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Kishore Kumar के अधूरे प्रोजेक्ट्स की अनकही कहानियां

Kishore Kumar Birthday Special: एक कलाकार ही नहीं बल्कि आजादी पसंद इंसान थे। जिसने फिल्म इंडस्ट्री के ढांचे में खुद को ढालने की कोशिश कभी नहीं की। उनके ये अधूरे प्रोजेक्ट बताते हैं कि कैसे रचनात्मकता की जिद, बॉलीवुड की व्यावसायिक राजनीति से दूरी और कभी-कभी मन की भावनात्मक उलझनों ने उनके प्रोजेक्ट्स को पूरा ही नहीं होने दिया। आज किशोर दा के 96वें जन्मदिन के खास मौके पर पढ़ें...संजना कुमार की खास रिपोर्ट...

Kishore Kumar Birthday Special Incomplete Film Projects of Kishore Kumar
Kishore Kumar Birthday Special Incomplete Film Projects of Kishore Kumar: अधूरे प्रोजेक्ट्स की अनकही कहानियां...(फोटो सोर्स: AI)

Kishore Kumar Birthday Special: हिंदी सिनेमा में जब भी किसी मल्टीटेलेंटेड आर्टिस्ट की बात होती है तो एक ही नाम जुबां पर होता है…किशोर कुमार। एक ऐसा कलाकार, जो सिर्फ सुरों का जादूगर नहीं था, गजब का कॉमेडियन, एक्टर, डायरेक्टर, प्रड्यूसर और एक लेखक के रूप में भी बेजोड़ हस्ती। लेकिन फिर भी उसकी कला का एक हिस्सा अधूरा रह गया। किशोर दा ने कई ऐसे फिल्म प्रोजेक्ट शुरू किए, जो या तो बंद हो गए या कहीं फाइलों में खो गए। ये प्रोजेक्ट्स केवल फिल्मी नहीं थे, बल्कि उनके भीतर की रचनात्मक बेचैनी और इंडस्ट्री से टकराव की कहानियां भी हैं…

किशोर कुमार का आज जन्म दिन (Kishore Kumar Birthday Special) है। इस खास मौके पर उनके अधूरे प्रोजेक्ट्स की अनकही दासतां, जिन्हें कभी पूरा नहीं किया जा सका, लेकिन ये वही फिल्में और संगीत प्रोजेक्ट्स हैं, जिनमें किशोर दा के सपने बसते थे, कॉमेडी किंग होने के बावजूद उनकी गमगीन जिंदगी, संघर्ष की ये कहानियां माना जाता है कि उन्हीं की जिंदगी का आईना हैं… पढ़ें संजना कुमार की रिपोर्ट

1-जमना के तीर (Jamna ke teer)

किशोर कुमार ने 1974 में इस फिल्म की घोषणा की थी और इसी साल इसका निर्देशन भी शुरू किया था। वे खुद ही इस फिल्म में लीड एक्टर भी थे। ये फिल्म उनके पैतृक शहर खंडवा की पृष्ठभूमि पर आधारित ग्रामीण परिवेश की कहानी थी। लेकिन उनका यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका। निर्देशन करते समय ही ये प्रोजेक्ट रुका, दोबारा शुरू हुआ, लेकिन फिर रिलीज नहीं हो सका। कहा जाता है कि यदि ये फिल्म रिलीज होती तो किशोर के निर्देशन की मिसाल हो सकती थी।

क्यों रुका ये प्रोजेक्ट

बताया जाता है कि किशोर कुमार फिल्म इंडस्ट्री के दबावों से आजाद रहना चाहते थे। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से फंडिंग नहीं ली, इस फिल्म में खुद ही पैसा लगाया। लेकिन स्वभाव से अक्खड़ माने जाने वाले किशोर कुमार की इस प्रोजेक्ट से जुड़ी टीम बार-बार बदली रही। शूटिंग के वक्त कई बार सीन में बदलाव किए गए, जिससे उनका प्रोजेक्ट डिले होता रहा। फिर वो वक्त आया जब उनके पास फंडिंग खत्म हो गई और उनका ये प्रोजेक्ट शेल्व्ड हो गया।

2-प्यार जिंदगी है (Pyar Zindagi Hai)

