जयपुर। हम जो हवा में सांस लेते हैं, वह सिर्फ हमारे फेफड़ों को ही नुकसान नहीं पहुंचा रही, बल्कि चुपचाप हमारे दिमाग पर भी असर डाल रही है। नई रिसर्च के मुताबिक, वायु प्रदूषण—खासकर गाड़ियों के धुएं से—अल्जाइमर और वेस्कुलर डिमेंशिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है।
30 मिलियन लोगों पर आधारित विश्लेषण
दुनियाभर के करीब 3 करोड़ लोगों पर किए गए विश्लेषण से यह सामने आया कि वायु प्रदूषण डिमेंशिया के मामलों में अहम भूमिका निभा सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के मेडिकल रिसर्च काउंसिल एपिडेमियोलॉजी यूनिट के वैज्ञानिकों ने 51 अध्ययनों को मिलाकर विश्लेषण किया, जिनमें से 34 अध्ययन ऐसे थे जिन्हें एकसाथ जोड़ा जा सकता था।
कौन-कौन से प्रदूषक ज्यादा खतरनाक हैं?
रिसर्च में मुख्य रूप से तीन प्रकार के प्रदूषकों को ध्यान में रखा गया:
कितना बढ़ता है डिमेंशिया का खतरा?
उदाहरण के लिए, 2023 में लंदन के सड़क किनारे पीएम 2.5 का स्तर 10 μg/m³ था, जो डिमेंशिया के खतरे को 17% तक बढ़ा सकता है।
वायु प्रदूषण का असर सिर्फ अल्जाइमर तक सीमित नहीं
इस अध्ययन में वेस्कुलर डिमेंशिया (जो दिमाग में रक्त प्रवाह की कमी से होता है) से वायु प्रदूषण के और भी गहरे संबंध पाए गए। अकेले ब्रिटेन में लगभग 1.8 लाख लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं।
कैसे असर डालता है वायु प्रदूषण दिमाग पर?
वैज्ञानिकों का मानना है कि वायु प्रदूषण से दिमाग में सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस होता है, जो दिमागी कोशिकाओं, प्रोटीन और डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है। प्रदूषक कण सीधे या खून के ज़रिए दिमाग तक पहुंच सकते हैं और वहां सूजन पैदा कर सकते हैं, जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है।
अध्ययनों में असमानता भी उजागर हुई
ज्यादातर शोध अमीर देशों और गोरे लोगों पर केंद्रित रहे हैं, जबकि प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर होता है। इन समुदायों की रिसर्च में भागीदारी बेहद कम है।
समाधान सिर्फ डॉक्टरों के हाथ में नहीं
रिसर्चर्स का कहना है कि वायु प्रदूषण से निपटना केवल स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी नहीं है। इसके लिए शहरी नियोजन, पर्यावरण नीति और ट्रांसपोर्ट प्लानिंग को भी जिम्मेदारी लेनी होगी।
डॉ. क्रिस्टियान ब्रेडेल के मुताबिक, “डिमेंशिया से बचाव के लिए हमें केवल इलाज पर नहीं, बल्कि शहरों की योजना, परिवहन और पर्यावरण नियंत्रण जैसे क्षेत्रों में भी काम करना होगा।”
निष्कर्ष:
वायु प्रदूषण कम करना न सिर्फ फेफड़ों और दिल के लिए जरूरी है, बल्कि दिमागी सेहत के लिए भी बहुत जरूरी है। अगर इसे कम किया जाए, तो डिमेंशिया के बढ़ते मामलों को रोका जा सकता है।
यह अध्ययन मेडिकल जर्नल The Lancet Planetary Health में प्रकाशित हुआ है।
Published on:
28 Jul 2025 05:40 pm