शिमला. हिमाचल प्रदेश सरकार के दिशा निर्देशानुसार शिमला शहर में भूस्खलन और भूमि धंसने की विभिन्न घटनाओं का अध्ययन प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ड्रोन आधारित एलआईडीएआर सर्वेक्षण करवाने जा रही है।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को इस बारे में सुझाव दिया था, जिसके बाद हिप्र राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कान्वुलेशनइंजिनियरिंगकन्सल्टेंसीएलएलपी कंपनी के माध्यम से सर्वे करवाने के फैसला किया है। इसके तहत शिमला शहर का 21 अक्टूबर से 21 नंवबर 2024 तक ड्रोन सर्वेक्षण किया जाएगा।
उपायुक्त अनुपम कश्यप ने बताया कि पिछले कुछ समय से शिमला शहर में भूस्खलन और भूमि घंसने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इसी के चलते हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस मामले को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के रखा था ताकि शिमला शहर की विस्तृत जांच हो सके और भविष्य के लिए बेहतर योजना के तहत ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने में सफल प्रयास हासिल हो सकें। राज्य आपदा प्राधिकरण ने सर्वे का जिम्मा कंपनी को सौंपा है जो रिपोर्ट तैयार करेगी।
शिमला शहर में ड्रोन आधारित एलआईडीएआर सर्वेक्षण की योजना के लिए सात सितम्बर 2024 को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा बैठक आयोजित की गई थी। इसमें जिला प्रशासन शिमला, जीएसआई चंडीगढ़ के प्रतिनिधि, जीएचआरएम के प्रतिनिधि, वरिष्ठ भूविज्ञानी (जीएसआई कोलकाता), नगर निगम और राज्य आपदा प्राधिकरण के प्रतिनिधि मौजूद रहे। इसी में ड्रोन सर्वे का फैसला लिया गया था।
बैठक में किए गए निर्णय के अनुसार जिला प्रशासन, डीडीएमए शिमला पूरी प्रक्रिया का समन्वय कर रहा है। शिमला शहर के नो-फ्लाई जोन में ड्रोन सर्वे की अनुमति से जुड़ी औपचारिकताएं पूरी की जा रही है। जिला प्रशासन ने शहर के सभी प्रमुख स्थानों, जहां पर अनुमति लेने की आवश्यकता है, की अनुमति ले ली है। सेना के आधीन क्षेत्र में सर्वे को लेकर सूचित कर दिया गया है। अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी कानून एवं व्यवस्था की ओर से शिमला शहर के ड्रोन आधारित एलआईडीएआर सर्वेक्षण के लिए अनुमति आदेश जारी कर दिए गए है।
ड्रोन आधारित एलआईडीएआर सर्वेक्षण, भौगोलिक विशेषताओं का पता लगाने के लिए लेजर सेंसर का इस्तेमाल करने की एक तकनीक है। इसे लाइट डिटेक्शन ऐंड रेंजिंग भी कहते है। इस तकनीक में, ड्रोन पर लगे एलआईडीएआर सेंसर से लाखों लेजर पल्स जमीन पर भेजते हैं। ये पल्स, जमीन पर मौजूद सतहों से टकराते हैं और सेंसर पर लौटते हैं। सेंसर, इन पल्स के वापस लौटने में लगने वाले समय को मापता है और सतह के साथ संपर्क बिंदु रिकॉर्ड करता है। इस तरह, लाखों बिंदुओं को इकट्ठा करके, ड्रोन आधारित एलआईडीएआर सर्वेक्षण, जमीन की सटीक और विस्तृत 3-डी छवि बनाता है।
शिमला और आसपास के इलाकों में हर साल मानसून के दौरान भारी बारिश और अस्थिर भूभाग के कारण भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। हाल के वर्षों में, भूस्खलन के कारण सड़कों के अवरुद्ध होने, मकानों के क्षतिग्रस्त होने और कई लोगों के विस्थापित होने की घटनाएं सामने आई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि शिमला की पहाडिय़ों पर अनियंत्रित निर्माण कार्य और पर्यावरणीय असंतुलन ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
ड्रोन पहले से ही नेविगेट करने और बाधाओं से बचने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर निर्भर हैं। जैसे-जैसे ये एल्गोरिदम बेहतर होते हैं और इमेज प्रोसेसिंग में प्रगति होती है, वैसे-वैसे स्मार्ट ड्रोन देखने को मिलेंगे। औद्योगिक स्वचालन के लिए, शोधकर्ताओं ने झुंड प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शुरू कर दिया है जो ड्रोन को सहयोगात्मक रूप से काम करने में सक्षम बनाने के लिए एआई का लाभ उठाती है। इस तकनीक का एक प्रमुख पहलू एक दूसरे से टकराए बिना झुंड में उडऩे की उनकी क्षमता है, जिसे लागू करने के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रोसेसिंग की आवश्यकता होती है।
Published on:
19 Oct 2024 07:21 pm