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शाजापुर से पकड़े गए 45 काले हिरणों को मंदसौर में छोड़ा, साउथ अफ्रीका की टीम ने चलाया ऑपरेशन

mp news: मध्यप्रदेश में साउथ अफ्रीका की 15 सदस्यीय कंजर्वेशन सॉल्यूशंस टीम आई हुई है। सोमवार सुबह 6 बजे से कालापीपल और शाजापुर इलाके में हेलीकॉप्टर से जानवरों को घेरकर पकड़ने का अभियान शुरू किया गया।

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Blackbuck and Nilgai caught

मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में सोमवार सुबह आसमान में उड़ते हेलीकॉप्टर और जमीन पर भागते हिरणों का अनोखा नज़ारा देखने को मिला। image ai generated

mp news: मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में आसमान में उड़ते हेलीकॉप्टर और जमीन पर भागते हिरणों का अनोखा नज़ारा देखने को मिला। साउथ अफ्रीका से आई विशेषज्ञों की टीम ने हेलीकॉप्टर से हांका लगाकर 45 काले हिरणों को पकड़ा। इन्हें मंदसौर के गांधीसागर अभयारण्य में मंगलवार को छोड़ दिया गया, जहां हाल ही में दो चीतों को बसाया गया है। यह प्रयास चीतों के लिए पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने और वन्यजीवों की संख्या को संतुलित रखने के लिए किया गया है।

मध्यप्रदेश में साउथ अफ्रीका की 15 सदस्यीय कंजर्वेशन सॉल्यूशंस टीम आई हुई है। सोमवार सुबह 6 बजे से कालापीपल और शाजापुर इलाके में हेलीकॉप्टर से जानवरों को घेरकर पकड़ने का अभियान शुरू किया गया। यह अभियान 5 नवंबर तक चलेगा। टीम ने 'बोमा पद्धति' के तहत 'वी' आकार का हरा कॉरिडोर तैयार किया, जिसके अंत में पिंजरे लगाए गए। हेलीकॉप्टर की आवाज से डरे जानवर एक दिशा में भागे और अंतिम छोर पर सुरक्षित रूप से कैद कर लिए गए।

वन विभाग के अनुसार, इस क्षेत्र में करीब 20 हजार काले हिरण और दो हजार नीलगाय हैं। इनमें से 400 काले हिरण और 100 नीलगाय को स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई है। सोमवार को नीलगाय पकड़ाई में नहीं आईं।

चीतों के लिए बनाए गए मंदसौर के गांधीसागर अभयारण्य में पहले ही दो नर चीते प्रभास और पावक छोड़े जा चुके हैं। अब इन हिरणों के पहुंचने से चीतों को पर्याप्त भोजन मिलेगा और वन्यजीव संतुलन भी बना रहेगा। मंगलवार को सभी 45 काले हिरणों को पहुंचा दिया गया।

स्थानीय विधायक घनश्याम चंद्रवंशी (कालापीपल) और इंदर सिंह परमार (शुजालपुर) ने भी क्षेत्र में हिरणों की अधिकता से फसलों को हो रहे नुकसान को देखते हुए भी यह मांग उठाई थी।

बोमा तकनीक का सहारा

नीलगाय और काले हिरणों को पकड़ने के लिए साउथ अफ्रीका में बोमा तकनीक अपनाई जाती है। जिसके तहत ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है, जिससे कम रिहायशी क्षेत्र और बगैर हलचल वाला क्षेत्र लगे। वी आकार का एक ग्रीन मेट तैयार किया जाता है। जो कॉरिडोर जैसा बन जाता है। इसे हराभरा रखा जाता है। जानवरों के लिए भोजन भी रखा जाता है। सभी को अंतिम छोर तक हेलीकाप्टर के जरिए हांका जाता है। हेलीकाप्टर की आवाज से सभी जानवर एक ही दिशा में आगे बढ़ने लगते हैं। अंतिम छोर पर जानवरों के लिए पिंजरे लगे होते हैं जो वाहन की तरफ खुलते हैं। इसमें जानवर आसानी से वहां पहुंच जाते हैं। जानवरों पर ड्रोन से भी नजर रखी जाती है और अन्य तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है।

चीता प्रोजेक्ट

भारत में 70 वर्षों से चीता लुप्त हो गए थे। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 17 सितंबर 2022 को लाकर इन चीतों को श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में पुनः स्थापित किया था। नामीबिया से पांच मादा और तीन नर चीते आए थे और फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से बारह और चीते कूनो लाए गए। अब कूनो नेशनल पार्क में इनकी संख्या 24 हो गई है। इनमें से 14 चीते भारत में ही जन्मे हैं। चीतों के कारण मध्यप्रदेश चीता स्टेट भी बन गया है।