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जहां चलती है बंदूक से गोलियां, खामोश है फैक्ट्रियां

- बाहुबल की बेल्ट में गुम विकास: मोकामा से दानापुर-बाढ़ तक एक ही कहानी - चर्चा में हैं अपराध

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शादाब अहमद

मोकामा (पटना)। बिहार की राजनीति में बाहुबलियों की परंपरागत गूंज एक बार फिर सुनाई दे रही है। पटना जिले के मोकामा में जनसुराज पार्टी के प्रचार के दौरान बाहुबली नेता दुलारचंद यादव की हत्या से सियासत गरमा गई है। इस घटना ने बिहार को फिर ‘जंगलराज’ बनाम ‘कानून का राज’ की बहस में झोंक दिया है। लेकिन इस बहस की शोर में मोकामा की बंद पड़ी वैगन फैक्ट्री, सूत मिल और पलायन कर रहे युवाओं की आवाज दब गई है।

दरअसल, बिहार का नाम सुनते ही बंदूक-गोली की गूंज के साथ बाहुबल-धनबल वाले नेताओं की छवि सामने आने लगती है। खास बात यह है कि इस तरह के नेताओं के चुनाव लडऩे वाले इलाकों में जाने के लिए राजधानी पटना से मुझे महज 20 से 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी।

सियासत में अपराध की परछाई नई नहीं

पटना से करीब 100 किलोमीटर दूर मोकामा में जेडीयू के बाहुबली अनंत सिंह और राजद की वीणा देवी (बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी) के बीच मुकाबला है। दोनों परिवारों की पहचान राजनीति से ज़्यादा ‘शक्ति प्रदर्शन’ से जुड़ी रही है। दुलारचंद यादव की हत्या का आरोप अनंत सिंह के समर्थकों पर लगा है, जबकि अनंत सिंह इसे सूरजभान सिंह की साजिश बता रहे हैं। मोकामा की सियासत में अपराध की यह परछाई नई नहीं, लेकिन इसने जनता के असली मुद्दों को पीछे धकेल दिया है।

कोई वैगन फैक्ट्री को फिर चालू क्यों नहीं करवाता?

मोकामा का नाम बिहार की औद्योगिक विरासत में कभी चमकता था। यहां भारत वैगन फैक्ट्री, सूत मिल, शराब फैक्ट्री और आज़ादी से पहले की बाटा की चमड़ा फैक्ट्री थीं। आज सब खामोश हैं। वैगन फैक्ट्री के पास दुकान चलाने वाले रामनाथ साहू बताते हैं, “मालगाड़ी के डिब्बे बनाने वाली यह फैक्ट्री करीब दस साल से बंद है। 1200 से ज्यादा लोग यहां काम करते थे, लेकिन अब बस खंडहर बचे हैं।” पास ही खड़े युवा रामकिशोर यादव कहते हैं, “फैक्ट्री के लिए जमीन नहीं मिलने की बात अमित शाह कहते हैं, लेकिन इस फैक्ट्री की 50 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। कोई इसको फिर चालू क्यों नहीं करवाता?”

यह पूरे बिहार की 'बीमारी'

एमएससी (रसायनशास्त्र) पास विकास कुमार शुक्ला कहते हैं, “यह मोकामा ही नहीं, पूरे बिहार की बीमारी है। यहां अपराध और जाति की पहचान, रोजगार की जरूरत से बड़ी हो गई है। नेता सुरक्षा या जाति की बात करते हैं, उद्योग या शिक्षा पर मौन रहते हैं। युवाओं के लिए यही सबसे बड़ा धोखा है।”

दानापुर: जेल से चुनाव तक

पटना से 20 किलोमीटर दूर दानापुर में भी अपराध और राजनीति की गहरी सांठगांठ दिखती है। राजद ने रीतलाल यादव को टिकट दिया है, जो फिलहाल रंगदारी और तोड़फोड़ जैसे मामलों में जेल में बंद है। वे जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने भाजपा से पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव हैं। राजधानी के इतने करीब होने के बावजूद दानापुर में ट्रैफिक जाम, बदहाल अस्पताल और व्यवस्थित यातायात जैसे बुनियादी मसले जस के तस हैं।

बाढ़: ‘मिनी चित्तौड़गढ़’ में भी बाहुबल

पटना से करीब 70 किलोमीटर दूर बाढ़, जिसे राजपूत प्रभुत्व के चलते ‘मिनी चित्तौड़गढ़’ कहा जाता है। यहां भाजपा ने डॉक्टर सियाराम सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि राजद से बाहुबली कर्णवीर सिंह (लल्लू मुखिया) उम्मीदवार हैं।

किस प्रत्याशी पर कितने केस, कितनी सम्पत्ति

क्षेत्र उम्मीदवारपार्टी संपत्ति आपराधिक मामले
मोकामाअनंत सिंहजेडीयू₹37.88 करोड़28 केस
वीणा देवी राजद ₹ 8.67 करोड़पति पर केस
दानापुररीतलाल यादव राजद₹7.71 करोड़30 से अधिक केस
रामकृपाल यादव भाजपा3 करोड़ से अधिक10 से अधिक
बाढ़कर्णवीर सिंह (लल्लू मुखिया) राजद₹17.72 करोड़15 केस