जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई देगी। यह सुनिश्चित करने के बाद कि हमला करने वाले आतंकी पाकिस्तान से ही आए थे और प्रतिबंधित संगठन लश्करे तैयबा से जुड़े थे, जिसे वहां सरकारी शह मिली हुई है, भारत सरकार ने जवाबी कार्रवाई के रूप में इस बार कूटनीतिक प्रहार किया है। इसके तहत 1960 में किए गए सिंधु जल संधि को स्थगित करना, नई दिल्ली स्थित उच्चायोग में पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को अवांछित घोषित करना, पाकिस्तानी नागरिकों को भारत छोडऩे का निर्देश, सार्क समझौते के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को दिए वीजा रद्द करना, अटारी बॉर्डर बंद करना और इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से अपने सैन्य सलाहकारों को वापस बुला लेना शामिल है। इनमें ज्यादातर कदम तो आमतौर पर दो देशों में तनाव के बाद उठाए ही जाते हैं पर, सिंधु जल संधि स्थगित करने का फैसला दूरगामी और वैश्विक असर डालने वाला है। पहली बार भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि, पूरी दुनिया को संदेश दिया है कि वैश्विक आतंक पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए शांति काल में किए गए समझौतों का रणनीतिक इस्तेमाल किया जाना अब जरूरी है।
पहलगाम में हुआ आतंकी हमला जम्मू-कश्मीर में पिछले कई सालों से किए जा रहे शांति के प्रयासों को पटरी से उतारने वाली हरकत है। धर्म पूछ-पूछकर हत्या करना न सिर्फ घाटी बल्कि, पूरे देश में सांप्रदायिक आग भडक़ाने और राज्य की आर्थिक रीढ़ तोडऩे की नीयत से किया गया जान पड़ता है। इस हमले ने अनुच्छेद 370 स्थगित करने और उसके बाद विकास को पंख देने के प्रयासों को तगड़ा झटका दिया है। दरअसल, आतंकी आकाओं को यह बात बर्दाश्त नहीं हो रही है कि जम्मू-कश्मीर के लोग आर्थिक रूप से सक्षम हो जाएं। अब तक वे राज्य के लोगों को गुमराह करने के लिए वहां की आर्थिक बदहाली का ही फायदा उठाते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में घाटी में विकास की नई बयार बहने लगी है। जनता से पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में हिस्सा लेकर अपने फर्जी रहनुमाओं को स्पष्ट संदेश दे दिया था। यह सब पाकिस्तान को कैसे रास आता। पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने तो आतंकी गुटों को उकसाने वाला बयान भी दिया था।
सिंधु जल संधि पर भारत में पहले भी सवाल उठते रहे हैं। पाकिस्तान के पूर्वी इलाकों के लिए जीवन रेखा माने जाने के बावजूद सिंधु का ज्यादातर पानी बिना किसी इस्तेमाल के समुद्र में चला जाता है। दूसरी तरफ, इस संधि के कारण भारत चाहकर भी पानी का इस्तेमाल नहीं कर पाता। ऐसी संधि को नीतिगत चूक के रूप में देखा जाता रहा है। इसको दुरुस्त करने का भी यह अच्छा मौका है। इस संधि को स्थगित करके भारत ने बताया है कि जल कूटनीति का रणनीतिक इस्तेमाल करने का समय आ गया है।
Updated on:
24 Apr 2025 10:01 pm
Published on:
24 Apr 2025 09:50 pm