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पिस्टल रखने का बढ़ता क्रेज… नेता-बिजनेसमैन सबसे आगे, डेढ़ साल में 24 नए गन लाइसेंस जारी, देखें रेट

Pistol Craze: पिस्टल या हथियार रखना जहां आत्मरक्षा का अधिकार है, वहीं इसका दुरुपयोग समाज के लिए घातक साबित हो सकता है। इसे स्टेटस सिंबल या पावर का प्रतीक बनाना एक खतरनाक प्रवृत्ति है।

पिस्टल रखने का बढ़ता क्रेज (फोटो सोर्स- पत्रिका)
पिस्टल रखने का बढ़ता क्रेज (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Pistol Craze: बीते कुछ वर्षों में देशभर, खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में, पिस्टल और अन्य हथियार रखने का चलन तेजी से बढ़ा है। अब यह केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि स्टेटस सिंबल और समाज में प्रभाव जमाने का एक साधन बन गया है। शादी-ब्याह, राजनीतिक सभाएं या फिर सोशल मीडिया पोस्ट हर जगह हथियारों की नुमाइश आम हो गई है।

बात करें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की तो यहां हथियार रखने का चलन वर्षों से जारी है, लेकिन हाल के आंकड़े दिखाते हैं कि रसूखदार तबके में यह क्रेज आज भी कम नहीं हुआ है। कलेक्ट्रेट की लाइसेंस शाखा से प्राप्त जानकारी के अनुसार, रायपुर जिले में कुल 1,892 सक्रिय गन-लाइसेंस हैं और नई सरकार के सत्ता में आने के बाद, 1 जनवरी 2024 से अब तक 24 नए लाइसेंस जारी किए गए हैं।

ये लोग शामिल

कलेक्ट्रेट में गन लाइसेंस के लिए आए दिन आवेदन आते रहते हैं। इनमें हर वर्ग के लोग शामिल हैं। वहीं ज्यादातर लोगों ने आत्मरक्षा और सुरक्षा गार्ड के लिए आवेदन किए थे। इनमें अधिकतर बड़े बिजनेसमैन, नेता, सुरक्षा गार्ड, निशानेबाज खिलाड़ी व अन्य लोग शामिल हैं।

वर्तमान समय में सुरक्षा के नाम पर निजी गनर रखने का चलन बढ़ गया है। अभी यह चलन सबसे ज्यादा नेता और बिजनेसमैन में देखने को मिल रहा है। कोशिश यह होती है कि दबी जुबान ही सही लोग उन्हें दबंग की श्रेणी में रखें, ताकि उनका रसूख बना रहे। दरअसल, गनर रखने के पीछे बिजनेसमैन और नेताओं के अलग-अलग मकसद हैं, एक तो यह कि समाज के लोग उन्हें भीड़ से अलग हटकर देखें-जानें। साथ ही बड़ी रकम को लेकर आना जाना और जान को खतरा बना रहता है।

दो से तीन माह तक लग सकता है समय

गन लाइसेंस के लिए करीब दो से तीन माह का वक्त लग सकता है। जानकारी के अनुसार आवेदक की पृष्ठभूमि की जांच करने और एसपी और एसडीएम कार्यालय से प्रतिवेदन आने में समय लग जाता है। इन सभी प्रक्रिया के बाद ही गन लाइसेंस जारी किया जाता है।

दूसरे प्रदेश के लिए भेजते हैं गृह विभाग को

जानकारी के अनुसार आत्मरक्षा, सुरक्षा गार्ड और निशानेबाजी (खिलाड़ी) जैसे कारणों से गन लेने के लिए आवेदन लगाते हैं। व्यक्ति के साफ-सुथरे, आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होने पर विभाग की ओर से लाइसेंस दिया जाता है। ऐसा सिर्फ छत्तीसगढ़ के लिए होता है। यदि छ्त्तीसगढ़ के बाहर के लिए लाइसेंस चाहिए तो आवेदन को गृह विभाग भेज दिया जाता है। फिर वहां से लाइसेंस देना है या नहीं देना है, विभाग के ऊपर निर्भर होता है।

ऐसे मिलता है लाइसेंस

लाइसेंस शाखा से मिली जानकारी के अनुसार बंदूक लाइसेंस के लिए आवेदन किया जाता है। बंदूक लाइसेंस के लिए आवेदन करने का कारण बताना जरूरी है। कलेक्ट्रेट में आवेदन करने के बाद संबंधित विभाग दस्तावेजों की जांच करता है। उसके बाद, दस्तावेजों को आगे की जांच के लिए पुलिस विभाग और एसडीएम को भेज दिया जाता है। व्यक्ति के आपराधिक रिकॉर्ड समेत अन्य पृष्ठभूमि की जांच करने के बाद जानकारी वापस कलेक्ट्रेट को दी जाती है। अगर आवेदक के सभी दस्तावेज सही हैं और बंदूक का लाइसेंस लेने का कारण उचित है, तभी लाइसेंस जारी किया जाता है।

डीलर के अनुसार इस रेट तक की बंदूक शामिल

बंदूक - रेट
पिस्टल - 1.50 लाख से 5 लाख रुपए तक
रिवॉल्वर - 1.50 लाख से 5 लाख रुपए तक
राइफल - 1.60 लाख से 1.70 लाख रुपए तक
12 बोर - 25 से 30 हजार रुपए

शादी-ब्याह और जुलूसों में हथियारों का प्रदर्शन

अब शादियों में डीजे और बैंड-बाजे के साथ-साथ हथियारों का भी प्रदर्शन आम हो गया है। कई जगह बारात में दूल्हा खुद पिस्टल लहराते हुए नजर आता है। यह सामाजिक प्रतिस्पर्धा बन चुकी है कि किसके पास कौन-सा हथियार है। यह चलन खासकर उत्तर भारत के कुछ राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार में देखने को मिल रहा है।

कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण

भारत में हथियार रखने के लिए सख्त कानूनी प्रक्रिया है। आर्म्स एक्ट 1959 के तहत पिस्टल, रिवॉल्वर या राइफल के लिए लाइसेंस आवश्यक है। इसके बावजूद, कई लोग अवैध तरीके से हथियार खरीदते हैं या दूसरों के नाम पर हथियार रख लेते हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार, यह ट्रेंड न केवल अपराध को बढ़ावा देता है बल्कि समाज में डर और हिंसा की भावना को भी मजबूत करता है।

पिस्टल या हथियार रखना जहां आत्मरक्षा का अधिकार है, वहीं इसका दुरुपयोग समाज के लिए घातक साबित हो सकता है। इसे स्टेटस सिंबल या पावर का प्रतीक बनाना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। जरूरत इस बात की है कि लोगों को हथियारों की बजाय कानून और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था पर विश्वास करना सिखाया जाए।

गन लाइसेंस के लिए आवेदन आते हैं, संबंधित विभाग द्वारा दस्तावेज की जांच के बाद लाइसेंस दिया जाता है। डेढ़ साल में 24 गन के लाइसेंस जारी किए गए हैं। - देवेंद्र पटेल, एडीएम रायपुर