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प्रदेश में 13 साल से अटक रही खेल प्रशिक्षकों की भर्ती, फिर नई भर्ती का दावा, खामियाजा भुगतने पर मजबूर प्रदेश के ​खिलाड़ी

प्रदेश में एक तरफ मैदानों पर खिलाडि़यों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दूसरी तरफ खिलाडि़यों को महारथी बनाने के लिए मैदानों पर कोच ही नहीं है।

सीकर

Ajay Sharma

Aug 02, 2025

सीकर.

प्रदेश में एक तरफ मैदानों पर खिलाडि़यों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दूसरी तरफ खिलाडि़यों को महारथी बनाने के लिए मैदानों पर कोच ही नहीं है। हालत यह है कि प्रदेश में पिछले 13 सालों में खेल प्रशिक्षकों की स्थायी भर्ती नहीं हो सकी है। हर सरकार के समय खिलाडि़यों से वादा किया गया कि खेल प्रशिक्षकों की भर्ती होगी। लेकिन बदलते कायदों की वजह से कभी भर्ती धरातल पर नहीं आ सकी। अब सरकार ने फिर से नई भर्ती कराने का ऐलान किया है। राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद को वित्त विभाग से 140 पदों की भर्ती की हरी झंडी मिल चुकी है। इस बार क्रीड़ा परिषद की ओर कर्मचारी चयन बोर्ड को भर्ती का जिम्मा दिया गया है। एक्सपर्ट का कहना है कि प्रदेश में 2012 के बाद नियमित खेल प्रशिक्षकों की भर्ती भी नहीं हुई है। इस वजह खिलाडि़यों को नए हाईटेक मैदान व संसाधनों का फायदा नहीं मिल पा रहा है। एक्सपर्ट ने बताया कि ओलम्पिक के समय हम हमारे खिलाडि़यों की तुलना चीन-अमेरिका से करते है लेकिन प्रदेश में खेल संसाधनों में बढ़ोतरी के बाद भी खेल अधिकारी से प्रशिक्षकों के खाली पद खिलाडि़यों का दर्द बढ़ा रहे हैं।

दो बार घोषणा, लेकिन कभी नहीं हो सकी पूरी

प्रदेश में पिछले 13 साल में दो बार खेल प्रशिक्षकों की भर्ती की विज्ञप्ति जारी हुई। लेकिन एक बार भी पूरी नहीं हो सकी। सबसे पहले 2012 में निकाली गई, लेकिन यह अटक गई। इसके लिए 28 सितम्बर 2023 को नोटिफिकेशन जारी किया गया। दस से तीस अक्टूबर तक आवेदन लिए गए। लेकिन इसके बाद चुनाव आचार संहिता के फेर में यह भर्ती उलझ गई।

खेलों पर करोड़ों खर्च हुए

वर्ष 2022 में ग्रामीण ओलम्पिक पर 40 करोड़ 92 लाख रुपए खर्च कर दिए गए। इसी प्रकार 2023 में ग्रामीण व शहरी ओलम्पिक पर एक अरब 55 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। अकेले टी शर्ट व निकर की खरीद पर कई करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। एक्सपर्ट का कहना है कि इस राशि से तो पूरे राजस्थान में हजारों कोच की भर्ती हो जाती और नए स्टेडियम भी बन जाते।

खिलाडि़यों का दर्द....

केस एक: निजी एकेडमी में जाने पर मजबूर

खिलाड़ी ने बताया कि खेल स्टेडियम में क्रिकेट के कोचिंग देने के लिए कोई प्रशिक्षक नहीं है। ऐसे में मजबूरी में निजी एकेडमी जाना पड़ रहा है। यदि सरकार की ओर से क्रिकेट कोच लगाए जाते है तो प्रदेश के दस हजार से अधिक क्रिकेट खिलाडि़यों को सीधे तौर पर फायदा मिल सकता है।

केस दो: शिक्षा विभाग के खेल प्रशिक्षक भी अटैच नहीं

खिलाड़ी ने बताया कि जिला मुख्यालय पर सेपकटकरा सहित अन्य प्रमुख खेलों के कोच नहीं है। उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूलों के खेल प्रशिक्षकों की पिछले साल ही भर्ती हुई है। इसके बाद भी राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद की ओर से शिक्षा विभाग के खेल

प्रशिक्षकों को अटैच नहीं किया है। इस प्रस्ताव पर मुहर लगती है तो प्रदेश में खेलों का माहौल बदल सकता है।

अन्य राज्यों में प्रशिक्षकों की भर्ती पर ज्यादा फोकस

प्रदेश के पड़ौसी राज्य हरियाणा, पंजाब, दिल्ली व मधयप्रदेश आदि राज्यों में खेल मैदानों पर संसाधन बढ़ोतरी के साथ खेल

प्रशिक्षकों की भर्ती पर ज्यादा फोकस है। इसका खामियाजा प्रदेश के खिलाडि़यों को राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में उठाना पड़ता है।

टॉपिक एक्सपर्ट...

आऊट ऑफ टर्न व सरकारी नौकरियों में दो फीसदी आरक्षण सहित कई वजह से युवाओं का खेलों से जुड़ाव लगातार मजबूत हो रहा है। इस वजह से ग्राम पंचायत से लेकर ब्लॉक और जिला खेल स्टेडियम में अभ्यास करने आने वाले खिलाडि़यों की संख्या बढ़ रही है। केन्द्र सरकार ने खेलों के बजट में इजाफा भी किया है इससे प्रदेश में भी संसाधन बढ़े है। सरकार को अब खेल प्रशिक्षकों की स्थायी भर्ती की दिशा में प्रयास करने होंगे। खेल प्रशिक्षकों की कमी की वजह से संसाधन भी नकारा हो जाते है।

राजवीर सिंह शेखावत, खेल मामलों के एक्सपर्ट