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इंदिरा गांधी नहर: जानिए ‘रेगिस्तान की गंगा’ ने कैसे बदली राजस्थान की तस्वीर? सलाना हो रही है हजारों करोड़ की पैदावार

Rajasthan News: इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP), जिसे ‘रेगिस्तान की गंगा’ कहा जाता है। यह 649 किलोमीटर लंबी नहर हिमालय से पानी लाती है।

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Indira Gandhi Canal

पत्रिका फोटो

Rajasthan News: इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP), जिसे ‘रेगिस्तान की गंगा’ कहा जाता है। यह 649 किलोमीटर लंबी नहर हिमालय से पानी लाती है। थार मरुस्थल को हरियाली में बदलने का श्रेय इसी को जाता है। राजस्थान के थार मरुस्थल के बीचों-बीच रामगढ़ गांव स्थित है। कभी 1980 के दशक में इस इलाके में कुछ गिनीचुनी झौंपड़ियां हुआ करती थीं, लेकिन आज यही गांव कृषि बाजार में बदल चुके हैं।

यहां ट्रैक्टरों और गाड़ियों से थ्रेशर, गेहूं और सरसों की बोरियां लदी दिखती हैं। खेतों से मजदूर हंसी-खुशी लौटते हैं। कभी सुनसान और बंजर रहा यह क्षेत्र अब राजस्थान के सबसे उपजाऊ इलाकों में गिना जाता है।

कभी पलायन कर चुके स्थानीय किसान अल्ला दत्ता अब अपनी सरसों की फसल बेचने का इंतजार कर रहे हैं। उनका कहना है कि उत्पादन अच्छा होने के बावजूद नहर में पानी की कमी होने के कारण वह अपनी 60 हेक्टेयर जमीन में से सिर्फ 45 हेक्टेयर ही बो पाए।

इंदिरा गांधी नहर: रेगिस्तान की जीवनरेखा और इसकी उपलब्धियां

इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) की बदौलत ही यह परिवर्तन संभव हो पाया है। इसलिए इसे ‘रेगिस्तान की गंगा’ भी कहा जाता है। यह 649 किलोमीटर लंबी है और रेगिस्तान में हिमालय से पानी लाती है। थार की लगभग 16 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई संभव हुई है। 500 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में हरियाली आई है। लगभग 2 करोड़ (20 million) लोगों को पेयजल उपलब्ध हुआ है।

महाराजा गंगासिंह की भविष्य की योजना

इस परियोजना की जड़ें 1898 तक जाती हैं। बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने भुखमरी (famine) और पानी की भारी कमी देखते हुए जल सुरक्षा को राज्य की प्राथमिकता बनाया था। इसके लिए उन्होंने गंग नहर का निर्माण करवाया था। उनकी सोच और मेहनत ने भविष्य में इंदिरा गांधी नहर का रास्ता तैयार किया।

आजादी के बाद मिली रफ्तार

स्वतंत्रता के बाद इस विचार को रफ्तार मिली। 1958 में नहर के निर्माण की शुरुआत हुई। 1960 के भारत-पाकिस्तान सिंधू नदी जल समझौते (Indus Water Treaty) से इसे जोड़ा गया। इस समझौते के बाद भारत ने हरीके बैराज (punjab) से पानी मोड़कर राजस्थान की ओर भेजने की योजना बनाई।

कई स्थानों के किसानों ने निभाई अपनी भूमिका

सरकार ने श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ और पंजाब से किसानों को यहां बुलाया था। करीब 12 लाख हेक्टेयर सरकारी भूमि इस परियोजना के तहत किसानों को मामूली मूल्य पर दी गई थी। इससे न केवल अन्न उत्पादन बढ़ा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिली है।

नहर के बाद थार की काया पलट

अब यह रेगिस्तानी इलाका गेहूं, सरसों, ग्वार, बाजरा, किन्नू, इसबगोल (isabgol) जैसी फसलें उगाता है जो पहले कभी संभव नहीं था। राजस्थान अब इसबगोल के साथ-साथ सरसों (mustard), ग्वार (gwar) और बाजरे (pearl millet) का सबसे बड़ा उत्पादक है। वहीं जीरे का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य बन गया है।

इंदिरा गांधी नहर ने खेतों के साथ साथ वन क्षेत्र को भी बढ़ाया है। जैसलमेर का वन क्षैत्र 1991 में 23 वर्ग किमी से बढ़कर 341 वर्ग किमी हो गया है। बीकानेर की वन क्षैत्र 51 वर्ग किमी से बढ़कर 260 वर्ग किमी हो गई है।

