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दुलारचंद यादव हत्याकांड: भूमिहारों का वर्चस्व, यादवों की चुनौती…मोकामा में गैंगवार और जातीय समीकरण

दुलारचंद यादव हत्याकांड:  मोकामा को भूमिहारों की राजधानी कहा जाता है, क्योंकि 30 फीसदी से ज्यादा आबादी यहां पर भूमिहारों की है। यही वजह है कि 1952 से लेकर अभी तक इस सीट पर भूमिहार समाज से आने वाले लोग ही विधानसभा जाते रहे हैं।

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दुलारचंद यादव हत्याकांड: बिहार के फतुहा से लेकर लखीसराय तक के इलाके को 'टाल' कहा जाता है। टाल का यह इलाका दलहन की फसलों के लिए उपजाऊ माना जाता है। मोकामा विधानसभा का क्षेत्र भी इनमें से ही एक है। यहां पर उगाई गई दाल पहले बांग्लादेश तक भेजी जाती थी। 1980 के दशक तक यह पूरा इलाका कारखानों के धुएं से महकती थी। लेकिन 1980 के बाद यहां के कारखानों से धुंए निकलना और टाल की जमीन से दलहन की फसल उपजना बंद हो गयी। इसकी जगह इस क्षेत्र से बारूद की गंध निकालने लगा।

बारूद की गंध में डूबा मोकामा

मोकामा जहां पर सबसे ज्यादा बुलेटों की भाषा बोली जाती है। 1980 के दशक के बाद यहां का इतिहास सिर्फ तारीखों से नहीं, खून की धारों से लिखी गई। सत्ता की कुर्सी से लेकर जमीन के विवाद तक की हर लड़ाई बंदूक से ही लड़ी गई। 30 अक्टूबर को दुलारचंद की हत्या भी सत्ता की कुर्सी के लिए ही की गई। उनकी हत्या का आरोप जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के प्रत्याशी बाहुबली अनंत सिंह के ऊपर लगा है। लेकिन, उन्होंने इस हत्या का आरोप अपने विरोधी बाहुबली सूरजभान सिंह पर लगाया। इसके बाद से मोकामा में सियासी माहौल और गरमा गया।

मोकामा: तीन बाहुबली चुनाव मैदान में

मोकामा विधानसभा सीट से आरजेडी के टिकट पर सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी चुनाव लड़ रही हैं। इधर, दुलारचंद यादव जन सुराज पार्टी के पीयूष प्रियदर्शी को जिताने के लिए प्रयास कर रहे थे। दुलारचंद यादव की छवि भी बाहुबली दबंग की रही है। 90 के दशक में दुलारचंद यादव शुरू से ही बाहुबली अनंत सिंह के मुखर आलोचक थे। यादव समाज पर पकड़ की वजह से दुलारचंद यादव को 'टाल का बादशाह' कहा जाता था। 2019 में दुलारचंद को पटना ग्रामीण इलाके में 'कुख्यात गैंगस्टर' बताकर गिरफ्तार किया गया था। लेकिन बाद में अनंत सिंह के साथ हो गए थे। हालांकि, वो इस चुनाव में उनके विरोध में थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि दुलारचंद के चुनाव लड़ने के चलते 2000 में अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को चुनावी हार का सामना करना पड़ा था। इसकी वजह से ही अनंत सिंह और दुलारचंद यादव आमने सामने हो गए थे। इस दफा भी वो मजबूत होते जा रहे थे। हत्या की वजह संभवत: मोकामा की सियासी लड़ाई हो। मोकामा की राजनीति तीन दशकों से बाहुबलियों के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है।

वर्षराजनीतिक दलकौन जीता
1990 जनता दलदिलीप सिंह, अनंत सिंह के बड़े भाई
1995 आरजेडीदिलीप सिंह, अनंत सिंह के बड़े भाई
2000लोजपा सूरजभान सिंह
2005 जेडीयूअनंत सिंह
2010जेडीयूअनंत सिंह
2015निर्दलीयअनंत सिंह
2020आरजेडीअनंत सिंह
2020आरजेडी (उपचुनाव)अनंत सिंह की पत्नी

मोकामा पर तीन दशक से अनंत सिंह का कब्जा

मोकामा विधानसभा सीट पर तीन दशकों से अनंत सिंह और उनके परिवार का ही कब्जा है। 1990 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए और 1995 में भी वो दूसरी बार जीतने में कामयाब रहे। लेकिन, वर्ष 2000 में दिलीप सिंह बाहुबली सूरजभान सिंह से चुनाव हार गए। इसके पांच साल बाद 2005 में अनंत सिंह पहली दफा जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़े और चुनाव जीत भी गए। इसके बाद 2020 तक लगातार अनंत सिंह और उनेक परिवार का ही इस सीट पर कब्जा रहा। तीन बार जेडीयू के टिकट पर अनंत सिंह विधायक बने। नीतीश कुमार से अनबन होने पर वर्ष 2015 में निर्दलीय चुनाव लड़े और चुनाव भी जीत गए। फिर वे 2020 में आरजेडी के टिकट पर विधायक बने। लेकिन, 2022 में सजा होने पर अनंत सिंह की सदस्यता चली गई। इसके बाद अनंत सिंह ने अपनी पत्नी नीलिमा देवी को उपचुनाव लड़ाया और वो भी चुनाव जीत गई। 2025 का विधानसभा चुनाव अनंत सिंह फिर से जेडीयू के टिकट पर लड़ रहे हैं।

मोकामा में भूमिहारों का वर्चस्व

जातिप्रतिशत
भूमिहार30 प्रतिशत
यादव 20 प्रतिशत
राजपूत 10 प्रतिशत
कुर्मी, कोइरी जैसी अतिपिछड़ी जातियां 20 से 25 प्रतिशत
दलित 16 से 17 प्रतिशत
मुस्लिम 5 प्रतिशत

बाहुबली बनाम बाहुबली फाइट

2025 के विधानसभा चुनाव में पहली बार मोकामा में बाहुबली बनाम बाहुबली फाइट नहीं हो रहा है। इससे पहले 2020 में अनंत सिंह आरजेडी से चुनाव मैदान में उतरे तो जेडीयू से राजीव लोचन नारायण सिंह उतरे थे। राजीव लोचन को मोकामा के सोनू-मोनू गैंग का समर्थन प्राप्त था। इसके बाद जब वर्ष 2022 के उपचुनाव हुआ तो नलिनी रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ी थी। ललन सिंह को सूरजभान का करीबी माना जाता है। इससे पहले भी ललन सिंह 2005, 2010 और 2015 में अनंत सिंह को कड़ी टक्कर दे चुके हैं। साल 2010 और 2005 में ललन सिंह रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से चुनावी मैदान में उतरे थे।