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जानें कौन हैं 96 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी कालीदास स्वामी, जिन्होंने जेल की यातनाओं को भी हंसकर सहा

दे दी हमें आजादी: गुलामी के दिनों में अंग्रेजों के खिलाफ बोलते ही जेल में डाल दिया जाता। गांवों में व्यापार प्रतिबंधित था। जेल में भयंकर यातनाएं दी गई। दिनभर साफ-सफाई व अनाज पिसाई करवाई जाती। खाने को नाममात्र का भोजन मिलता।

सीकर

Akshita Deora

Aug 04, 2025

कालीदास स्वामी (96) फोटो: पत्रिका

Freedom Fighter Kalidas Swami: जब भी आजादी की लड़ाई का जिक्र होता है तो सीकर जिले के स्वतंत्रता सेनानी कालीदास स्वामी के नाम का जिक्र जरूर होता है। वे जिले के एक मात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी हैं।

1942 के आंदोलन में महात्मा गांधी के दत्तक पुत्र जमनालाल बजाज को अंग्रेज ठिकरिया से पकड़ रेलगाड़ी से जयपुर ले जाने लगे तो हम रींगस स्टेशन पहुंच गए। जैसे ही रेल रुकी तो तीखे तेवरों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ नारेबाजी कर आक्रोश जताया। इस पर आग बबूला हुए अंग्रेजों ने लाठियां मारकर मुझे और अन्य कई लोगों को गिरफ्तार कर कारावास में डलवा दिया। जहां दो महीने जुल्म सहने पर आजादी की जंग का हमारा जज्बा और भी बुलंद हो गया। हमने छिपकर बैठकें शुरू कर दी। ठसक भरे लहजे में ये बात कहते हुए सीकर जिले के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी जैतूसर निवासी कालीदास स्वामी की 96 वर्षीय काया रोमांच से भर उठी। उन्होंने बताया कि आंदोलन की रणनीति छतरीवाले बालाजी मंदिर में पूरा कस्बा सोने के बाद रात को ही बनती थी।

चोरी छिपे खरीदते अनाज

रींगस, जेतूसर, गुढा, महरोली व आस-पास के गांवों से व्यापार प्रतिबंधित था। रीगस में तहसील कार्यालय (राधारी) से ही सामान खरीद कर ला सकते थे, जो भारी कर की वजह से आम आदमी की पहुंच में नहीं था। ऐसे में कपड़े, अनाज, बर्तन सब चोरी छिपे ही खरीदने पड़ते। दो किसान आंदोलन में शामिल होने पर उन्हें एक महीने सीकर जेल में रखा गया।

जेल में भयंकर यातनाएं दी जाती थीं। दिनभर सफाई और अनाज पिसाई का काम करवाया जाता था। खाने को नाममात्र का भोजन मिलता था।

  • कालीदास स्वामी