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आम जनता के मुद्दों को लेकर सदैव रहे प्रतिबद्ध, हिन्दी व राजस्थानी भाषा के ‘मास्टर कम्युनिकेटर’ थे कुलिश जी

राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चन्द्र कुलिश के जन्मशती वर्ष के मौके पर उनसे जुड़े संस्मरण साझा किए हैं प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने।

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जयपुर

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Patrika Desk

Sep 20, 2025

फोटो: पत्रिका

राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चन्द्र कुलिश के जन्मशती वर्ष के मौके पर उनसे जुड़े संस्मरण साझा किए हैं प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने। भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी रहीं अरुणा राय सूचना के अधिकार आंदोलन की अगुआ रहीं है। उन्हें प्रतिष्ठित मैैैग्सेसे अवॉर्ड भी मिल चुका है। उनका कहना है कि कुलिश जी मतभेद रखते हुए भी अखबार में दूसरों को अपनी बात रखने की छूट देते थे। पत्रिका को उन्होंने लोगों की जिंदगी संवारने का माध्यम माना।

हिन्दी व राजस्थानी भाषा के ‘मास्टर कम्युनिकेटर’ थे कुलिश जी

राजस्थान पत्रिका समूह के संस्थापक कर्पूर चंद्र जी कुलिश से मुलाकात के मुझे कई अवसर मिले। उनसे पहली मुलाकात ही सबसे यादगार रही जब मैं कला मर्मज्ञ कोमल कोठारी के माध्यम से वर्ष 1983-84 के आसपास उनसे मिली। तब मैं राजस्थान में ग्रामीण विकास के मुद्दों से जुड़ीं थी और राजस्थान को समझने की जिज्ञासा रखती थी। इस दौरान मैंने कोमल दा और कुलिश जी के बीच हुए संवाद से भी बहुत-कुछ सीखा। सही मायने में यह मुलाकात राजस्थान को लेकर मेरी राजनीतिक और सामाजिक समझ को बढ़ाने वाली थी।

सचमुच मैं तब दो शख्सियतों के बीच थी और मेरी समझ में यह भी आया कि राजस्थान, यहां के लोगों और उनकी सांस्कृतिक विरासत के बारे में ऐसी जानकारी बहुत कम ही लोगों के पास है। कुलिश जी ने राजस्थानी भाषा और राजस्थान की संस्कृति से मुझे बेहतर तरीके से रूबरू कराया। कुलिश जी के व्यक्तिगत संघर्ष का स्मरण करती हूं तो वह एक तरीके से स्वतंत्र पत्रकारिता का ही संघर्ष था।

हमारे जैसे कार्यकर्ताओं ने जन संगठन बनाकर सूचना के अधिकार और काम के अधिकार जैसे मुद्दों को उठाया था। तब भी स्वाभाविक रूप से कुलिश जी का जानने के हक को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से सूचना के अधिकार आंदोलन को समर्थन रहा। जब हम वर्ष 1997 में जयपुर में स्टेच्यू सर्किल पर सूचना के अधिकार के लिए संघर्ष में बैठे तब राजस्थान पत्रिका ने मुखपृष्ठ पर इस आंदोलन को लेकर लिखा और सूचना के अधिकार के मुद्दे को एक प्रखर आवाज और प्लेटफार्म दिया।

कुलिश जी की सबसे बड़ी खासियत यह भी रही के वे मतभेद रखते हुए भी दूसरों को अपना मत रखने का पूरा मौका देते थे।यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरुरी भी है। पत्रिका अपनी शुरुआत से ही न केवल एक अखबार रहा बल्कि कई जनआन्दोलनों का हिस्सा भी रहा। हमने राजस्थान पत्रिका के साथ मिलकर ‘नींव- शिक्षा का सवाल’ अभियान चलाया और हमें बड़े पैमाने पर महसूस हुआ कि स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास आदि मुद्दों को लेकर चुनावी राजनीति को कैसे स्वच्छ राजनीति में तब्दील किया जा सकता है।

हमारा मानना था कि इसके लिए अखबारों और जनता को मिलकर सारी शक्तियों को बांधना चाहिए ताकि उनकी जवाबदेही तय हो। पत्रिका ने इन सब कामों को अभियान के रूप में लिया तो वह भी कुलिश जी द्वारा शुरू की गई परिपाटी का ही अंग है।राजस्थान पत्रिका का ‘पोलमपोल’ कॉलम तो मैं नियमित पढ़ती रहीं जिसे कुलिश जी ‘भायाजी’ के नाम से लिखते थे। इसमें कई घटनाओं से जुड़े उनके विचार रोचक तरीके से निकलते थे।कुलिश जी के व्यक्तित्व को समझें तो आज की युवा पीढ़ी के लिए अहम सीख यह कि उसे हर बात पर सवाल उठाकर विचार करने की जरूरत है।

आज जब संप्रेषण के नए-नए तरीके आ गए हैं तो जनता से संवाद ज्यादा आसान हो गया है। यह संवाद जरूरी भी है। कुलिश जी को मैं सही मायने में राजस्थानी और हिंदी भाषा का ‘मास्टर कम्युनिकेटर’ कहूंगी। उनका यही मत रहा कि अखबार को आम जनता के मुद्दों के प्रति प्रतिबद्धता रखते हुए उसकी जिंदगी को संवारने के निरंतर प्रयास करते रहने चाहिए। खुशी है कि पत्रिका आज भी ऐसा कर रहा है।