1981 में किशोर कुमार का ये प्रोजेक्ट भी अधूरा रहा। वे इसमें अभिनय, संगीत, निर्देशन तक एक साथ करने वाले थे। जैसा कि वे अक्सर अपनी फिल्मों में करते ही थे। ये एक रोमांटिक-फिलॉसोफिकल फिल्म थी। इस फिल्म के माध्यम से किशोर दा प्यार और रियल लाइफ जिंदगी को नये रूप में लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। लेकिन ये फिल्म भी कभी दर्शकों तक नहीं पहुंच सकी।

क्यों रुका ये प्रोजेक्ट

ये प्रोजेक्ट करते समय किशोर कुमार लगातार हिट गाने दे रहे थे। लेकिन फिल्म डायरेक्शन को लेकर उनका नजरिया अलग था। इस प्रोजेक्ट के दौरान किशोर गहरे डिप्रेशन में थे। कहा जाता है कि इस दौरान वे खुद से ही संघर्ष कर रहे थे। इस प्रोजेक्ट पर शूट के दौरान कई घंटों तक वे अकेले बैठे रहते, संवादों को बदलते, फिर कैंसल करते…और एक समय बाद उन्होंने खुद ही इस प्रोजेक्ट को कैंसिल कर दिया। अगर ये फिल्म दर्शकों तक पहुंचती तो शायद एक कलाकार की आत्मिक लड़ाई की गंभीर कहानी सुनाती, जो शायद उन्हीं की जिंदगी का हिस्सा थी, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हो सका।

3- शब्बाश डैडी (Shabbash Daddy)

1979 की किशोर कुमार की ये फिल्म किशोर कुमार ने ही डायरेक्ट की थी। यह फिल्म एक सामाजिक व्यंग्य थी। इस फिल्म में वे एक ऐसे पिता के रूप में थे, जो आधुनिक दुनिया से ताल-मेल नहीं बैठा पाता। फिल्म की शैली हास्य के साथ गंभीर सामाजिक कटाक्ष वाली थी, लेकिन उस दौर के मेलोड्रामा पसंद दर्शकों को रिझा नहीं सकी।

अगर कहें कि ये फिल्म आर्ट बनाम कमर्शियल की लड़ाई में हार गई। क्योंकि ये फिल्म बनकर तैयार भी हुई और रिलीज भी। लेकिन कमर्शियल स्टेज पर मात खा गई। न इसकी मार्केटिंग हो सकी, न ही डिस्ट्रीब्यूटर्स ने साथ दिया। माना जाता है कि किशोर को इस फिल्म से काफी नुकसान झेलना पड़ा।

4-ममता की छांव में (Mamta ki Chhanv Me)

किशोर कुमार (Kishore Kumar) के सपनों का अंतिम प्रोजेक्ट साबित हुई इस फिल्म निर्देशन भी किशोर दा ने ही किया था। इस फिल्म में किशोर दा एक ऐसे बुजुर्द पिता की भूमिका में थे, जो अपनी बेटी के लिए सबकुछ छोड़ देता है।

क्यों अधूरा रहा प्रोजेक्ट

13 अक्टूबर 1987 को किशोर दा का निधन हो गया और फिल्म अधूरी रह गई। तब उनके दोस्त राजेश खन्ना ने इसे पोस्ट-प्रोडक्शन में पूरा करवाया और 1989 में किशोर दा की मौत के 2 साल बाद फिल्म रिलीज हो सकी।

जब तक किशोर जिंदा रहे तब तक फिल्म रिलीज नहीं हो पाई, लेकिन किशोर कुमार की मौत के बाद इसे रिलीज किया गया। बताया जाता है कि राजेश खन्ना उनके बेहद करीबी दोस्त थे, उनकी मदद से इस फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाया गया।

ये रिपोर्ट किशोर के ऐसे ही अधूरे सपनों, संघर्षों और खोए खजानों की कहानी है, जिनके पीछे संवेदनशील, विद्रोही और आत्माभिमानी कलाकार की छवि छिपी थी, यह कहानी है उन अधूरे प्रोजेक्ट्स की जो कभी पर्दे तक नहीं आ सके, जो आए वो छा न सके।