लेकिन रोमन काल में बिल्डरों ने चूना-पत्थर, ज्वालामुखी की राख (जिसे पॉज़ोलान कहा जाता है), और पुराने ढांचों का मलबा मिलाकर कंक्रीट बनाया था।

इसमें भी चूना-पत्थर एक अहम तत्व था, जिसे बहुत ऊंचे तापमान पर गर्म करना पड़ता था। इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है और कैल्शियम ऑक्साइड बनता है, जो बाकी खनिजों से मिलकर एक मज़बूत पेस्ट बनाता है।

वैज्ञानिकों ने पाया कि आज की तकनीक से रोमन कंक्रीट बनाने में ऊर्जा और पानी की खपत, और कार्बन उत्सर्जन, आधुनिक कंक्रीट के बराबर या कुछ मामलों में थोड़ा ज़्यादा हो सकता है।

शोध की मुख्य लेखक डेनिएला मार्टिनेज (Universidad del Norte) ने कहा,
"हमारी उम्मीद के उलट, अगर हम आज की तकनीक से रोमन कंक्रीट बनाएं तो उसमें उत्सर्जन या ऊर्जा की खपत में ज्यादा कमी नहीं आएगी।"

कम प्रदूषण, ज़्यादा टिकाऊपन
हालांकि कार्बन उत्सर्जन में ज्यादा फर्क नहीं आया, लेकिन रोमन कंक्रीट से बनने वाले अन्य हानिकारक प्रदूषकों—जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड—में काफी कमी देखी गई। ये गैसें इंसानी सेहत के लिए खतरनाक मानी जाती हैं।

ईंधन के प्रकार पर निर्भर करते हुए इन प्रदूषकों में 11% से 98% तक की कमी देखी गई। नवीकरणीय (रिन्युएबल) ऊर्जा से सबसे अच्छा असर हुआ।

रोमन कंक्रीट का असली फायदा इसकी लंबी उम्र है। प्राचीन पुल, जलसेतु और सार्वजनिक भवन आज भी टिके हुए हैं — यानी अगर हम ऐसे टिकाऊ कंक्रीट का इस्तेमाल करें, तो हमें बार-बार मरम्मत या पुनर्निर्माण की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

मार्टिनेज ने कहा,
"रोमन कंक्रीट से हम ये सीख सकते हैं कि सामग्री का ऐसा इस्तेमाल कैसे करें जिससे इमारतें ज़्यादा समय तक टिकें। क्योंकि टिकाऊपन ही असली सततता (सस्टेनेबिलिटी) है।"

टिकाऊ कंक्रीट, कम बर्बादी
अब निर्माण क्षेत्र में यह समझ बढ़ रही है कि सिर्फ कम उत्सर्जन नहीं, बल्कि ज़्यादा टिकाऊ निर्माण भी जरूरी है। अगर एक बार बना हुआ ढांचा लंबे समय तक चले, तो निर्माण की कुल पर्यावरणीय लागत घट जाती है।

UC Davis के शोधकर्ता साबी मिलर कहते हैं,
"जब हम कंक्रीट की सेवा अवधि यानी उसकी उपयोगी उम्र पर ध्यान देते हैं, तभी हमें इसके असली फायदे नजर आते हैं।"

रोमन बनाम आधुनिक कंक्रीट – तुलना आसान नहीं
हालांकि तुलना करना आसान नहीं है, क्योंकि आधुनिक कंक्रीट का उपयोग सिर्फ करीब 200 सालों से हो रहा है, जबकि रोमन कंक्रीट से बने ढांचे 2000 साल से टिके हैं।

एक और बड़ा फर्क ये है कि आधुनिक कंक्रीट में लोहे की रॉड (स्टील रीइन्फोर्समेंट) होती है, जो रोमन कंक्रीट में नहीं थी। यही रॉड अक्सर जंग लगने से कंक्रीट की उम्र घटा देती है।

UC Berkeley के पाउलो मॉन्टेइरो कहते हैं,
"स्टील की जंग कंक्रीट को खराब करने का सबसे बड़ा कारण है, इसलिए तुलना करते वक्त बहुत सावधानी जरूरी है।"

भविष्य के लिए सबक
शोधकर्ता अब असली स्थितियों में रोमन और आधुनिक कंक्रीट की ताकत और टिकाऊपन की तुलना करते रहेंगे। उनका उद्देश्य है—अतीत की तकनीकों से सीखकर आज की जलवायु संबंधी समस्याओं का हल निकालना।

मार्टिनेज कहती हैं,
"रोमन तकनीकों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। अगर हम उनकी समझ को आज की आधुनिक सोच से जोड़ सकें, तो हम एक ज़्यादा टिकाऊ निर्माण व्यवस्था बना सकते हैं।"

यह पूरा अध्ययन iScience नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।