एक ओर जहां हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार संविधान में मौलिक अधिकार माना गया है, वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर नजर आती है। शहर के लहरतारा इलाके में स्थित प्राथमिक विद्यालय इसका बड़ा उदाहरण है। 1950 में स्थापित इस स्कूल की हालत बेहद खराब है। यहां बच्चे अब भी टीन शेड के नीचे पढ़ाई कर रहे हैं।
स्थिति तब और बिगड़ गई जब राजकीय प्राथमिक विद्यालय का इस स्कूल में विलय कर दिया गया। अब टीन शेड के दो कमरे और एक बरामदे में दो अलग-अलग स्कूल चल रहे हैं। कक्षा 1 से 5 तक के कुल 56 बच्चे हैं, लेकिन उनके लिए पर्याप्त जगह और सुविधाएं नहीं हैं।
बरसात में स्कूल की हालत और भी खराब हो जाती है। टीन की छत टपकने लगती है, जिससे बच्चे और उनकी किताबें भीग जाती हैं। तेज बारिश के दिनों में तो कक्षाएं स्थगित करनी पड़ती हैं। पढ़ाई में लगातार रुकावटें आती हैं।
यहां बालक-बालिका के लिए अलग-अलग शौचालय तक नहीं हैं। एकमात्र दिव्यांग शौचालय को ही बालिकाएं भी इस्तेमाल करती हैं, जिससे असुविधा और असुरक्षा की भावना बनी रहती है।
विद्यालय का परिसर महज डेढ़ बिस्वा में है, जिसमें से आधा हिस्सा टीन शेड लगाकर क्लासरूम बना दिया गया है। बच्चों के खेलने के लिए कोई मैदान नहीं है। एक ही कमरे में दो क्लास चलने से पढ़ाई में ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता। कक्षा 5 की छात्रा पायल कहती है, "एक कमरे में दो क्लास चलती हैं, जिससे पढ़ाई में मन नहीं लगता।"
दोनों स्कूल मिलाकर अब यहां 7 शिक्षक हैं, जिनमें प्रधानाध्यापिका, दो सहायक अध्यापक और चार शिक्षामित्र शामिल हैं। लेकिन शिक्षकों के बैठने तक की कोई जगह नहीं है। प्रधानाध्यापिका को बरामदे में बैठना पड़ता है। शिवपुरवा स्कूल का भवन जर्जर हो गया था, इसलिए उसे इस स्कूल में मिला दिया गया। मगर बच्चों और शिक्षकों की संख्या बढ़ने के बावजूद सुविधाएं नहीं बढ़ाई गईं।
Updated on:
31 Jul 2025 11:31 pm
Published on:
31 Jul 2025 11:30 pm