@रायपुर। दिनेश कुमार। Solar energy in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़, जो वर्षों से कोयला आधारित बिजली उत्पादन का प्रमुख केंद्र रहा है, अब ऊर्जा उत्पादन के हरित और टिकाऊ विकल्पों की ओर रुख कर रहा है। राज्य में पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करने की दिशा में सौर ऊर्जा एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर रही है। यह न केवल राज्य के ऊर्जा परिदृश्य को नया स्वरूप देने वाला कदम है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण पहल है।
राज्य सरकार और निजी उपभोक्ताओं द्वारा सौर ऊर्जा को अपनाने की गति तेज हो गई है। अब यह केवल गांवों या पिछड़े क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि शहरों के घरों, संस्थानों, अस्पतालों और यहां तक कि औद्योगिक इकाइयों तक इसका विस्तार हो रहा है। लोग सोलर रूफटॉप सिस्टम, ऑन-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड संयंत्रों के माध्यम से अपनी बिजली की जरूरतों को स्वयं पूरा कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि 1 किलोवाट के सोलर पैनल से प्रतिदिन औसतन 4 यूनिट बिजली उत्पन्न होती है, यदि तापमान 22 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच हो। छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति इस उत्पादन के लिए अनुकूल मानी जाती है। हालांकि, मानसून और सर्दी के मौसम में बिजली उत्पादन में गिरावट आती है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि फिलहाल सौर ऊर्जा पूर्ण विकल्प नहीं बन सकती, लेकिन यह सहायक स्रोत के रूप में बेहद प्रभावशाली है।
हालांकि, बारिश या तापमान में गिरावट के दौरान उत्पादन घटकर 2.5 से 3 यूनिट प्रतिदिन रह जाता है, जिससे पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति सौर ऊर्जा से नहीं हो पाती। ऐसी स्थिति में कोयला और जल आधारित पारंपरिक स्रोतों से बिजली की आपूर्ति की जाती है। फिर भी, सौर ऊर्जा की ओर बढ़ता यह कदम आने वाले वर्षों में प्रदेश को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर कर सकता है। वो भी हरित और टिकाऊ रास्ते पर।
किसानों को सोलर ऊर्जा के माध्यम से बिजली प्रदान करने के लिए पीएम कुसुम योजना शुरू की गई है। इसके तहत 7 मेगावॉट का बिजली वर्तमान में उत्पादन किया जा रहा है। इसमें 15 मेगावॉट तक उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित है।
सोलर से बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ पावर कंपनी ने सोलर एनर्जी शाखा बनाई है। वर्तमान में प्रदेशभर में करीब 1200 मेगावॉट सोलर बिजली का उत्पादन के लिए सोलर प्लांट लगाए गए हैं। इसमें आम उपभोक्ता भी अहम योगदान दे रहे हैं। आम उपभोक्ताओं के छत पर सोलर प्लांट लगाकर करीब 150 मेगावॉट बिजली पैदा की जा रही है। वहीं, औद्योगिक प्लांटों में 1000 मेगावॉट से ज्यादा के प्लांट पूरे छत्तीसगढ़ में चल रहे हैं।
सोलर ऊर्जा की कम पैदावार से अन्य स्त्रोतों से बिजली की जरूरतों को पूरा किया जाता है। इसी कारण जून और जुलाई महीनों में भी प्रदेशभर में बिजली खपत 5000मेगावॉट से ज्यादा रही।
पीएम सूर्य घर बिजली योजना को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ में कई प्रयास किए जा रहे हैं। सोलर एनर्जी शाखा ने मार्च 2027 तक प्रदेशभर के 1.30 लाख आम उपभोक्ताओं को इस योजना का लाभ देने की योजना बनाई है। इसके लिए व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इस योजना के तहत सभी शासकीय भवनों में सोलर प्लांट लगाए जाएंगे। वर्तमान में प्रदेशभर के 6000 से ज्यादा उपभोक्ता इस योजना का लाभ उठा रहे हैं। इस योजना के प्रत्येक परिवार को 300 यूनिट बिजली मुफ्त मिलेगी। उपयोग के बाद बची हुई बिजली को उपभोक्ता ही विभाग को बेच सकेंगे।
22-30 डिग्री तापमान पर सोलर पैनल सामान्य बिजली उत्पादन होता है। 1 किलोवॉट के कनेक्शन में प्रतिदिन 4 यूनिट बिजली उत्पन्न होती है। तापमान कम होने पर उत्पादन भी 2.5-3 यूनिट प्रतिदिन तक हो जाता है। ऐसी स्थिति में बिजली की कमी को अन्य स्रोतों से दूर किया जाता है। - एन बिम्बसार, अधीक्षण यंत्री, सोलर एनर्जी शाखा
हालांकि अभी भी राज्य की कुल बिजली खपत का बड़ा हिस्सा कोयला और जल आधारित संयंत्रों से आता है, लेकिन सौर ऊर्जा की दिशा में यह परिवर्तन आने वाले समय में निर्णायक सिद्ध हो सकता है। यह कदम न केवल ऊर्जा के विविधीकरण को बढ़ावा देगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी मदद करेगा। अगर इसी तरह से योजनाबद्ध और सामूहिक प्रयास जारी रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब छत्तीसगढ़ ऊर्जा आत्मनिर्भर राज्य बनने के साथ-साथ एक 'हरित ऊर्जा राज्य' के रूप में देशभर में मिसाल पेश करेगा।
Published on:
02 Aug 2025 03:01 pm