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सत्यपाल मलिक की मौत : सियासत या साजिश के कई सवाल अधूरे रह गए

Satyapal Malik Death Controversy: सत्यपाल मलिक का रिश्वत का खुलासा उस समय हुआ था, जब वह सत्ता में थे, लेकिन धीरे-धीरे वो सरकार के आलोचक बनते चले गए। उनका किसानों के आंदोलन के पक्ष में खड़ा होना और उद्योगपतियों पर निशाना साधना उन्हें ‘सिस्टम विरोधी’ छवि में ला चुका था।

भारत

MI Zahir

Aug 05, 2025

Satyapal Malik Death Controversy
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक। (फाइल फोटो: X Handle ShivAroor)

Satyapal Malik Death Controversy: 'व्हिसल ब्लोअर' (Whistleblower in India) पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की मौत(Satyapal Malik death) के साथ ही कई सवाल अधूरे रह गए। वे जब तक जीवित रहे, सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे। 78 वर्षीय सत्यपाल मलिक(CBI investigation Malik) नई दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में यूरीन इन्फेक्शन और सेप्सिस के इलाज के लिए भर्ती रहे थे। उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे, जिनकी सीबीआई जांच कर रही थी। मलिक ने कहा था कि उन्हें दो फाइलें पास करने के लिए रिश्वत की पेशकश की गई थी। मलिक ने कुछ अरसा पहले ही बीमार होने पर दिल्ली एम्स में भर्ती होने और हालत खराब होने की पोस्ट की थी। ध्यान रहे कि सीबीआई ने पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक पर जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में जलविद्युत परियोजना से जुड़े भ्रष्टाचार मामले (Corruption in India politics) में उन समेत सात लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। पहले मलिक को गवाह के तौर पर बुलाया गया था। यह मामला खुद मलिक (Satyapal Malik controvers) की शिकायत पर 2022 में दर्ज हुआ था।

सत्यपाल मलिक के आरोप क्या थे ? क्या किया था खुलासा ?

सत्यपाल मलिक ने अक्टूबर 2021 में खुलासा किया था कि उन्हें दो विवादित फाइलें पास करने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत देने की पेशकश की गई थी, एक रिलायंस समूह से जुड़ी और दूसरी एक आरएसएस पदाधिकारी से संबधित फाइल थी। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने ये प्रस्ताव ठुकरा दिए थे।

वो कौन-सी दो फाइलें थीं, जिनके बारे में आरोप लगाए गए थे ?

जानकारी के अनुसार पहली फाइल सरकारी कर्मचारियों की स्वास्थ्य बीमा योजना से जुड़ी थी, जिसमें रिलायंस जनरल इंश्योरेंस को अनुबंध मिला था। दूसरी फाइल चेनाब नदी पर किरू जलविद्युत परियोजना में नागरिक कार्यों के अनुबंध की थी, जिसमें अनुचित प्रक्रिया अपनाए जाने के आरोप हैं।

आखिर सीबीआई को कैसे सौंपा गया मामला ?

सत्यपाल मलिक के आरोप लगाने के छह महीने बाद, जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने इन मामलों की सीबीआई को जांच सौंप दी थी। उसके बाद 23 मार्च 2022 को दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गईं।

क्या है स्वास्थ्य बीमा योजना का मामला ?

जानकारी के मुताबिक सरकार ने 2017 में पुरानी योजना समाप्त होने के बाद नई बीमा योजना के लिए टेंडर जारी किए थे। रिलायंस जनरल इंश्योरेंस को एल 1 बोलीदाता के रूप में सितंबर 2018 में अनुबंध दिया गया था। यह योजना शुरू होने के तुरंत बाद सरकार ने 61 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान किया था।

आरोप और अनियमितता की आशंका

आरोपों के अनुसार यह भुगतान बिना मुख्य सचिव या राज्यपाल की मंजूरी के किया गया था। कर्मचारियों ने उच्च प्रीमियम और योजना से बाहर निकलने के विकल्प न होने पर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद सत्यपाल मलिक ने योजना को “धोखाधड़ी” बताते हुए रद्द कर दिया था।

