Special State Category Special Status State: जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) को विशेष राज्य और विशेष श्रेणी का दर्जा देने के लिए 17 अक्टूबर 1949 को भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 (Article 370) शामिल किया गया था। उस समय केंद्र में जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) की नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी। बीजेपी सरकार (BJP Modi Government) ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू और कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापिस ले लिया और उसे अर्ध केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया। कल यानी 4 अगस्त 2025 को जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Jammu Kashmir CM Omar Abdullah) ने एक मजाकिया लहजे में अपने एक्स हैंडल से पोस्ट शेयर करते हुए एक बहस खड़ी कर दी कि क्या 5 अगस्त 2025 को जम्मू कश्मीर के साथ कुछ अच्छा हो सकता है?
मुख्यमंत्री की यह एक सांकेतिक पोस्ट थी जिससे यह ध्वनि सामने आ रही है कि क्या आज जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल सकता है? उमर अब्दुल्ला और उनकी पार्टी ने भी राज्य के चुनाव में राज्य को पूर्ण दर्जा दिलाने की कोशिश की बात की थी और राज्य में सरकार बनाने के बाद भी वह लगातार इस विषय पर चर्चा करते नजर आए। आइए यहां पूर्ण राज्य, केंद्रशासित प्रदेश, विशेष श्रेणी वाले और विशेष राज्य के बीच का फर्क (What is difference between Special Category Status to Special Status) समझते हैं। यह भी जानते हैं कि इसके क्या फायदे होते हैं।
Difference between Special Category Status to Special Statusstate: संविधान के अधिनियम के माध्यम से राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करता है और इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित कराया जाना आवश्यक है। वहीं, राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा प्रदान किया जाता है। यह केंद्र सरकार का एक प्रशासनिक निकाय है। यहां इसे समझने के लिए मिसाल के तौर जम्मू और कश्मीर को लिया जा सकता है। जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा और विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया था। विशेष दर्जा मिलने से राज्यों की विधायी और राजनीतिक अधिकार बढ़ जाता हैजबकि विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने से आर्थिक, प्रशासनिक और वित्तीय पहलुओं की सुविधाएं हासिल हो जाती हैं।
स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद तीन राज्यों असम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था। इसके बाद 1974-1979 के दौरान, पांच और राज्यों हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा को विशेष श्रेणी में शामिल किया गया। इसके बाद 1990 में अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम को और वर्ष 2001 में उत्तराखंड राज्य को 2001 में विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया।
राष्ट्रीय विकास परिषद किसी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का निर्णय लेता है। इसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और योजना आयोग के सदस्य शामिल होते हैं।
भारत के संविधान में देश के किसी भी राज्य को 'विशेष श्रेणी के राज्य' के रूप में वर्गीकृत करने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि अनुच्छेद 371, 371-ए से 371-एच और 371-जे के अंतर्गत सूचीबद्ध 10 राज्यों के लिए कई प्रावधान मौजूद हैं। इन प्रावधानों को संसद द्वारा अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधनों के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था लेकिन अनुच्छेद 370 और 371 संविधान के लागू होने के दिन यानी 26 जनवरी, 1950 से ही शामिल हैं।
भारत में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने का मतलब यह होता है कि उसके पास भारतीय संविधान में उल्लिखित सभी शक्तियां उसे दी जाती हैं। राज्य का प्रशासन और पुलिस भी उसके अधीन होती है। वहीं केंद्रशासित प्रदेश के पास पूर्ण राज्य की तुलना में थोड़ी शक्तियां कम होती है। केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन और पुलिस केंद्र से संचालित होता है। वहां विधानसभा या विधायिका की व्यवस्था नहीं होती है।
Published on:
05 Aug 2025 03:30 pm