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एमपी के इस शिव मंदिर को बना दिया था जेल, मुगल शासक जहांगीर ने 52 राजाओं को यहां बनाया था बंदी

Gwalior Fort Untold Story: ग्वालियर का किला महज एक पर्यटन स्थल नहीं बल्कि गौरवशाली इतिहास की गाथा सुनाता जीवंत उदाहरण है, patrika.com पर पढ़ें किले का रोचक इतिहास और ऐरी जानकारी जो आपने पहले कभी नहीं सुनी होगी, अनकही कहानी पर संजना कुमार की खास रिपोर्ट...

Gwalior Fort History untold story
Gwalior Fort History untold story(फोटो सोर्स:सोशल मीडिया)

Gwalior Fort Untold Story: महिलाओं की शौर्यगाथा सुनाने वाले ग्वालियर किले की अनकही कहानी, जानें क्यों चर्चा में है? ग्वालियर किला सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि ऐसा किला है जहां 'वक्त' आज भी सांस लेता है। मध्य प्रदेश समेत देशभर के लिए अनमोल ऐतिहासिक धरोहर एक बार फिर चर्चा में है। जानिए इस ऐतिहासिक धरोहर का गुप्त इतिहास, वर्तमान स्थिति और पर्यटन के नजरिए से इसकी महत्ता ग्वालियर का किला मध्यप्रदेश या भारत के लिए महज एक ऐतिहासिक इमारत नहीं है, बल्कि, एक जीवंत आत्मा है, जिसके भीतर हजारों साल के उन ऐतिहासिक पलों की गाथा समाई है, जो राजशाही, वीर यौद्धा, साहस का उदाहरण बनती हैं। कहते हैं, अगर आप यहां देर रात तक रुक जाएं, तो किले की हवाएं आपको वो कहानियां सुना सकती हैं जो, किताबों में कहीं दर्ज नहीं।

इन दिनों क्यों चर्चा में है ग्वालियर का किला


दरअसल विपक्ष ने विधानसभा मानसून सत्र के दौरान प्रश्न पूछा था कि क्या सरकार ग्वालियर जैसे ऐतिहासिक किले को निजी हाथों में सौंपने जा रही है?

सदन में सत्तादल के विधायक डॉ. अभिलाष पांडेय और रमेश प्रसाद खटीक के साथ ही विपक्षी दल के पंकज उपाध्याय ने ग्वालियर किले के संरक्षण का मुद्दा ध्यानाकर्षण के दौरान उठाया था। ऐतिहासिक किले को निजी हाथों में देकर होटल बनाने के तीनों विधायकों के अलग-अलग प्रश्नों के जवाब में संस्कृति-पर्यटन राज्य मंत्री धर्मेंद्रभाव सिंह लोधी ने इन अफवाहों पर विराम लगा दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकार का ऐसा कोई प्लान नहीं है। न ही किले को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है और न ही इसमें कोई होटल खोला जा रहा है।

क्या कहता है ग्वालियर किले का इतिहास, राजा, युद्ध और रहस्य

ग्वालियर किले का इतिहास लगभग 1500 साल पुराना माना जाता है। इसे 6वीं शताब्दी में राजा सूर्यसेन ने बनवाया था, जिन्हें एक साधु ग्वालिपा ने कुष्ठ रोग से मुक्त किया था। उन्हीं साधु के नाम पर इस शहर का नाम ‘ग्वालियर’ पड़ा। इस किले को 'भारत का जिब्राल्टर' भी कहा जाता है, क्योंकि ये चट्टानों पर बना ऐसा किला है जिसे अजेय माना जाता था।

राजा सूर्यसेन इस किले के पहले राजा थे, लेकिन अंतिम राजशाही परिवार सिंधिया परिवार रहा। इस बीच इस किले पर 108 राजाओं ने राज किया। ये अलग-अलग 7 वंशों के राजा हुए। ये किला कछवाहा, सोलंकी, गुर्जर, प्रतिहार, तोमर, मुगल, मराठा और फिर ब्रिटिश शासन तक के इतिहास का साक्षी है।

लेकिन इनमें सबसे गौरवशाली इतिहास की बात करें तो, राजा मानसिंह तोमर (15वीं सदी) का नाम सबसे ऊपर आता है। इनकी 9 रानियां थीं, इनमें से 8 रानियां एक ही कास्ट यानी जाति से थीं और ये राजवंश परिवार से ही थीं।। अपनी रानियों के लिए राजा मानसिंह ने अलग से एक महल बनवाया था, इसका नाम रखा था मान-मंदिर महल। वहीं ग्वालियर शहर के गेट पर इनकी 9वीं राजपूत रानी मृगनयनी के लिए गूर्जरी महल बनवाया था। आज ये महल एक पुरातात्विक संग्रहालय है।

एक अनकही कहानी: रानी जो चट्टानों से नहीं डरी

इतिहास में दर्ज है कि रानी मृगनयनी युद्धों में शस्त्र उठाने वाली रानियों में से एक थीं। उन्होंने पुरुषों के साथ युद्ध कौशल सीखा और मानसिंह से विवाह की शर्त रखी कि उनके लिए अलग महल बनेगा, जहां वह स्वतंत्र होकर रह सकें। 'गुजरी महल' आज भी उस महिला शक्ति की निशानी है।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान में ग्वालियर किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है। लेकिन सवाल ये है कि क्या इतना पुराना और विशाल किला सिर्फ सरकारी संरक्षण से सुरक्षित रह पाएगा?

हाल ही में यह मुद्दा फिर चर्चा में आया जब कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि इसे निजी हाथों को सौंपा जा सकता है। हालांकि सरकार ने इससे इनकार कर दिया, पर इन अफवाहों से एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या हमारी धरोहरें सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए रह गई हैं?