दलाल टीआरबीएल की क​थित भूमिका

प्रकरण के आरोपों के अनुसार, बीमा दलाल टीआरबीएल कथित तौर पर एक बड़े कारोबारी समूह का मुखौटा था, और टेंडर प्रक्रिया में बदलाव कर रिलायंस को अनुबंध देने की कोशिश की गई थी।

इस केस में जांच एजेंसियों की कार्रवाई का सच

एसीबी ने 2021 में कहा था कि उसे इस केस में कोई अनियमितता नहीं मिली, लेकिन 44 करोड़ की वसूली की सिफारिश की गई। तब सन 2022 में वित्त विभाग ने माना कि अनियमितताएं थीं, और मामला सीबीआई को सौंपा गया था।

आखिर सीबीआई की एफआईआर में क्या कहा गया ?

सीबीआई ने टीआरबीएल, रिलायंस जनरल और अज्ञात सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक साजिश और कदाचार के आरोप लगाए थे। इसमें सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा था।

ईडी की जांच और संपत्ति जब्त करना

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जनवरी 2024 में इस मामले में 36.57 करोड़ की संपत्तियां जब्त कीं। ईडी के अनुसार, टेंडर प्रक्रिया जानबूझकर संदिग्ध तरीके से डिजाइन किया गया था।

किरू जलविद्युत परियोजना का विवाद

प्रकरण के अनुसार 2019 में 2,200 करोड़ रुपये का अनुबंध पटेल इंजीनियरिंग को दिया गया था। सीबीआई की एफआईआर में कहा गया कि टेंडर प्रक्रिया में ई-टेंडरिंग के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया और बोर्ड के निर्णय के बावजूद रिवर्स ऑक्शन नहीं किया गया।

स्थानीय मुद्दे और परियोजना की लागत

परियोजना की कुल लागत 4,287 करोड़ रुपये बताई गई है, लेकिन इसमें घटिया निर्माण और स्थानीय युवाओं को रोजगार देने में विफलता की शिकायतें सामने आई हैं।

टेंडर रद्द, फिर दुबारा आवंटन

सीवीपीपीपीएल की 47वीं बोर्ड बैठक में टेंडर रद्द किया गया था, लेकिन 48वीं बैठक में बिना रिवर्स ऑक्शन के पटेल इंजीनियरिंग को फिर से ठेका दे दिया गया था।

मलिक के अलावा आरोप पत्र में नामित लोगों के नाम

सीबीआई ने मलिक के अलावा सीवीपीपीपीएल के एमडी एमएस बाबू, निदेशक एमके मित्तल और अरुणकुमार मिश्रा, मलिक के निजी सचिव वीरेंद्र राणा, कंवर सिंह राणा, पटेल इंजीनियरिंग के एमडी रूपेन पटेल और कारोबारी कंवलजीतसिंह दुग्गल को आरोपी बनाया था।

मलिक का खुद सामने आकर खुलासा करना

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अक्टूबर 2021 में खुद सार्वजनिक रूप से दावा किया कि उन्हें दो फाइलें पास करने के लिए 300 करोड़ की रिश्वत की पेशकश हुई थी। देखने में यह तथ्य कि उन्होंने खुद यह मामला सार्वजनिक किया और सीबीआई ने उन्हीं के आरोपों पर एफआईआर दर्ज की, उन्हें एक व्हिसलब्लोअर (भ्रष्टाचार उजागर करने वाला) के रूप में पेश करता है।कोई व्यक्ति अगर खुद रिश्वत की पेशकश की बात स्वीकार करता है और उसे ठुकराने का दावा करता है, तो यह साजिश की संभावना कम करता है और साहस की छवि बनाता है।

रिश्वत की पेशकश किससे हुई? नाम लिए लेकिन प्रमाण नहीं दिए

उन्होंने कहा कि एक सौदा “अंबानी से जुड़ा” था और दूसरा “आरएसएस पदाधिकारी” से संबंधित था। हालांकि उन्होंने इन दावों का कोई ठोस दस्तावेजी सुबूत सार्वजनिक नहीं किया था। आरोप गंभीर हैं, लेकिन बिना दस्तावेजी या ऑडियो-वीडियो प्रमाण के, इन्हें साबित करना मुश्किल है। इससे उन पर राजनीतिक रूप से बयानबाज़ी करने का आरोप भी लगा था।

सीबीआई की भूमिका – पक्षपात या निष्पक्षता ?

