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Munshi Premchand: भारतीय समाज का आईना हैं प्रेमचंद, रंगकर्मियों और फिल्मकारों ने साझा किए अपने विचार

Munshi Premchand: 31 जुलाई को प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर रंगमंच और फिल्मों से जुड़े लोगों ने उनके लेखन की गहराई और समाज पर प्रभाव को साझा किया

Munshi Premchand
भारतीय समाज का आईना हैं प्रेमचंद ( Photo - Patrika )

ताबीर हुसैन. Munshi premchand एक ऐसा नाम जो केवल साहित्य तक सीमित नहीं, बल्कि समाज की आत्मा तक पहुंचता है। उनके पात्र, संवाद, परिस्थितियां और संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे। 31 जुलाई को प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर रंगमंच और फिल्मों से जुड़े लोगों ने उनके लेखन की गहराई और समाज पर प्रभाव को साझा किया। ( CG News) किसी ने उनकी कहानियों को मंच पर जिया, तो किसी ने उन्हें सिनेमाई दृश्यों में उतारा। इनकी नजर में प्रेमचंद सिर्फ कथाकार नहीं, बल्कि भारतीय समाज का आईना और बदलाव का माध्यम हैं। सभी ने नई पीढ़ी को प्रेमचंद को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

Munshi premchand से ही कहानी की दुनिया में आया

राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त रंग निर्देशक राजकमल नायक ने कहा, मैंने मुंशीजी की ‘निमंत्रण’ और ‘मोटेराम शास्त्री’ पर नाट्य मंचन किया है। प्रेमचंद को पढ़ते हुए ही साहित्य से जुड़ाव हुआ। उनकी कहानियों ने मुझे सोचने की दिशा दी। संघर्षों से भरे उनके जीवन ने लेखन को धार दी। गरीबी, जात-पात, महंगाई जैसे हर मुद्दे को उन्होंने सहजता से छूआ। ‘कफन’ तो ऐसी कहानी है जिसमें दो क्लाइमेक्स हैं। उनके शब्द इतने बारीकी से गढ़े जाते थे कि हर कहानी एक निष्कर्ष तक पहुंचती है। वे वास्तव में कलम के जादूगर थे।

कहानी समाज का दस्तावेज होती है

रंग निर्देशक योग मिश्र ने कहा, प्रेमचंद की कहानियां हर वर्ग और हर उम्र के पाठक को शिक्षा देती हैं। समाज के हर पहलू को उन्होंने अपनी कलम से छुआ-चाहे वह अंधविश्वास हो या सामाजिक अन्याय। उनकी कहानियों में विद्रूपताएं उजागर होती हैं। वे हर काल में प्रासंगिक हैं क्योंकि कहानी अपने समय का दस्तावेज होती है। प्रेमचंद की भाषा सरल है, लेकिन असर गहरा। वे समाज को आईना दिखाने वाले लेखक हैं, जिनकी लेखनी आने वाले समय में भी उतनी ही जरूरी बनी रहेगी। उनका लेखन हमेशा के लिए प्रासंगिक रहेगा।

मेरी फिल्मों में दिखती है प्रेमचंद की झलक

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक सतीश जैन ने कहा, मैंने अनेक नामचीन लेखकों को पढ़ा, लेकिन जब प्रेमचंद को पढ़ा तो बाकी सब फीके लगने लगे। मेरी फिल्मों में ग्रामीण जीवन और यथार्थ की जो झलक मिलती है, वह प्रेमचंद से ही प्रेरित है। मैंने सिनेमाई संस्कृति में उनकी सोच और दृष्टिकोण को उतारने की कोशिश की है। उनकी गहराई को समझे बिना भारत को समझना अधूरा है। मैं अन्य फिल्मकारों को भी प्रेरित करता हूं कि वे प्रेमचंद को पढ़े और समझें, तभी हमारी कहानियों में समाज का सच्चा प्रतिबिंब आ पाएगा।

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों पर बनी फिल्मों व टीवी सीरियलों के नाम

मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ भारतीय सिनेमा और टेलीविजन पर कई बार रूपांतरित हुई हैं। यहाँ 10 प्रमुख फिल्मों और टेलीविजन रूपांतरणों के नाम दिए गए हैं, जो प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित हैं।

शतरंज के खिलाड़ी (1977)
निर्देशक: सत्यजीत रे
कहानी: शतरंज के खिलाड़ी (Munshi Premchand)

गोदान (1963)
निर्देशक: त्रिलोक जेटली
उपन्यास: गोदान (Munshi Premchand)

गबन (1966)
निर्देशक: हृषिकेश मुखर्जी
उपन्यास: गबन (Munshi Premchand)

सद्गति (1981)
निर्देशक: सत्यजीत रे
कहानी: सद्गति (Munshi Premchand)

कफन (1983)
टीवी फिल्म (दूरदर्शन)
कहानी: कफन (Munshi Premchand)

बड़े घर की बेटी (1985)
दूरदर्शन टेलीफिल्म
कहानी: बड़े घर की बेटी (Munshi Premchand)

नमक का दारोगा (1996)
टीवी रूपांतरण
कहानी: नमक का दारोगा (Munshi Premchand)

पूस की रात (1989)
दूरदर्शन नाटक
कहानी: पूस की रात (Munshi Premchand)

ईदगाह (1980s)
दूरदर्शन बाल कथा
कहानी: ईदगाह (Munshi Premchand)

ठाकुर का कुआँ (1990s)
टीवी रूपांतरण
कहानी: ठाकुर का कुआँ (Munshi Premchand)