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दरकती दीवारों में दबा ‘इलाज’, डर के साये में बीमारों की जिंदगी

तस्वीर जरा सोचिए कि एक अस्पताल, जहां इलाज के लिए नहीं, हादसे से बचने के लिए लोग ईश्वर का नाम लेकर भीतर कदम रखते हैं।

Amet CHC
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राजसमंद. तस्वीर जरा सोचिए कि एक अस्पताल, जहां इलाज के लिए नहीं, हादसे से बचने के लिए लोग ईश्वर का नाम लेकर भीतर कदम रखते हैं। दीवारें जगह-जगह से दरकी हुईं, छतों से गिरती प्लास्टर की परतें, गलियारों में खंभों के सहारे टिके छज्जे और इन्हीं खतरनाक दीवारों के बीच कोई अपनी बूढ़ी मां को इलाज के लिए लेकर आता है तो कोई अपने बुखार से तपते बच्चे को। ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, ये है आमेट उपखण्ड मुख्यालय स्थित राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हकीकत!

छज्जे को बल्लियों का सहारा, कब तक?

जिस मुख्य प्रवेश द्वार से रोज सैकड़ों लोग गुजरते हैं, वहां का छज्जा कब गिर पड़े कोई नहीं जानता। हालत ये हो गई कि छज्जे को गिरने से रोकने के लिए लकड़ी की बल्लियां लगा दी गईं और अब तो खतरा इतना बढ़ गया कि तारबंदी कर पूरा रास्ता ही बंद कर देना पड़ा। मगर सवाल यह है कि मरीज और तीमारदार जाएंगे कहां?

भीतर बारिश, बाहर बारिश!

अंदर का मंजर और डरावना है कि ईजेक्शन रूम, वार्ड, बरामदे, सभी जगह दीवारों से पानी टपकता है। कहीं छत की पट्टियां ढीली होकर सिर पर गिरने को तैयार हैं तो कहीं बरामदे की छत की पट्टियां आधी लटक रही हैं। कोई नहीं जानता कि अगली गिरती हुई ईंट किसके सिर पर पड़ेगी।

नया भवन, मगर कछुए की चाल

इसी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के ठीक पास नया भवन भी बन रहा है ताकि मरीज डर के साये से बाहर आकर इलाज करवा सकें। पर अफसोस, उस इमारत का काम भी कछुए की चाल से आगे बढ़ रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि नया भवन जल्दी पूरा होगा , मगर हकीकत में पुराना ढहने को है और नया बनने को नहीं।

तहसीलदार पहुंचे, आदेश भी दिए

आखिर हालात इतने बिगड़े कि तहसीलदार पारसमल बुनकर खुद अस्पताल पहुंचे। उन्होंने निरीक्षण किया, देखा कि किस कमरे में जाना खतरनाक है। फिर आदेश दिया कि मुख्य द्वार तारबंदी से बंद करो, जहां भी छतें टूट रही हैं, वहां मरीजों का आना-जाना रोक दो। और जल्दी से जल्दी नया भवन तैयार कर मरीजों को शिफ्ट करो।

सीएमएचओ ने दी ढांढस की घुट्टी

ब्लॉक सीएमएचओ डॉ. एस के वर्मा ने भी भरोसा दिलाया कि जहां खतरा है, वहां आवाजाही रोक दी है। नया भवन जल्दी तैयार हो रहा है, जल्द ही शिफ्ट कर देंगे। बड़ा हादसा नहीं होने देंगे। मगर मरीजों को ये ढांढस भी अधूरा सा लगता है — क्योंकि बीमार पेट को दवा तो चाहिए ही, और दवा कहां मिलेगी अगर अस्पताल ही डरावना बन जाए!

प्रशासन से बड़ा सवाल

लोग पूछ रहे हैं कि क्या जब तक नया भवन तैयार होगा, तब तक मरीज इसी गिरते हुए भवन में डर के साए में इलाज करवाते रहेंगे? क्या एक छोटी सी चूक बड़ी दुर्घटना में नहीं बदल सकती?