मधुसूदन शर्मा
राजसमंद. जिले के छोटे से गांव सांगावास की गलियों में इन दिनों एक अलग ही हलचल है। यहां घरों के आंगन में अब सिर्फ चूल्हों पर रोटियां नहीं पक रहीं, बल्कि रागी-बाजरे के कुरकुरे, ज्वार के बिस्कुट और मिलेट्स से बने लड्डू भी आकार ले रहे हैं। यह बदलाव यूं ही नहीं आया, इसके पीछे है राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड की दूरदर्शी सोच और स्थानीय महिलाओं का दृढ़ संकल्प।
सांगावास की एकता महिला राजीविका सर्वांगीण विकास सहकारी समिति लिमिटेड से जुड़ी 30 महिलाएं अब पारंपरिक गृहिणी की पहचान से आगे बढ़कर छोटे उद्यमी बनने की राह पर हैं। राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद के जिला परियोजना प्रबंधक डॉ. सुमन अजमेरा के निर्देशन में, नाबार्ड जयपुर ने इन्हें सूक्ष्म उद्यम विकास कार्यक्रम के अंतर्गत एक विशेष प्रशिक्षण दिया। इस प्रशिक्षण का मकसद साफ था कि गांव की महिलाओं को सिर्फ कढ़ाई-बुनाई या पशुपालन तक सीमित न रखकर, उन्हें बाज़ार की माँग के अनुरूप उत्पाद तैयार करने में सक्षम बनाना।
तीन सप्ताह चले इस प्रशिक्षण में महिलाओं ने मिलेट्स के बहुपयोगी रूपों को समझा। पारंपरिक पकवानों को नए स्वाद और स्वास्थ्यवर्धक स्वरूप में पेश करने की तकनीक सीखी। अब वे रागी-बाजरे के कुरकुरे, ज्वार के लड्डू, बाजरे के नमकीन और खाखरे जैसे उत्पाद बनाकर स्थानीय हाट बाजारों में बेचने की तैयारी में हैं। महिलाओं ने बताया कि हमने तो कभी सोचा भी नहीं था कि बाजरा, जो हम खेतों में उगाते थे, उससे इतने स्वादिष्ट और महंगे बिकने वाले सामान भी बन सकते हैं। अब हम इसे पैक करके गांव के बाहर भी बेचेंगे।
नाबार्ड के डीडीएम आशीष जैन ने बताया कि मिलेट्स की बढ़ती मांग को देखते हुए ग्रामीण महिलाओं को इसका लाभ मिल सके, इसके लिए वित्तीय सहयोग और तकनीकी प्रशिक्षण दोनों जरूरी थे। यह कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ताकत देने के साथ-साथ कुपोषण दूर करने में भी मदद करेगा। हमारा उद्देश्य है कि ये महिलाएं अब खुद अपने उत्पादों का विपणन करें, स्थानीय दुकानों, मेले-प्रदर्शनियों में स्टॉल लगाएं और धीरे-धीरे ऑनलाइन माध्यमों से भी जोड़ें। यही असली महिला सशक्तिकरण है।
इस प्रशिक्षण शिविर में जिला तकनीकी विशेषज्ञ मुकेश कुमार नवल ने महिलाओं को प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उधम उन्नयन योजना के बारे में बताया। इस योजना के तहत वे अपने छोटे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को सरकारी अनुदान व ऋण से स्थापित कर सकती हैं। बीपीएम मंजू चौहान ने महिलाओं को आजीविका गतिविधियों की बारीकियां बताईं, जिससे उत्पाद तैयार करने से लेकर उसके पैकेजिंग और बिक्री तक की जानकारी उन्हें मिले।
गांव में महिलाओं का यह समूह अब ‘एकता महिला राजीविका सर्वांगीण विकास सहकारी समिति लिमिटेड’ के बैनर तले एकजुट होकर काम करेगा। महिलाओं ने बताया कि पहले हम अलग-अलग घरों में काम करते थे, लेकिन अब हम सामूहिक रूप से मिलकर एक छोटी यूनिट चलाएंगे। इससे लागत कम होगी और मुनाफा ज्यादा।
आज के दौर में लोग हेल्दी स्नैक्स की ओर लौट रहे हैं। गेहूं और चावल की तुलना में रागी, बाजरा और ज्वार जैसे मोटे अनाज फिर से लोकप्रिय हो रहे हैं। ये न केवल पौष्टिक हैं बल्कि डायबिटीज जैसी बीमारियों में भी लाभकारी माने जाते हैं। बाजार में इनके बिस्कुट, लड्डू या नमकीन अच्छे दामों पर बिक रहे हैं। ऐसे में सांगावास की महिलाएं अब इस ट्रेंड को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं।
प्रशिक्षण पूरा होने पर नाबार्ड की ओर से सभी महिलाओं को प्रमाणपत्र दिए गए हैं, जिससे आगे बैंक ऋण और सरकारी योजनाओं में मदद मिलेगी। महिलाएं अब स्थानीय पंचायत और स्वयं सहायता समूह के जरिए यूनिट लगाने, पैकेजिंग मशीनें खरीदने और ब्रांडिंग की योजना बना रही हैं। जल्द ही ‘सांगावासमिलेट्स’ नाम से उत्पाद बाजार में उतर सकते हैं।
सांगावास की इन 30 महिलाओं की कहानी आज उन लाखों ग्रामीण महिलाओं के लिए मिसाल बन रही है जो बदलाव तो चाहती हैं लेकिन अवसर का इंतजार कर रही हैं। नाबार्ड का यह कदम बताता है कि अगर सही दिशा मिले तो गांव की महिलाएं भी उद्यमिता के रास्ते पर न केवल चल सकती हैं बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकती हैं।
Published on:
02 Aug 2025 11:41 am