क्यों जाएं ग्वालियर किला देखने?

ग्वालियर किले की यात्रा सिर्फ एक ट्रैवल प्लान नहीं है, बल्कि इतिहास की स्वर्णिम गाथा सुनाने वाली एक टाइम ट्रैवल है। ऐसे में इसे देखना तो बनता है। ऐतिहासिक स्थल और उनका इतिहास जानने में रुचि है, तो ये किला आपको जरुर पसंद आएगा।

भगवान शिव का मंदिर

सभी रानियों के लिए राजा मान सिंह ने मान-मंदिर महल के सामने ही सिद्धि मंदिर का निर्माण करवाया। जहां ये सभी रानियां पूजा-पाठ करने आती थीं। इसमें शिव मंदिर है। इस मंदिर के कुल 82 पिलर हैं। बाद में इस मंदिर को मुगल शासक जहांगीर ने जेल में बदल दिया। इसके अंदर बारिश के पानी का संरक्षण करने की व्यवस्था के तहत स्टेप वेल बनाया गया था। जो आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि राजा मानसिंह इसी कुएं में स्नान करने के बाद पूजा-पाठ करते थे।


मानसी महल सबसे खास

फूल और पत्तियों के साथ शीशा मिलाकर तैयार किए गए थे नेचुरल रंग

कहा जाता है जब ये महल बनकर तैयार हुआ, तो इसकी गुंबदों को सोने की प्लेट्स से कवर किया गया था। इसकी नक्काशी में नजर आने वाले कलर फूलों और पत्तियों से तैयार किए गए नेचुरल रंग हैं। इन रंगों को बनाने के लिए तैयार किए गए मिश्रण कांच को मिलाकर हाई टेम्प्रेचर पर पकाए गए और फिर महल को इनसे सजाया गया। ये महल केवल तीन रंगों से से सजा है। एक फूलों का रंग, दूसरा पत्तियों का रंग और तीसरा वह रंग है, जो फूलों और पत्तियों को मिलाकर तैयार किया गया है।

यहां राजा मान सिंह करते थे आम सभा

मानसी महल की दीवारों से ही सटी एक छतरी बनी है। छतरी के सामने एक बड़ा मैदान खाली नजर आता है। ये मैदान आम जन के लिए था। इस छतरी से राजा मान सिंह आम सभा को संबोधित करते थे। ये राजा मानसिंह का दीवाने आम हुआ करते थे।

इस महल के हर कमरे की है एक कहानी

इस महल में एक संगीत कमरा है। कहा जाता है कि यहां संगीत सभा होती थी। यहां ऊपर की तरफ नजर आने वाली जालियां बताती हैं कि मानसिंह की रानियां पर्दाप्रथा को फॉलो करती थीं। इन जालियों पर काला कपड़ा रहता था। रानियां संगीत सुनने आती थीं, तो इन जालियों और पर्दों के पीछे बैठती थीं। वह सबको देख सकती थीं, लेकिन रानियों को कोई नहीं देख सकता था। इस महल में यूज किए गए स्टोन लोकल सेंड स्टोन हैं, जिसे इंटरलॉक तकनीक के माध्यम से फिट किया गया है। ये तीन मंजिल नीचे तक है, जिसे भूलभुलैया भी कहते हैं।

दीवान-ए-खास में केवल रानी मृगनयनी ही जा सकती थी

राजा मानसिंह का अपना एक दीवान-ए-खास था। इसमें केवल उनकी अंतिम रानी मृगनयनी को ही बुलाया जाता था। इसमें 9 झरोखे हैं, इनमें अन्य रानी बैठती थीं। मंत्रीगण नीचे बैठते थे। लेकिन जब राजा मानसिंह निर्णय लेते थे, तो भगवान शिव के मंदिर के सामने रहकर निर्णय सुनाते थे।

चार दरवाजों से ले सकते थे एंट्री

इस महल में आने के लिए चार दरवाजे थे। एक गेट एलिफेंट गेट कहलाता है या किला गेट के नाम से भी जाना जाता है। राजा मान सिंह जब भी इस महल में आते थे, तो वे हाथी पर बैठकर यहीं से आते थे। इसीलिए इस दरवाजे का नाम एलिफेंट गेट पड़ा। शेष दरवाजों के नाम, ग्वालियर गेट, उर्वाई गेट, ड्योढ़ापुर गेट और सिंधिया गेट सिंधिया स्कूल के अंडर में है। अब किले में एंट्री के केवल दो ही गेट हैं।

इससे इतर यहां ले सकते हैं इनका भी मजा

  • सनसेट प्वाइंट से शहर का नजारा देखते बनता है।
  • लाइट एंड साउंड शो, जहां इतिहास जीवंत हो उठता है।

महिला शौर्य की गाथा के रूप में भी किया जाए प्रमोट!

ग्वालियर किले को एक और नजरिए से देखने की जरूरत महसूस हो रही है। यह भारत की महिला नेतृत्व की अनकही कहानियों का केंद्र भी कहा जा सकता है। रानी मृगनयनी की स्वतंत्रता और साहस की कहानी सुनाता ये किला, गवाह है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंतिम लड़ाई भी इसी किले के पास हुई थी। इसी किले में उन्होंने अपने अंतिम दिन गुजारे और अंतिम सांस भी यहीं ली थी। अब जब महिला सशक्तिकरण पर चर्चा हो, तो क्या इस किले को एक 'महिला शौर्य स्थल' के रूप में प्रमोट नहीं किया जाना चाहिए?