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रानी लक्ष्मीबाई’ केंद्र: जहां बेटियां सीख रहीं दुश्मन को धूल चटाना

गांव की संकरी गलियों से लेकर शहर की भीड़भाड़ वाली सड़कों तक, अब बेटियों की चाल में नया आत्मविश्वास दिखने लगा है।

Self Defence news
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राजसमंद. गांव की संकरी गलियों से लेकर शहर की भीड़भाड़ वाली सड़कों तक, अब बेटियों की चाल में नया आत्मविश्वास दिखने लगा है। कोई कहे तो सही-ये वही बेटियां हैं जो कल तक गली में अकेले निकलने से हिचकती थीं, पर आज मार्शल आर्ट्स के गुर सीखकर खुद को झांसी की रानी मान बैठी हैं। यह चमत्कार हुआ है राजसमंद जिले के ‘रानीलक्ष्मीबाई’ आत्मरक्षा केंद्रों में। जहां स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियां सिर्फ किताबों में इतिहास नहीं पढ़ रहीं, बल्कि इतिहास से हौसला लेकर अपनी सुरक्षा की तलवार खुद पैनी कर रही हैं।

सिर्फ चार दिन में आत्मविश्वास की बुनियाद

राजसमंद के श्री द्वारिकाधीश राजकीय कन्या महाविद्यालय, धायला, खटामला और देवपुरा के राजकीय स्कूलों में 26 से 29 जुलाई तक चले इस विशेष प्रशिक्षण में बेटियों ने हाथ में किताब से ज्यादा लाठी और पंचिंग पैड थामे देखे। पुलिस विभाग और शिक्षा विभाग ने मिलकर ये ठाना कि अब बेटियां सिर्फ क्लासरूम में नहीं, मैदान में भी दम दिखाएंगी।

पुलिस बनी ढाल, बेटियां बनीं तलवार

पुलिस अधीक्षक ममता गुप्ता खुद इस पूरे मिशन की अगुआई कर रही हैं। उनके शब्दों में ही देखिए कि हमारी बेटियां कमजोर नहीं हैं। जरूरत सिर्फ सही दिशा की है। हम चाहते हैं कि हर बेटी खुद को महफूज़ महसूस करे और बेखौफ होकर सपने पूरे करे।अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रजत विश्नोई और एएसआई लक्ष्मणसिंह राणावत जैसे अधिकारी हर दिन बेटियों के बीच मैदान में खड़े रहे। मास्टर ट्रेनर्स ने मार्शल आर्ट्स के दांव-पेंच सिखाए, लाइव सीन बनाकर दिखाया कि कैसे कोई छेड़छाड़ करे तो जवाब में छाती पर लात कैसे जमाई जाती है!

सिर्फ शारीरिक ताकत नहीं: साइबर शेरनी भी

  • आजकल असली खतरा सिर्फ गली-मोहल्लों में नहीं, मोबाइल स्क्रीन में भी छिपा है।
  • इसीलिए बेटियों को यह भी सिखाया गया कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर कैसे सतर्क रहें?
  • किसी अजनबी का फ्रेंड रिक्वेस्ट- एक क्लिक में जिंदगी बर्बाद कर सकती है।
  • यहां बेटियों ने जाना कि ‘राजकॉपएप’ से कैसे तुरंत पुलिस तक एसओएस भेजा जाए-एक बटन दबाओ, मदद हाजिर।
  • 4174 बेटियां: अब डर को कह चुकीं अलविदा

कौन कहता है कि बदलाव रातों-रात नहीं होता?

जनवरी 2025 से लेकर अब तक जिले की 4174 बेटियां और महिलाएं इस मिशन का हिस्सा बन चुकी हैं। किसी ने कहा कि पहले मुझे बस स्टॉप पर अकेले डर लगता था, अब लगता है सामने वाला छेड़े तो उसकी शामत आ जाएगी। किसी ने कहा कि अब घरवाले भी मुझे निडर होकर बाहर भेजते हैं।

बेटियों का संकल्प: अब नहीं सहेंगे

धायला के एक सरकारी स्कूल की छात्रा ने कहा कि पहले जब सुनते थे ‘रानीलक्ष्मीबाई’ तो लगता था इतिहास में ही ठीक हैं। अब लगता है हम भी वही हैं। जो कोई गलत नजर डालेगा, उसे जवाब मिलेगा।

ये सिर्फ कार्यक्रम नहीं: जिम्मेदारी है

पुलिस के लिए ये सिर्फ एक रस्मी ट्रेनिंग नहीं। ये एक वादा है कि बेटियों को अब ‘कमजोर’ कहने की हिम्मत किसी की नहीं। हर स्कूल, हर गांव, हर गली में ऐसी सेनानियां तैयार हो रही हैं, जो आने वाले वक्त में हर अपराधी को सोचने पर मजबूर कर देंगी कि कहीं ये भी ‘रानीलक्ष्मीबाई’ तो नहीं?