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‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्वेच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं’

-आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने अमेरिका से टैरिफ वॉर के बीच आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी पर दिया जोर -संघ प्रमुख की अपील- हर हाल में करें संविधान का पालन, यदि कोई भड़काता है तो न टायर जलाएं, न पत्थर फेकें, पुलिस में जाएं -संघ प्रमुख ने पड़ोसी देशों को जोड़ने पर दिया जोर, कहा- नदियां, पहाड़ और लोग वही हैं, केवल नक्शे पर लकीरें खींची गई हैं

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RSS does not support Kashi Mathura movement- Mohan Bhagwat

संघ का दिल्ली में तीन दिन व्याख्यान में भागवत का बयान

नवनीत मिश्र

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्वेच्छा से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं। अमेरिका से टैरिफ वॉर के बीच संघ प्रमुख का यह बयान काफी महत्वपूर्ण है और इसे सरकार को संदेश माना जा रहा है। डॉ. भागवत ने ऐसे आर्थिक मॉडल की जरूरत बताई जो अमीरी और गरीबी को बढ़ावा न दे। उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसा विकास मॉडल प्रस्तुत करना होगा, जिसमें आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और पर्यावरण का संतुलन हो। ताकि वे विश्व के लिए उदाहरण बने। आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उपयोग को बढ़ावा देने की अपील करते हुए कहा कि जब घर में शिकंजी बना सकते हैं तो फिर कोकाकोला क्यों पीना?

संघ के शताब्दी वर्ष के तहत यहां विज्ञान भवन में ‘100 वर्ष की संघ यात्रा - नए क्षितिज’ लेक्चर सीरीज के दूसरे दिन सरसंघचालक डॉ. भागवत ने संघ के भावी लक्ष्यों से लेकर देश और दुनिया की चुनौतियों पर चर्चा की। चीन, अमेरिका, इजरायल, बांग्लादेश आदि देशों के राजदूतों सहित देश भर की हस्तियो को संबोधित करते हुए उन्होंने पड़ोसी देशों से रिश्तों की मजबूती की वकालत की। संघ प्रमुख ने कहा कि नदियां, पहाड़ और लोग वही हैं, केवल नक्शे पर लकीरें खींची गई हैं। विरासत में मिले मूल्यों से सबकी प्रगति हो, इसके लिए उन्हें जोड़ना होगा। पंथ और संप्रदाय अलग हो सकते हैं, पर संस्कारों पर मतभेद नहीं है।

भारतीय परंपरा टाल सकती है तीसरा विश्वयुद्ध

वैश्विक चुनौतियों के भारतीय दृष्टि से समाधान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति आज दिखाई देती है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं (यूएन) स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाईं। भारत की धर्म की मध्यम मार्ग परंपरा ही दुनिया में टकराव टाल सकती है। भागवत ने दुनिया के सामने उदाहरण बनने के लिए पंच परिवर्तन कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व-बोध (स्वदेशी) और नागरिक कर्तव्यों पर जोर दिया।

संविधान का करें पालन

डॉ. भागवत ने लोगों से संविधान का पालन करने की अपील करते हुए कहा कि अगर कोई भड़काता है तो कानून हाथ में लेने की जरूरत नहीं है। न टायर जलाएं, न पत्थर फेकें। पुलिस में जाएं। अगर फिर भी एक्शन नहीं होता तो छोटे आंदोलन कर सकते हैं, लेकिन कानून हाथ में नहीं लेना है।

हिंदुत्व क्या है

संघ प्रमुख ने हिंदुत्व की परिभाषा बताते हुए कहा कि यह सत्य, प्रेम और अपनापन है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया कि जीवन अपने लिए नहीं है। यही कारण है कि भारत को दुनिया में बड़े भाई की तरह मार्ग दिखाने की भूमिका निभानी है। इसी से विश्व कल्याण का विचार जन्म लेता है।

पूजा-पाठ से परे है धर्म

डॉ. भागवत ने धर्म की परिभाषा बताते हुए कहा कि यह पूजा-पाठ और कर्मकांड से परे है। सभी प्रकार के रिलिजन से ऊपर धर्म है। धर्म हमें संतुलन सिखाता है - हमें भी जीना है, समाज को भी जीना है और प्रकृति को भी जीना है। धर्म ही मध्यम मार्ग है जो अतिवाद से बचाता है। इसी दृष्टिकोण से ही विश्व शांति स्थापित हो सकती है।

अहंकार से परे हिंदुस्तान

संघ प्रमुख ने कहा कि जिन लोगों ने हमें नुकसान पहुँचाया, उन्हें भी संकट में मदद दी है। व्यक्ति और राष्ट्रों के अहंकार से शत्रुता पैदा होती है, लेकिन अहंकार से परे हिन्दुस्तान है। उन्होंने कहा कि आज समाज में संघ की साख पर विश्वास है।संघ जो कहता है, उसे समाज सुनता है।

संघ का उद्देश्य

मोहन भागवत ने संघ के आगामी लक्ष्यों की चर्चा करते हुए कहा कि हमें समाज के कोने-कोने तक पहुंचना होगा। भौगोलिक दृष्टि से सभी स्थानों और समाज के सभी वर्गों एवं स्तरों में संघ की शाखा पहुंचानी होगी। हमें समाज में सद्भावना लानी होगी और समाज के ओपिनियन मेकर्स से निरंतर मिलना होगा। संघ ऐसा करके समाज के स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहता है।