सीकर. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू होने के बाद देशभर में शिक्षा प्रणाली में बदलाव शिक्षण संस्थाओं के साथ शिक्षकों में देखने को मिल रहा है। प्रदेश के निजी और सरकारी स्कूलों में भी कई बदलाव साफ नजर आ रहे हैं। इसके तहत राज्य के स्कूलों में पढ़ाई का पैटर्न पूरी तरह बदल रहा है। खासतौर पर शिक्षकों के सामने एनईपी ने बड़ी चुनौती खड़ी की है। अब केवल बीएड और रीट जैसी डिग्रियों व पात्रता परीक्षाओं को पास करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि शिक्षकों को तकनीकी रूप से दक्ष बनना और नवाचार अपनाने पर भी फोकस किया जा रहा है। अब शिक्षकों को पारंपरिक तौर-तरीकों से हटकर डिजिटल माध्यमों से पढ़ाने की कला सीखनी पड़ रही है। स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल कंटेंट, प्रोजेक्ट-आधारित लर्निंग और इंटरैक्टिव टूल्स के जरिए बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। इस बदलाव के चलते शिक्षक खुद को नए दौर की जरूरतों के अनुसार तैयार कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों में भले ही अपेक्षाकृत कम दबाव हो, लेकिन निजी स्कूलों में कॅरियर शुरू करने से पहले शिक्षकों को हाईटेक और समग्र शिक्षा के लिए तैयार होना पड़ रहा है।
शिक्षक बनने से पहले हाईटेक ट्रेनिंग
शिक्षानगरी के कई स्कूलों में शिक्षक बनने से पहले बाकायदा हाईटेक प्रशिक्षण भी दिया जा है। कई शिक्षक स्वयं को अपडेट रखने के लिए ऑनलाइन कोर्स, वेबिनार, कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं। कुछ संस्थान शिक्षकों के लिए अलग से कक्षाएं चला रहे हैं, ताकि वे आधुनिक शिक्षण विधियों को समझ सकें और प्रभावी तरीके से छात्रों तक पहुंच सकें। सीबीएसई की ओर से समय-समय पर शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। वहीं, निजी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में भी बदलाव हुआ है, जिसमें नवाचार की समझ को भी प्राथमिकता दी जा रही है।
मेंटर, गाइड और तकनीकी विशेषज्ञ की भूमिका में शिक्षक
शिक्षानगरी के एक निजी स्कूल के शिक्षक सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि एनईपी के तहत शिक्षकों की भूमिका अब केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं है। उन्हें बच्चों के समग्र विकास के लिए मेंटर, गाइड और तकनीकी विशेषज्ञ की भूमिका निभानी पड़ रही है। इसके लिए उन्हें नियमित प्रशिक्षण और कार्यशालाओं में भाग लेना पड़ता है। शिक्षकों को अब प्रोजेक्टर, टैबलेट और इंटरैक्टिव सॉफ्टवेयर का उपयोग करना सीखना पड़ रहा है।
एनईपी का मकसद है कि विद्यार्थी केवल किताबी ज्ञान तक सीमित न रहें, बल्कि व्यावहारिक, सामाजिक और तकनीकी दक्षता भी हासिल करें। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक भी समय के साथ कदम मिलाकर चलें। खास बात यह है कि अब शिक्षकों को छात्रों से भी अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। पाठ्यक्रम को समझने, उसे तकनीक के माध्यम से प्रस्तुत करने और छात्रों की रुचि बनाए रखने के लिए उन्हें निरंतर अध्ययन और अभ्यास करना पड़ रहा है।
रमेश शास्त्री, कॅरियर काउंसलर, सीकर
Published on:
02 Jul 2025 12:01 pm