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झालावाड़ स्कूल हादसा: दर्द की दवा बनी किताबें, अस्पताल के बिस्तर पर भी बच्चों की पढ़ाई जारी

राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी स्कूल हादसे में घायल दस बच्चों का इलाज झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल में चल रहा है। ये बच्चे हाथ-पैर, सिर में पट्टियां और प्लास्टर बंधे होने के बावजूद अस्पताल में ही पढ़ाई कर रहे है।

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Photo- Patrika

राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी स्कूल हादसे को 9 दिन बीत चुके हैं। इस हादसे में घायल दस बच्चों का इलाज झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल में चल रहा है। बच्चों की शारीरिक और मानसिक स्थिति में अब सुधार हो रहा है। बच्चे दर्दनाक हादसे को भूलकर जिंदगी की नई शुरुआत कर रहे है। अस्पताल को ही उन्होंने स्कूल बना लिया हैं। ये बच्चे हाथ-पैर, सिर में पट्टियां और प्लास्टर बंधे होने के बावजूद पढ़ाई कर रहे है।

अस्पताल में चिकित्सक उन्हें इलाज के साथ भावनात्मक संबल भी दे रहे हैं। बच्चों को हादसे की याद से बाहर निकालने और सामान्य दिनचर्या में फिर से लाने के लिए कॉपी-किताबें दी गई हैं। कुछ बच्चे चित्र बना रहे हैं तो कुछ पहाड़े लिखते नजर आ रहे हैं। कुछ पाठ याद कर रहे है।

पत्रिका संवाददाता ने अस्पताल में वार्ड का दौरा किया

पत्रिका संवाददाता ने शनिवार को अस्पताल में वार्ड का दौरा किया तो पाया कि वहां भर्ती बच्चें किताबों में डूबे हुए है, तो कुछ मुस्कुराते हुए आपस में बातें कर रहे हैं। परिजन, अस्पताल का स्टॉफ और चिकित्सक भी बच्चों के साथ बातचीत और हंसी--ठिठोली कर उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं। उनका दर्द कम करने कोशिश कर रहे है। बच्चों के पलंग पर ही उनका स्कूल बैग, कॉपी-किताब, पेन, पैंसिल और कलर उपलब्ध करवाए गए है। बच्चे अपनी रुचि के अनुसार कार्य में समय व्यतीत कर रहे है।

इस हादसे में गंभीर रूप से घायल छठी कक्षा के छात्र मुरली का शनिवार को जन्मदिन था। उसने कहा, अभी तो अस्पताल में भर्ती हूं, लेकिन अब मैं जल्दी स्कूल जाना चाहता हूं। उसके पास ही अन्य पलंग पर बैठा छात्र मिलन कॉपी में कुछ लिख रहा था। पूछने पर बोला, सर ने एक लड़की की तस्वीर बनाई है, मैं भी वैसी ही बनाने की कोशिश कर रहा हूं। फिर वह पहाड़े लिखने लग गया।

सायना अभी भी पैर के दर्द से जूझ रही

फ्रैक्चर के कारण छात्रा सायना अभी भी पैर के दर्द से जूझ रही है। उसने कहा, ठीक होते ही स्कूल जाऊंगी। अभी तो यहीं पढ़ाई कर रही हूं। एक अन्य छात्र ब्रह्म की कॉपी में मोर बना था। जब उससे पूछा गया कि यह किसने बनाया तो उसने जवाब दिया, सर ने बनाया है, मैं उसे देख रहा हूं। पास के बिस्तर पर बैठे छठी कक्षा के मिथुन के हाथ में मोबाइल था। जब उससे पूछा गया कि वह अब कौनसे स्कूल में पढ़ने जाएगा तो उसने कहा, गांव में ही जाऊंगा। स्कूल तो टूट गया है, लेकिन कोई पास का स्कूल देख लेंगे।

देखभाल में कोई कसर नहीं

बच्चों की देखभाल के लिए परिजन अस्पताल में ही हमेशा साथ रह रहे है।चिकित्सक और स्टाफ भी उनकी लगातार निगरानी कर रहे है। बच्चों की सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जा रहा है, ताकि वे जल्द स्वस्थ होकर फि र से अपनी पढ़ाई और जीवन की सामान्य दिनचर्या में लौट सकें।

-स्कूल हादसे के बाद मेडिकल कॉलेज में भर्ती बच्चों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। बच्चों को किसी प्रकार का तनाव नहीं हो, इसका भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है। बीच-बीच में उनका मनोरंजन भी करवाया रहा है

  • डॉ संजय पोरवाल, प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज झालावाड़