Janmashtami 2025: हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन आप अपने ही क्षेत्र में इस मंदिर में जाकर श्रीकृष्ण की पूजा कर सकते हैं। तो चलिए आपको इन मंदिरों के नाम के साथ इसकी खासियत भी बताते हैं।
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का दिन हर भक्त के लिए विशेष होता है। इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। पूरे देश की तरह छत्तीसगढ़ में भी जन्माष्टमी पर भक्ति और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। मंदिरों में रात्रि जागरण, झांकियां, दही हांडी प्रतियोगिता और भजन-कीर्तन से पूरा वातावरण कृष्णमय हो जाता है।
आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ के वे पांच प्रमुख कृष्ण मंदिर, जहां जन्माष्टमी पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है और भक्ति का अनोखा नजारा देखने को मिलता है।
राजधानी रायपुर के तेलीबांधा स्थित इस्कॉन मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए प्रमुख केंद्र है। रक्षाबंधन के अवसर पर यहां श्री राधारास बिहारी जी की प्राण प्रतिष्ठा हाल ही में सम्पन्न हुई है। जन्माष्टमी के दौरान यहां भव्य सजावट, संकीर्तन और रासलीला का आयोजन किया जाता है। मंदिर का शांत और आध्यात्मिक वातावरण हर आगंतुक को मोह लेता है।
खासियत: अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ (ISKCON) से जुड़ा यह मंदिर आध्यात्मिक वातावरण और अनुशासित पूजा-पद्धति के लिए प्रसिद्ध है।
यहां रोज़ संकीर्तन, भागवत कथा, गीता प्रवचन और भक्ति-योग कार्यक्रम होते हैं।
जन्माष्टमी पर भव्य सजावट, रासलीला, नृत्य-नाटिका और हजारों भक्तों की उपस्थिति इसका आकर्षण है।
शहर के मध्य स्थित यह मंदिर श्रीकृष्ण और राधा की दिव्य छवियों के लिए प्रसिद्ध है। जन्माष्टमी पर यहां दिनभर पूजा-अर्चना और रात में जन्मोत्सव कार्यक्रम होता है। विशेष रूप से सजे झूले में लड्डू गोपाल के दर्शन भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।
खासियत: शहर के बीचों-बीच स्थित यह मंदिर अपनी सादगी और भक्तिपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता है।
जन्माष्टमी पर यहां लड्डू गोपाल का झूला सजाया जाता है और मध्यरात्रि में जन्मोत्सव के साथ विशेष आरती होती है।
भक्तों के लिए प्रसाद और सामूहिक भजन-कीर्तन का आयोजन विशेष रहता है।
दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर न केवल भगवान वेंकटेश्वर बल्कि श्रीकृष्ण की पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है। जन्माष्टमी के अवसर पर यहां विशेष रथयात्रा और भजन संध्या का आयोजन होता है। मंदिर की भव्यता और शांति का अनुभव भक्तों को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करता है।
खासियत: दक्षिण भारतीय वास्तुकला शैली में बना यह मंदिर भव्य गोपुरम (प्रवेश द्वार) और कलात्मक मूर्तियों के लिए मशहूर है।
भगवान वेंकटेश्वर के साथ यहां श्रीकृष्ण की भी पूजा होती है।
जन्माष्टमी पर रथयात्रा, फूलों की सजावट और दक्षिण भारतीय परंपरा के भजन इसका आकर्षण है।
यह मंदिर खाटूश्याम बाबा के साथ-साथ श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए भी विख्यात है। जन्माष्टमी के दिन यहां बाबा श्याम और लड्डू गोपाल की झांकियां सजाई जाती हैं। रातभर भजन-कीर्तन का सिलसिला चलता है और प्रसाद वितरण होता है।
खासियत: खाटूश्याम बाबा की भक्ति के साथ-साथ श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के लिए भी प्रसिद्ध।
यहां रंगीन झांकियां, भव्य आरती और रात्रि जागरण का आयोजन जन्माष्टमी पर विशेष होता है।
मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
भिलाई स्थित अक्षयपात्र मंदिर, इस्कॉन की ही एक शाखा है, जो न केवल आध्यात्मिक कार्यक्रमों के लिए बल्कि समाजसेवा के कार्यों के लिए भी जाना जाता है। जन्माष्टमी पर यहां हजारों भक्त जुटते हैं और उत्सव में भाग लेते हैं। मंदिर में मनमोहक झांकियां और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होती हैं, जो माहौल को पूरी तरह कृष्णमय बना देती हैं।
खासियत: इस्कॉन से संबद्ध यह मंदिर न केवल धार्मिक आयोजनों के लिए बल्कि "अक्षयपात्र" योजना के तहत गरीब और जरूरतमंद बच्चों को भोजन कराने के लिए प्रसिद्ध है।
जन्माष्टमी पर यहां विशाल भक्ति-सम्मेलन, झांकियां, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और प्रसाद वितरण होता है।
मंदिर का शांत वातावरण और सेवाभाव इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।
Published on:
12 Aug 2025 06:07 pm