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रॉयल्टी बढ़ोतरी से ‘संगमरमर नगरी’ में हाहाकार : व्यवसायियों ने रोका मार्बल का लदान, दी उग्र आंदोलन की चेतावनी

राजस्थान में ‘संगमरमरनगरी’ के नाम से मशहूर आमेट-केलवा और राजसमंद क्षेत्र का मार्बल उद्योग एक बार फिर सरकार की नीतियों से गहरे संकट में फंस गया है।

Rajsamand Marbel News
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राजसमंद. राजस्थान में ‘संगमरमरनगरी’ के नाम से मशहूर आमेट-केलवा और राजसमंद क्षेत्र का मार्बल उद्योग एक बार फिर सरकार की नीतियों से गहरे संकट में फंस गया है। पहले ही मंदी और सस्ते विदेशी टाइल्स से जूझ रहे इस क्षेत्र के हजारों व्यवसायियों को सरकार की नई रॉयल्टी बढ़ोतरी ने जैसे जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। गुरुवार को मार्बल व्यवसाइयों ने एकजुट होकर विरोध का बिगुल बजा दिया। शुक्रवार से उन्होंने संगठित रूप में मार्बल का लदान बंद कर दिया और जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर रॉयल्टी की दरें वापस लेने की मांग रखी।

रॉयल्टी में 80 रुपये की बढ़ोतरी, जीएसटी के बाद नई चोट

मार्बल एसोसिएशन के अध्यक्ष गौरवसिंह राठौड़ ने बताया कि पहले से ही जीएसटी, पेट्रोल-डीजल, बिजली दरों, ई-रवन्ना और ऑनलाइन रिटर्न की मार झेल रहे मार्बल कारोबार को अब रॉयल्टी बढ़ोतरी ने और बेहाल कर दिया है। उन्होंने कहा कि पहले रॉयल्टी 320 रुपये प्रति टन थी, अब उसे बढ़ाकर 400 रुपये कर दिया गया है। यह सीधे-सीधे मार्बल खदानों के मालिकों और कटर यूनिटों पर अतिरिक्त बोझ डाल रहा है। गौरवसिंह राठौड़ ने यह भी बताया कि जीएसटी के लागू होने के बाद सिरेमिक और विदेशी टाइल्स का बाजार बढ़ गया है, जिससे मार्बल की मांग लगातार गिर रही है। ऐसे में रॉयल्टी दरों में बढ़ोतरी इस क्षेत्र को पूरी तरह बर्बाद कर सकती है।

राजस्व सबसे ज्यादा, बोझ भी सबसे ज्यादा

व्यवसायियों का कहना है कि राज्य सरकार को खनिज रॉयल्टी से जो सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है, उसमें सबसे बड़ा हिस्सा राजसमंद के मार्बल उद्योग से ही आता है। इसके बावजूद इस क्षेत्र पर सबसे ज्यादा दरें थोपना तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने चेताया कि अगर रॉयल्टी की दरें नहीं घटाई गईं तो हजारों खदानों और कटिंग यूनिटों पर ताले लग जाएंगे और लाखों मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे।

कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन, उग्र आंदोलन की चेतावनी

व्यवसायियों ने शुक्रवार को कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा जिसमें मुख्यमंत्री से मांग की गई है कि रॉयल्टी की दरों को पूर्ववत 320 रुपये प्रति टन ही रखा जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने मांगें नहीं मानी तो पूरे जिले में व्यापक स्तर पर उग्र आंदोलन छेड़ा जाएगा। ज्ञापन देने पहुंचे प्रतिनिधिमंडल में मधुसूदन व्यास, नानालाल सिंधल, सत्यनारायण काबरा, संजय पालीवाल, नानालाल सार्दुल, मदन तेली, जनकसिंह, देवीलाल बुनकर, बाबूलाल कोठारी, देवीलाल तेली, अनिल कोठारी, गिरिश अग्रवाल, सुरेश सांखला, सुनील कोठारी, सत्यप्रकाश काबरा, प्रताप तेली, ऋषिराज सिंह, राजेंद्र मेवाड़ा, राजू भाई, रमेश तेली समेत बड़ी संख्या में व्यापारी शामिल रहे।

क्या कहते हैं आंकड़े?

  • जिले में कुल मार्बल खदानें: करीब 915
  • मार्बल कटर यूनिट: 1200
  • गैंगसॉयूनिट: 500
  • मार्बल से जुड़ेव्यापारी: करीब 50,000 (खान मालिक, ट्रेडर्स, कटर आदि)
  • इस उद्योग पर आश्रित मजदूर-कर्मचारी: लगभग 5 लाख

व्यवसायियों का दर्द: रोजगार बचाओ, मार्बल उद्योग बचाओ!

व्यवसायियों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो हजारों खदानें बंद होंगी, सैकड़ों यूनिटों में ताले लगेंगे और करीब 5 लाख से ज्यादा श्रमिक बेरोजगारी की मार झेलेंगे। साथ ही हजारों ट्रक ऑपरेटर, ट्रांसपोर्टर और छोटे व्यापारी भी प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि मार्बल उद्योग सरकार के लिए ‘रेवेन्यूमशीन’ है, लेकिन इसे ही धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है।