सामाजिक बदलाव और आर्थिक उपलब्धियां

बता दें, पहले इस इलाके में महिलाएं मटके लेकर कई किलोमीटर तक पानी लाने जाती थीं। गर्मी में पशु मर जाते थे और खेती लगभग असंभव थी। लेकिन इंदिरा गांधी नहर ने इस सब को पलटने में अहम भूमिका निभाई है। यह नहर सालाना लगभग 6,500 करोड़ रुपये का खेती उत्पादन करती है। जहां इस इंदिरा गांधी परियोजना के निर्माण में कभी 7,500 करोड़ रुपये इंवेस्ट किए गए थे।

इस परियोजना का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण था। रिटायर्ड IGNP के चीफ इंजीनियर विनोद चौधरी ने बताया कि रेत के तूफानों के कारण अक्सर रास्ते मिट जाते थे। मध्यप्रदेश, बिहार और उड़ीसा से आए मजदूरों को झुलसाने वाली गर्मी और कठिन हालात में काम करना पड़ता था। और उस समय मॉडर्न तकनीक उपलब्ध नहीं थी जिसके कारण मिट्टी, पानी, ईंट, सीमेंट आदि को बारीकी और सावधानी से गधा गाड़ी या ऊंट गाड़ी से ले जाया जाता था।

पूर्वी हिस्सों में ढलान कम होने के कारण पानी को ऊंचाई पर उठाना पड़ता था जिसे लिफ्ट इरिगेशन सिस्टम (lift irrigation system) कहा जाता है। ऐसा करना जरूरी था क्योंकि जमीन की ढलान बहुत कम थी। हालांकि पश्चिमी हिस्से में ढलान होने के कारण पानी को अच्छा बहाव मिल जाता था।

लूणकरणसर और कोलायत प्रोजेक्ट

बीकानेर में लूणकरणसर को 1976 में पूरा किया गया था, जिसे बाद में जाकर कंवर सैन का नाम दे दिया गया था। वहीं कोलायत लिफ्ट इरिगेशन का प्रतिनिधित्व नरेंद्र सिंह तंवर ने किया था। ध्यान करने वाली बात है कि इरीगेशन (irrigation) को 60,000 से 1 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाया गया। जिसमें सामूदायिक तालाब और स्प्रिंक्लर सिस्टम (sprinkler system) शामिल थे। आइजीएनपी ने 2 लाख हेक्टर को कवर करते हुए 4 प्रोजेक्टों में 714 करोड़ रुपये खर्च किए थे।

नहर से सिर्फ खेत ही नहीं, उद्योग भी चलते हैं

यह नहर अब केवल किसानों के लिए नहीं बल्कि सीमा सुरक्षा बलों (BSF), बिजलीघरों, पचपदरा रिफाइनरी और औद्योगिक इकाइयों को भी पानी पहुंचाती है। इनके लिए 110 करोड़ लीटर पानी प्रति सेकेण्ड की दर से बहाव मोड़ा गया। इससे सीमावर्ती इलाकों में विकास और सुरक्षा, दोनों को बल मिला है।

2025 में हुई मरम्मत, उठा विवाद

2025 में 21 अप्रैल से 28 मई तक नहर की मरम्मत और सफाई के लिए कुछ हिस्से अस्थायी रूप से बंद किए गए थे। इस पर स्थानीय लोगों ने असंतोष जताया, क्योंकि सिंचाई पर गहरा असर पड़ा था। हालांकि IGNP बोर्ड चैयरमेन कूंजीलाल मीणा का कहना है कि यह बंद पड़ी नहर के दशकों तक उपयोग के बाद हुई घिसावट और टूट-फूट को सुधारने के लिए जरूरी थी।

2 लाख घरों को मिलेगा पाकिस्तान के हिस्से का एक्स्ट्रा पानी

वर्तमान IGNP चीफ इंजीनियर विवेक गोयल ने बताया कि पाकिस्तान में ब्यास और रावी नदी का पानी तय मात्रा से ज्यादा जाता है। इसलिए एक्स्ट्रा पानी को भारत में ही रोकने के लिए आइजीएनपी जलभंडारण योजनाओं और नए जलाशय का निर्माण भी करेगी जो 20 से 40 किमी की परिधि के और 10 मीटर की गहराई के होंगे। इससे 2 लाख घरों को पानी मिल सकेगा।

इंदिरा गांधी नहर सिर्फ एक सिंचाई परियोजना नहीं, बल्कि एक सभ्यता के निर्माण का प्रमाण है। इसने थार के बंजर रेगिस्तान को जीवन दिया और निर्जन क्षेत्र में हजारों गांवों को बसाया। इसकी संपदा आज भी बढ़ रही है और थार के भविष्य को हरियाली, पानी और समृद्ध भविष्य से जोड़ती है।