मलिक को शुरू में गवाह के रूप में बुलाया गया, लेकिन बाद में उन्हीं को आरोपियों की सूची में शामिल किया गया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि सीबीआई केंद्र सरकार के अधीन आती है और मलिक भाजपा सरकार के आलोचक बन चुके थे। इससे यह आशंका पैदा जताई गई कि कहीं यह जांच राजनीतिक बदले की भावना से तो प्रेरित नहीं है। हालांकि सीबीआई का आरोपपत्र तथ्यों के आधार पर है, फिर भी निष्पक्षता पर सवाल उठते रहे हैं। अब मलिक की मौत के साथ ही कई सवाल अधूरे रह गए।

अन्य नामितों की भूमिका, अकेले नहीं

सीबीआई के आरोपपत्र में मलिक के साथ 6 अन्य लोग भी नामजद हैं, जिनमें इंजीनियरिंग कंपनी के एमडी से लेकर सरकारी अधिकारी तक शामिल हैं। अगर मलिक अकेले दोषी होते, तो मामला ज्यादा संदिग्ध होता, लेकिन पूरे नेटवर्क की जांच का मतलब है कि मामला केवल राजनीति नहीं है, कहीं न कहीं प्रशासनिक भ्रष्टाचार की परतें भी हैं। वो क्या हैं, यह ​मलिक के जीवित रहते पता नहीं चला।

बीमा और जल परियोजना-दोनों में अनियमितताएं स्वीकार

जम्मू-कश्मीर के वित्त विभाग ने खुद 2022 में स्वीकार किया कि बीमा अनुबंध देने में अनियमितताएं थीं। सीवीपीपीपीएल की बोर्ड मीटिंग में टेंडर रद्द करने का फैसला होने के बावजूद उसे एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया। इससे साफ है कि मलिक के आरोपों में कुछ आधार जरूर है। उन्होंने इन परियोजनाओं को रोका या सवाल उठाए, जिससे सत्ता के भीतर टकराव हो सकता था।

राजनीतिक संदर्भ पहले ‘भाजपा का आदमी’, अब उसी का आलोचक

सत्यपाल मलिक भाजपा की ओर से नियुक्त राज्यपाल थे, लेकिन अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से वे लगातार भाजपा की आलोचना करते रहे और किसानों के आंदोलन से लेकर अडानी-अंबानी तक हर मामले में प्रखर आलोचक रहे। भाजपा से दूरी बनाने के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई करने का समय भी ध्यान देने लायक है। चर्चा रही कि यह मामला राजनीतिक रूप से प्रेरित भी हो सकता है।

आरोप लगाने वाला आरोपों के घेरे में ही चला गया

बहरहाल सत्यपाल मलिक का यह दावा कि उन्होंने भ्रष्टाचार की फाइलें रोकीं, पहली नजर में विश्वसनीय लगता था, क्योंकि उन्होंने खुद ही सबसे पहले यह बात उजागर की, लेकिन जब जांच एजेंसियां उन्हीं को आरोपी बना रही थीं, तो यह सवाल उठता है: क्या वे भ्रष्टाचार रोकने वाले थे या उसी सिस्टम के हिस्सा थे? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि संभावना है कि वे व्हिसलब्लोअर भी हों और राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार भी हों। दोनों चीजें साथ-साथ हो सकती हैं। ऐसा माना जा रहा है कि उन्होंने भ्रष्टाचार उजागर किया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का उनकी बयानबाज़ी और आलोचना की वजह से अब उन्हें निशाना बनाया गया हो। सच जो भी हो, मलिक की मौत काले सच से जुड़े कई सवाल छोड़ गई।